सम्पादकीय
✍🏾जगदीश सिंह सम्पादक✍🏾
इंसान को अपनी औकात भूलने की बिमारी है!!
और कुदरत के पास उसे याद दिलाने की अचूक दवा!!
समय के सागर में उफनती लहरों के बीच इन्सानी सोच बौनी नजर आ रही है! हर तरफ तबाही का आलम है!जिधर देखिए प्रकृति अपनी विनाश लीला दिखा रही है बता रही हैं ऐ मतलबी मानव जितना तू मुझे परेशान करेगा! उसके दो गुना सौगात के रूप में तबाही तुझे लौटाता रहूंगा?।अभी कुछ दिन पहले भयानक गर्मी से दुनियां बिल बिला उठी थी,हर तरफ आग बरस रही थी पशु-पक्षी आदमी बेहाल हो चुका था सारी इन्सानी ब्यवस्था फेल हो गयी थी, त्राहि त्राहि मच गयी थी, फिर भी नहीं सम्हल रहा है स्वार्थी इन्सान!वास्तविक हरियाली के उपादान विलुप्त हो रहे हैं! पहाड़ों का क्षरण हो रहा है! कंक्रीट की बस्तियों के लिए जंगल काटे जा रहे हैं! जलाषयों, नदीयो ,तालाबों का अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है!कुआं ‘तालाब जो हमेशा भरा रहता था लबालब अब कल की बात हो गया!बाग बगीचा अब कहीं दिखाई नहीं देता! अपनी तबाही का खुद इंतजाम किया तो फिर क्यो इन्सान रोता ! पीपल, बट बृक्ष, इमली, जैसे विशालकाय पेड़ जो पक्षियों का आशियाना हुआ करता था अब समाप्त होकर इतिहास बन गये पक्षियों के ठिकाने उनके आशियाने खतम हो गये! तमाम प्रजाति के जानवरों तथा पक्षियों की प्रजातिया विलुप्त हो गयी!, आखिर यह किसकी देन है स्वार्थी मानव समाज अपने लिए खुद मौत का सामान इकट्ठा कर लिया हे।कहीं पानी बिना लोग मर रहे हैं!कहीं पानी सेमर रहे हैं! धरती अब धंसती जा रही है! जलजला आने का संकेत प्रकृति बराबर दे रही है!फिर भी होश में नहीं आ रहा है मतलबी इन्सान खुद को ही समझ बैठा है भगवान! जब की उसको उसके सामने ही प्रकृति कुपित होकर मिटा रही है सारा नामों निशान!,पूरी दुनियां बर्बादी के खेल में शरीक होकर मानवता के विनाश का खेल खेल रही है वर्चस्व कायम करने के लिए प्रकृति के ब्यवस्था में ही हस्तक्षेप कर रही है! परिणाम सभी के सामने है! समन्दर का जल स्तर लगातार बढ़ रहा है! ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं!आसमानी आफत से पहाड़ी इलाको में कोहराम मचा हुआ है!गर्मी की नर्मी के बाद अब वारिश से लोगों का जीना मुहाल हो गया! महज चन्द दिनो में ही जन जीवन बदहाल हो गया!प्रकृति के पूत उपादानों पर इन्सानी प्रहार का ही यह नतीजा है! प्रकृति कुपित होकर माकूल जबाब दे रही है! बता रही हैं ऐ मानव जब चाहूंगी मसल दूंगी! सम्हल जाओ वर्ना तेरा अस्तित्व मिटा दूंगी!कभी आग ,कभी गर्मी ,कभी पानी’ कभी तूफान के कहर को मिनल समाज झेल रहा है! रोजाना मौत से खेल रहा भयावह मंजर से पूरी दुनियां दहल उठी है! समय रहते अगर मानव समाज नहीं चेता तो आने वाले कल में जो त्रासदी होगी उसका जिम्मेदार भी स्वार्थी
समाज ही होगा।
सम्पादक जगदीश सिह