
एक गॉव में एक गुब्बारे वाला हर दिर गुब्बारे बेचने आया करता था। रंग बिरंगे गुब्बारे देख कर गॉव के बच्चे उसके पीछे पीछे चल देते थे। सभी को गुब्बारे बेचने के बाद गुब्बारे वाला वापस चला जाता था।
एक दिन गुब्बारे बेचने के लिये वह गांव के बाजार में खड़ा था। आज उसके गुब्बारे कम बिके थे। तभी एक बच्चा गुब्बारे खरीदने आया।
बच्चा: भैया कितने का गुब्बारा है।
गुब्बारे वाला: दस पैसे का एक है और पच्चीस पैसे के तीन
बच्चा: लेकिन मेरे पास तो केवल पांच पैसे हैं एक काम करो एक गुब्बारा मुझे दे दो बाकी दो किसी ओर को बेच देना इससे तुम्हारे पच्चीस पैसे के तीन बिक जायेंगे।
गुब्बारे वाला: नहीं एक गुब्बारा तो दस पैसे का ही मिलेगा।
बच्चा निराश होकर चला जाता है। वह आगे जाकर एक पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठ जाता है।
गुब्बारे वाला उसे देखता रहता है। गुब्बारे वाले के शाम तक सारे गुब्बारे बिक जाते हैं। केवल दो गुब्बारे बचते हैं।
गुब्बारे वाला उस बच्चे को बुलाता है।
गुब्बारे वाला: अरे तू घर नहीं गया दोपहर से यहीं बैठा है।
बच्चा: हां भैया वो मैंने अपनी छोटी बहन से कहा था कि मैं उसके लिये गुब्बारा लेकर आ रहा हूं। अब जब वो सो जायेगी तब जाउंगा।
गुब्बारे वाला: तो अपने घर से पांच पैसे और ले आता गुब्बारा ले जाता।
बच्चा: मेरे घर में केवल मेरी मां है। जो मजदूरी करती है। बड़ी मुश्किल से वो हर दिन पांच पैसे देती है।
गुब्बारे वाला: चल ठीक है ये ले गुब्बारा। ला पांच पैसे। तेरा नाम क्या है।
बच्चा: मेरा नाम मोहन है।
गुब्बारे वाले को बच्चे पर दया आ जाती है।
गुब्बारे वाला: अच्छा एक काम कर तू ये दोंनो गुब्बारे ले ले एक अपनी बहन के लिये और एक अपने लिये।
मोहन बहुत खुश होता है और वह गुब्बारे लेकर घर की ओर भागने लगता है।
अगले दिन गुब्बारे वाला गुब्बारे बेचने आता है। तभी उसे मोहन दिखाई देता है।
मोहन: भैया ये पांच पैसे ले लो।
गुब्बारे वाला: ठीक है तू ये गुब्बारा ले जा।
मोहन: नहीं भैया ये तो में कल के पैसे दे रहा हूं। कल मैं जब घर पहुंचा तो मां ने बहुत गुस्सा किया। उन्होंने कहा बिना पैसे के कोई सामान लेना भीख कहलाता है। आप ये पांच पैसे ले लो।
गुब्बारे वाला: बहुत बढ़िया विचार हैं तेरी मां के, सुन तू पढ़ने नहीं जाता है क्या?
मोहन: नहीं हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं। मैं घर पर ही पढ़ लेता हूं।
गुब्बारे वाला: तुम रहते कहां हो?
मोहन: वो जो सामने बड़ा सा नीम का पेड़ है। उसके पीछे ही मेरा घर है।
इसी तरह समय बीत रहा था – गुब्बारे वाले से कभी कभी मोहन पांच पैसे में गुब्बारा ले जाता और अपनी बहन को दे देता था।
कुछ दिन बाद गुब्बारे वाले को मोहन नजर नहीं आया। अब वह गुब्बारा लेने भी नहीं आता था।
एक दिन शाम को गुब्बारे वाला मोहन के घर पहुंच जाता है।
गुब्बारे वाला: मोहन, मोहन!
तभी मोहन की मां बाहर आती है।
गुब्बारे वाला: बहनजी मोहन कई दिन से गुब्बारे लेने नहीं आया।
मां: भैया मेरा काम छुट गया है। कटाई के बाद हम खेत मजदूरों की मजदूरी बंद हो जाती है। बड़ी मुश्किल से घर का खर्च चल रहा है। मोहन को मैं पैसे नहीं दे पाती हूं।
गुब्बारे वाला: बहन क्या मैं आपकी कुछ मदद कर सकता हूं।
मां: नहीं भैया हम केवल मेहनत का पैसा ही लेते हैं।
गुब्बारे वाला: एक काम कीजिये मोहन को मेरे साथ गुब्बारे बेचने के लिये भेज दीजिये। हम दोंनो गांव में घूम घूम कर गुब्बारे बेच लेंगे।
मां: लेकिन भैया वो तो अभी बहुत छोटा है।
गुब्बारे वाला: बहन इससे आपकी कुछ मदद हो जाया करेगी मैं चाहता हूं कि मोहन स्कूल जाये। इस काम से उसकी स्कूल की फीस निकल आयेगी। दोपहर से शाम तक वह गुब्बारे बेच लेगा।
तभी मोहन बाहर आ जाता है और सारी बातें सुन लेता है।
मोहन: हां मां मेरे ख्याल से ये ठीक कह रहे हैं।
मां तैयार हो जाती है। अगले दिन से मोहन गुब्बारे वाले के साथ गुब्बारे बेचने जाने लगता है।
गुब्बारे वाला मोहन का स्कूल में दाखिला करा देता है। पढ़ने के साथ साथ मोहन अब शाम को गुब्बारे बेचने लगता है।
धीरे धीरे मोहन बड़ा हो जाता है। तब तक वह गुब्बारे वाला बूढ़ा हो जाता है।
मोहन: बाबा अब आप काम मत कीजिये मेरी पढ़ाई पूरी हो गई जल्द ही मुझे नौकरी मिल जायेगी।
गुब्बारे वाला: बेटा तुझे अपनी मां और बहन का ख्याल भी तो रखना है मैं तो जैसे तैसे अपनी जिन्दगी काट लूंगा। तू नौकरी करके अपनी बहन की शादी के लिये पैसा जोड़ लेना।
मोहन बहुत कोशिश करता है। एक दिन उसके घर एक चिट्ठी आती है। उसे सरकारी नौकरी मिल जाती है। मोहन सबसे पहले यह खबर गुब्बारे वाले को सुनाता है –
मोहन: बाबा मुझे सरकारी नौकरी मिल गई।
गुब्बारे वाला उसे गले लगा लेता है।
गुब्बारे वाला: शबाश बेटा तेरी मेहनत रंग लाई। अब शहर जाकर मुझे भूल मत जाना कभी कभी गुब्बारे लेने जरूर आना।
मां: नहीं भाई साहब ये सब आपकी मेहनत है। हम सब साथ में शहर में रहेंगे। अभी तो मोहन जाकर इंतजाम करेगा फिर हमें लेने आयेगा।
मोहन अगले दिन शहर चला जाता है। वहां तीन महीने नौकरी करने के बाद वह एक बड़ा सा मकान किराये पर ले लेता है और दो दिन की छुट्टी लेकर वापस घर आता है।
मोहन: मां तुम जल्दी से सामान बांध लो हम सब कल ही शहर चलेंगे। मैं बाबा से भी कहता हूं सामान बांध लेंगे मैं उनसे मिल कर आता हूं।
मां: बेटा वो नेक इंसान तो अपना सामान कब का बांध चुके हैं। वे हम सब को छोड़ कर चले गये, यह कहकर मां रोने लगती है।
मोहन भागता हुआ गुब्बारे वाले के घर पहुंचता है।
मोहन: बाबा जीवन भर मेरी मदद करते रहे, जब मेरा सेवा करने का समय आया तो मुझे छोड़ कर चल दिये। वह वहां बैठ कर रोता रहा। मोहन की मां ने उसे चुप कराया।
मां: बेटा कुछ लोग पेड़ की तरह होते हैं। वे छाया देते हैं फल देते हैं, लकड़ी देते हैं लेकिन लेते कुछ नहीं।
मोहन गुब्बारे वाले को आज भी याद करता है और जो कोई भी उसे मिलता है। उसे गुब्बारे वाले की कहानी जरूर सुनाता है।