
भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की 136वीं जयंती मनाई गई
महाराजगंज, आज भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की 136 वीं जयंती श्रद्धा से मनाई जा रही है| 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु में डॉ. राधाकृष्णन का जन्म हुआ था| 1902 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण होकर कला संकाय में अपनी शिक्षा जारी रखते हुए उन्होंने दर्शनशास्त्र विषय में उच्च शिक्षा प्राप्त की एवं 1918 में मैसूर विश्वविद्यालय में बतौर दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त हुए| उन्होंने अपनी लेखनी से भारतीय दर्शनशास्त्र का पूरे विश्व में परचम लहराया| उन्हें भारतीय संस्कृति से गहरा लगाव था, वह धार्मिक पुस्तक पढ़ा करते थे एवं अन्य धर्म ग्रंथ भी जैसे कुरान, बाइबल भी| वह स्वामी विवेकानंद से अत्यधिक प्रभावित थे| दर्शनशास्त्र के विद्यार्थी होने के कारण वह आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे| जीवन और जगत के रहस्य को अच्छी तरह समझते थे| आजादी के बाद उन्हें संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया| उनका राजनीतिक दृष्टिकोण व्यापक था| उन्हें एक साथ समग्र चेतनावादी,राष्ट्र प्रेमी,कुशल लेखक, दूरदर्शी नेता एवं समाज सुधारक कहा जाए तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी| इस प्रकार उनके समस्त जीवन से प्रेरणा लेते हुए भारत सरकार ने उनके जन्मदिवस को ही शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया और 5 सितंबर 1962 से शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा शुरू हो गई| अत:भारत रत्न डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की जयंती को ही शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है| भारतीय परंपरा में गुरु का स्थान बड़ा ऊंचा है| भक्ति काल के कवि कबीर ने गुरु की महिमा का बड़ा ही अद्भुत बखान किया है| उन्होंने कहा है- गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय| बलिहारी गुरु आपने, जो गोविंद दियो बताय|| कबीर के अनुसार ईश्वर को देखना संभव नहीं है, लेकिन गुरु से प्राप्त ज्ञान के जरिए ईश्वर को महसूस या समझा जा सकता है| इस प्रकार गुरु की महिमा को सब ने स्वीकार किया| वैसे देखा जाए तो माता-पिता ही मनुष्य के प्रथम शिक्षक होते हैं,उन्हीं के द्वारा प्रारंभिक शिक्षा का ज्ञान प्राप्त होता है,लेकिन जीवन के समग्र विकास में शिक्षक की अहम भूमिका होती है| शिक्षक के मार्गदर्शन में ही हम जीवन की ऊंचाइयों को प्राप्त कर पाते हैं| शिक्षक दिवस के अवसर पर मुझे अपने गुरु डॉ.प्रमोद सर की याद आ गई| वह बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर में हिंदी के प्रोफेसर थे और मैं पत्रकारिता और जनसंचार का विद्यार्थी था | उनके द्वारा बताई गई सारी बातें मेरी स्मृतियों में पूर्णतः सुरक्षित है| उनकी प्रेरणा आज भी मुझे मजबूती प्रदान करती है।