
*लखीमपुर खीरी जिले में एक ऐसा भी मंदिर जहां कभी राजा मोरध्वज ने की थी पूजा।*
सम्पादकीय – बरनवाल संतोष नयन गोरखपुरी
लखीमपुर खीरी जिला मेरा अपना जिला जहां मैंने बचपन के वो पल बिताए खैर कहा लग गया अपनी बातों मैं।
मैं सो रहा मेरे संपादक आरके चौधरी ने फोन किया बोले कहा हो मैं फौरन बोल उठा घर पे फिर वो बोले अभी नाश्ता कर गोला निकल जाओ लोकेशन गोला संवाददाता बताएंगे वहीं तुम्हारे दोपहर के खाने की व्यवस्था की हैं फिर क्या था जल्दी – जल्दी में निकल पड़ा गोला गोकर्णनाथ के लिए मेरे गांव से गोला गोकर्णनाथ की दूरी महज 25 कि oमीo ही होगी गोला गोकर्णनाथ पहुंचे ही मेरी मुलाकात मेरे सहयोगी संवाददाता अनुराग मिश्रा से हुई उन्होंने बताया कि गोला से बाईपास होते हुए एक जंगल के बीच से रास्ता जाती हैं जो ग्राम कोटवारा में है लोकेशन जानते ही मेरे दिमाग में एक नए अनुभव को महसूस करने का उत्साह उमड़ पड़ा उस समय मेरे उत्साहित देखने लायक थी।
अब दोनों अपनी-अपनी बाइक पर सवार हुए और कोटवारा गांव की तरफ रख किया तब बार- बार मैं अनुराग मिश्रा जी से पूछ रहा था कि मिश्रा जी आपके यहां बाघ के हमले में मारे गए लोगों के लिए कुछ बचाव या उस प्रकरण पर कोई मन में विचार हैं तो बोलो तो मिश्रा जी बेबाक होकर सच बोल गए थे बोले कि सरकार कुछ करना ही नहीं चाहती न विभाग सब अपनी- अपनी जिम्मेदारी से भागते हैं गोला गोकर्णनाथ तहसील क्षेत्र में जितने लोग जंगली जानवरों के हमले में मारे गए हैं और जा घायल हैं क्या कोई जनप्रतिनिधि ने उनका हाल पूछा नाही ही किसी प्रशानिक अमले ने उन तक कोई उचित सहयोग राशि।
ऐसे ही बातों के झरोखों पोरेते हुए हम दोनों कोटवारा गांव पहुंच गए थे, थोड़ी ही दूरी से एक टीलानुमा स्थान दिखाई दे रहा था जिस पर मंदिर बना हुआ था।
मंदिर के साथ एक कई वर्षों पुराना बरगद का पेड़ है जो अपने अस्तित्व को बचाएं हुए हैं हिन्दू समाज के लोगों का यह आस्था का प्रतीक है यह निरंतर पूजा अर्चना हवन यज्ञ अनुष्ठान हुआ करते हैं।
मंदिर के पीछे एक विशालकाय तालाब है जो अपने कभी पानी न सूखने का संकेत दे रहा है। लोगों की माने तो यह तालाब आदि गंगा यां सतोती नदी का भी नाम से जाना जाता है।
देखने से ऐसा प्रतित हो रहा था कि मंदिर का जीर्णोद्धार पूर्व में हो चुका राजा मोरध्वज से जुड़ी महज देवकृतियां ही मिली मेरा मन पुरानी चीजों को खोजने में लगा था मैं मंदिर के चारों तरफ बस पुरानी चीजों को खोजता रहा था मुझे कोई ऐसा प्रतीक नहीं मिला जिससे मैं इस बात की पुष्टि कर सकूं कि यह मंदिर राजा मोरध्वज से जुड़ा हुआ है।
हालांकि लोगों के अनुसार यहां पर बाबा विरेश्वर नाथ के शिवलिंग की स्थापना राजा मोरध्वज ने की थी यहां उनका छोटा सा कुठार था मंदिर में रखी मूर्ति सोने बताई जाती है।