
वारावफ़ात क्यों मनाया जाता है
महराजगंज,रबि अल अव्वल माह में मनाया जाने वाला यह एक इस्लामिक त्यौहार है जो मोहम्मद साहब के जन्म दिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
इस्लामिक तारीख (इतिहास) के अनुसार माना जाता है कि हजरत रसूल उल्लाह मोहम्मद सल्लाह औह-आलै वसल्लम को अल्लाह ने पृथ्वी पर अन्याय को मिटाकर शांति व धर्म की स्थापना के लिए उन्हें जमीन पर भेजा।
मान्यता है कि मोहम्मद साहब से पूर्व 124000 नबी और रसूल का अवतरण हुआ था।सबसे अंतिम रसूल के रूप में पैगम्बर मुहम्मद साहब को 20 अप्रैल 571 ईसवी मुताबिक आज के दिन (12 रबी-ए-उल-अव्वल) पीर (सोमवार) के दिन अरब के मक्का में भेजा।
इनकी माता व पिता का नाम हजरते आमना खातून के यहाँ हुआ। कहा जाता है कि इनके जन्म से पूर्व ही पिताजी चल बसे थे, अतः इन्हें मोहम्मद कहकर पुकारा गया।
मिलाद उन नबी इस्लामिक का इतिहास
पिता की मृत्यु के बाद मोहम्मद साहब की परवरिश दादा अब्दुल मुन्तलिब साहब द्वारा की गई. मक्का शहर के लोग इन्हें सम्मान की नजरों से देखते थे।मोहम्मद साहब का विवाह खदीजा से २५ वर्ष की आयु में हो गया था।वे अपने परिवार के पालन पोषण के लिए व्यापार का कारोबार किया करते थे।
जब मुहम्मद साहब चालीस वर्ष के हुए तो उन्हें नबी बनने का फरमान हुआ।उस समय सम्पूर्ण अरब व मुस्लिम देशों में अराजकता का माहौल था. लोग धर्म को पूरी तरह भूल चुके थे।
छोटी छोटी बातों पर झगड़े तथा हिंसा आम बात हुआ करती थी।ऐसे समय में नबी ने सच्चे रसूल का फर्ज अदा करते हुए लोगों को तालीम, अच्छाईयों को अपनाने तथा हिंसा से दूर रहने का हुक्म दिया।उन्होंने कुरान को उतारा तथा इस्लाम में विश्वास रखने वाले धर्मावलम्बियों को इसका महत्व बताया. ६३ वर्ष की आयु में रबी ने इस लोक को अलविदा कह दिया।
12 रवी-उल-अव्वल को ईदमिलादुन्नवी का जुलूस निकालकर शहर व शहर ईद-उल-मिलादुन्नवी को एक पर्व की तरह सेलिब्रेट किया जाता है।हजरत साहब की दरगाह मक्का मदीना में हैं. इस्लाम धर्म में आस्था रखने वाला हर व्यक्ति अपने जन्म एक बार हज यात्रा पर अवश्य जाता है।
बारावफात मनाने का तरीका
लोग अपने विश्वास तथा आस्था के मुताबिक़ इस इस्लामिक पर्व को सेलिब्रेट करते हैं।इस दिन को त्योहार के रूप में मनाने का मूल उद्देश्य पैगम्बर मुहम्मद साहब की शिक्षाएं, उनकी जीवन तथा चरित्र को अपने बच्चों तथा लोगों तक पहुचाएं।
धर्म की अच्छी बातों को ग्रहण करे।यह दान देने का महत्वपूर्ण दिन है इस दिन बच्चों, गरीबों आदि में खेरात बांटी जानी चाहिए।लोगों द्वारा बाराबफात के दिन हरें झंडे के साथ रबी की याद में शान्तिपूर्ण जुलूस निकाला जाता हैं।देश की प्रसिद्ध दरगाहों पर लोग एकत्रित होकर एक दूसरे के अमन के लिए दुआ कर मुबारकबाद पेश की जाती है।इस तरह बारावफात का यह पर्व देश व दुनियां में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं. हैं या खुलने का समय कम कर दिया जाता हैं।
सुन्नी मुस्लिम समुदाय के द्वारा बारावफात
इस्लाम मजहब का सबसे बड़ा फिरका सुन्नी मुस्लिमों का हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमानों की बहुल आबादी इसी समुदाय की हैं। सुन्नी मुस्लिमों द्वारा बारावफात के दिन को शोक पर्व के रूप में मनाया जाता हैं।
स्वाभाविक हैं पैगम्बर मोहम्मद साहब का इंतकाल इसी दिन हुआ था इसलिए सुन्नी मत को मानने वाले इस दिन अपने खुदा के प्रति शोक प्रकट करते हैं।
इस्लाम का सबसे अधिक कट्टर माना जाने वाला सुन्नी मत पैगम्बर की प्रत्येक शिक्षा और विचार को जीवन में कठोरता से अपनाने पर जोर देता हैं। बारावफात के अवसर पर सुन्नी लोग मस्जिद में जाकर सामूहिक शोक मनाते हैं तथा अपने ईश्वर का स्मरण करते हैं।
शिया मुस्लिम समुदाय द्वारा बारावफात
सुन्नी मुस्लिम की तरह शिया समुदाय के लोग भी बारावफात मनाते हैं।मगर इस दिन को शिया समुदाय हर्ष के उत्सव के रूप में मनाते हैं।इसके पीछे मान्यता यह है कि पैगम्बर साहब ने इसी दिन हजरत अली को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। शिया समुदाय अली को अल्लाह का पुत्र मानकर उन्हें सर्वेसर्वा मानते हैं।
बारावफात को इस्लाम में पवित्र दिनों में गिना जाता हैं। जो धर्मावलम्बी इस दिन मक्का मदीना अथवा अपने निकट की मस्जिद में जाकर कुरआन पढ़ते है तथा एक मुस्लिम होने का कर्तव्य निर्वहन करते है तो ईश्वर से उसकी समीपता बढ़ जाती है तथा साधक को विशेष रहमत मिलती हैं।
कैलाश सिंह पत्रकार