
राष्ट्रवादी प्रजापति:
इजिप्ट, सीरिया, ट्यूनिशिया, यमन, लीबिया, बहरीन, कुवैत, सूडान, सऊदी अरब, मोरक्को, इराक़ जैसे कई देश इस आग की चपेट में आ गए।
सत्ता विरोध शुरू हुआ और इसका अगला प्रतीक बना इजिप्ट का ‘तहरीर चौक’ जिसे Tahrir Square कहा जाता है। लाखो लोगो ने एक sqaure पर इकट्ठे हो कर धरना दिया और सरकारों को झुकने पर मजबूर कर दिया।
तौर तरीके जो इस्तेमाल किये गए
इस पूरे घटनाक्रम में पुराने तरीको के अलावा कुछ नए और अनजाने तरीके भी इस्तेमाल किये गए।
नीचे कुछ शब्द दे रहा हूँ, इन्हें कृपया अपनी डिक्शनरी में ढूँढिये,पढिये और समझिए। भारत मे भी अब आपको ये शब्द आसानी से सुनने को मिल रहे हैं, मिलते रहेंगे।
रातों रात सैकड़ो फेसबुक पेज बने, हजारो ट्विटर हैंडल बनाये गए। लोगो को mobilize करने का काम शुरू हुआ।
लोगो को इकट्ठा करना अब काफी आसान था, फिर चाहे शांतिपूर्ण प्रोटेस्ट्स हो, पत्थरबाजी करनी हो…
ये सब अब एक ट्वीट या एक फेसबुक पोस्ट से संभव था।
सरकार विरोधी ब्लॉग्स और वेबसाइट की बाढ़ आ गयी,
आज़ादी और ह्यूमन राइट्स के किस्से कहानी सुना कर लोगो को भड़काना शुरू किया गया।
ट्यूनिशिया में एक सर्वे किया गया था,
जिसमे 90% लोगो ने कहा कि इस uprising में उनका मुख्य टूल था सोशल मीडिया।
सोशल मीडिया को रोकना आसान नही था, क्योंकि तब तक इसके प्रभाव के बारे में सत्ता में रहने वाले लोगो को अंदेशा ही नही था।
सत्ता केवल मीडिया पर रोक लगा सकती है, यहां तो स्मार्टफोन रखने वाला हर इंसान एक पत्रकार की भूमिका निभा सकता था।
अरब स्प्रिंग से हासिल क्या हुआ?
लोगो को भड़काया गया, उन्हें ये दिखाया गया कि तुम्हारी जिंदगी बर्बाद है, आइये इस गुलामी से, इस गुरबत की ज़िंदगी से आज़ादी लेते हैं।
सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया द्वारा लोगो को भड़काया गया।
मोहम्मद बुजीजी की मौत, उसके जलने के दृश्य, अस्पताल में उसकी तस्वीरों से हर स्मार्टफोन को भर दिया गया।
जाहिर है,
जब आपको एक ही तरह का कंटेंट मिलेगा, तो भड़कना लाजिमी है।
और आप किसी को भी कहें कि आपकी जिंदगी में में दुख है, कमी है, आप पर अत्याचार हो रहा है….
तो 99.9% लोग किसी न किसी रूप में सहमति जता ही देंगे।
लोग अमूमन अपनी जिंदगी से खुश नही हैं।
अरब स्प्रिंग की वजह से कई देशों में सत्ता पलट गई।
ट्यूनिशिया, लीबिया, यमन,
इजिप्ट जैसे देशो में बड़े ही हिंसक तरीके से सत्ता बदली गयी।
लीबिया के तानाशाह गद्दाफी को लोगो ने अपने हाथों से मार दिया।
सीरिया में असद के खिलाफ Civil war शुरू हो गया।
अरब, कुवैत, बहरीन जैसे देशों ने इस अरब स्प्रिंग को ताकत से कुचल दिया।
मोरक्को, जॉर्डन और फिलिस्तीन में वहां के सत्ताधीशों ने जरूरी बदलाव किए और जान बचाई।
कुल मिलाकर 61,000 लोगो की अपनी जान गंवानी पड़ी।
सीरिया में सिविल वॉर की वजह से ISIS का उद्भव हुआ और वो धीरे धीरे सिरिया से होते हुए इराक़ और अन्य इलाकों तक पहुच गया।
उसके द्वारा हुई कत्ल ए आम को जोड़ दें, तो ये संख्या लाखो में पहुचेगी।
🔴गिद्धों ने जनता को एक छद्म लोकतंत्र और आज़ादी का लॉलीपॉप दिया,
जनता मासूम थी और पड़ गयी इस चक्कर मे।
सत्ता भी गयी, देश भी जल गया…..
आज तक ये देश संभल नही पाए हैं।
कोई भी चाहे तो इन देशों की इकनोमिक, न्याय व्यवस्था,
आम नागरिक के जीवन स्तर, काम धंधे, आम जनजीवन के स्तर के बारे में तथ्यात्मक आंकलन करे,
तो ये पता लगेगा कि 2010 से पहले और 2010 के बाद इन सभी इंडीकेटर्स में जबरदस्त गिरावट आई है।
🛑तो सवाल है कि आखिर मिला क्या?
उत्तर है ‘कुछ नही’
➖अब घूम फिर कर भारत पर आते हैं।
किसानों का आंदोलन चल रहा है…..
उससे पहले दलितों का आंदोलन चला,
CAA के नाम पर मुसलमानों का आंदोलन चला,
कभी जाट आंदोलन चलता है,
कभी गुज्जर आंदोलन चलता है।
ये सब हमारी ‘Fault Lines’ हैं…
जैसे जमीन के अंदर fault lines होती हैं…
उनके हिलने डुलने से भूकंप आता है…..
वैसे ही ये सब हमारे देश की फाल्ट लाइन्स है।
समय समय पर इनकी testing होती है।
इस बार माहौल एकदम गर्म था।
खालिस्तानियों द्वारा इसको हवा दी गयी,
मासूम किसानो को भड़का कर दिल्ली के मुहाने पर लाया गया।
2 महीने की घेराबंदी के बाद 26 जनवरी को चुना गया Action Day के लिए।
वो हर कोशिश की गई,
जिससे पुलिस या सरकार को भड़काया जाए।
वो हर काम किया गया जिससे किसी का भी खूब उबाल मारे और बदले में हाथ उठा दिया जाए।
लेकिन एक गोली नही चली,
एक भी जान नही गयी।
🔥क्या होता अगर एक भी मौत होती?
लाल किला ‘तहरीर स्क्वायर’ में बदल जाता…..
सोशल मीडिया,
मीडिया और अंतरराष्ट्रीय घेराबंदी होती,
देश भर में दंगे होते,
सरकार को किसान विरोधी और सिख विरोधी बताया जाता….
और emotional stories से मीडिया को पाट दिया जाता।
उसमे हम आप जैसे ‘भक्त’ भी फंस जाते।
और फिर शुरू होता India Spring या Indian Uprising…..
जिसका परिणाम होता भारत मे लोकतंत्र का खात्मा।
ये गिद्ध वो सब काम कर रहे थे जो arab spring के समय किये गए।
आप ऊपर जा कर पढिये, और अरब की जगह भारत सोचिए….
क्या ये सब अब भारत मे नही किया जा रहा?
आज गिद्ध परेशान हैं,
जान बूझकर एक एक्सीडेंट की मौत को सत्ता द्वारा की गई हत्या साबित नही कर पा रहे।
इन्हें दुख है कि नवनीत सिंह को मुहम्मद बुजीजी नही बनाया जा सके।
इन्हें दुख है कि लाल किले तक इनके लोग पहुच गए, फिर भी सरकार ने एक भी गोली क्यों नही चलाई।
इन्हें दुख है कि हजारो करोड़ की फंडिंग फूंकने के बाद भी इनके हाथ कुछ नही लगा।
चलिए गिद्धों के तो दुख है…..
लेकिन आम जनता का क्या…..
क्या आपको पता भी है कि पर्दे के पीछे खेल क्या चलते हैं?
पैटर्न्स समझना सीखिए,
घटनाओं को सही context में देखना सीखिए…..
चीजें जो होती हैं,
अमूमन वैसी दिखती नही। कभी कभी सबसे बड़ा होता है…..
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