
सम्पादकीय
✍🏾 संतोष नयन सम्पादक✍🏾
कुछ आग नहीं¡ कुछ राख नहीं! धुआं यहां!—
हर रात ख्वाहिशों को सीने में जलते देखा है!!
खुशियां जितनी थी सब भाप बन उड़ गयी!
दुःख की चासनी में मैन दर्द को उबलते देखा है!!
जीवन का आगाज प्रारब्ध के साज के साथ शुरू होता है।
सभी को अपने कर्मों का किया भोगना ही पड़ता है।
यह तो जीवन का सांसारिक चक्र है!
नियति नियन्ता के ब्यवस्था में हमेशा चलता रहता है!
आनी जानी दुनियां है किसी का कोई नहीं होता!
बस प्रकृति के संचालन के लिए एक दुसरे से सम्बन्धों की कड़ी जोड दी जाती है!
वर्ना भगवान श्री कृष्ण ने जो गीता में उपदेश अर्जुन को दिया उससे तो सब कुछ आईने सरीखे दिखने लगता है।
कोई अपना नही आत्मा शरीर बदलती है!
अमर है!
अजय है!
अविनासी है!
सम्बन्धों का खेल तो माया की महादशा में प्रारब्ध के हिसाब से शुरू होता है!
जितने दिन जिनको साथ रहना है रहता जितना किरदार निभाना है निभाता है फिर पर्दा के गिरते ही यादों का कारवां छोड़ते नेपथ्य में चला जाता है।
ज़िन्दगी मे सब कुछ कायनाती हुक्मरान के हिसाब से ही होता है!
मिलना बिछड़ना सब नियति के आगोश में ही परवरिश पाता है!
यह तो माया लोक है स्वार्थ की बस्ती में जरुरत भर लोग साथ रहते हैं जरूरत पूरी होते ही अपना रास्ता बदल लेते हैं।
जरा गौर करें जनाब जिनके अंक पास में जीवन के खुबसूरत पल बिताए!
जिनके सहारे इस मायावी दुनियां को देखा !
जिनके आंचल में छांव पाकर परवरिश पाया उन्हीं को यह माया समय के साथ छिन लेती है।
तन्हाई की तरूणाई मे जब गहन निशा में गुजरा पल यादों का कारवां बन अश्कों की लडी बन चेहरे को भिगोता है तब इस स्वार्थ की बस्ती में गुजरा हर लम्हा कसक पैदा करते हुए बहुत दर्द देता है!
मगर देखता कौन है!
ज़िन्दगी खुद से सवाल करती है!
क्या पाया आज तक जिनके लिए सब कुछ लुटाया!
तुझे क्या मिला!
खाली हाथ आया था खाली हाथ जायेगा!
जीवन भर जिनके लिए सब कुछ किया वह भी बेगाना बना दिए!
जिनके लिए दिन रात भाग दौड़ करता रहा खुश करने के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया क्या खुश हो गये!
नहीं न !
यह मतलबी जमाना है!
यहा कोई नहीं अपना है!
जरा सोचो बचपन से लेकर उम्र के पचपन होने तक कितने साथ छोड़ दिए!
क्या उनको कोई याद करता है!
नहीं भाई इस मृत्यु लोक में रहकर परलोक को सुधार लो!
जो लोग चले गये वो और लोग थे!
जब तक सांस चल रही है हर कोई आस लगाए बैठा है!
सब अपना है!
जब की यही मृग तृष्णा है!
यही ख्वाबी सपना है!
कुछ भी साथ नही जायेगा!
सब यही रह जायेगा!
स्वार्थ से हटकर परमार्थ में जीवन को समर्पित करने वाले के लिए मालिक के महल में भी पूछ है!
वर्ना दिग्भ्रमित होकर भटकने वाले तो वहां भी भटकते हैं !
सत्कर्म की कठीन राह पर चलने वाले को बुलावा भी माया के विछोह से हटकर अकस्मात ही आ जाता है!
सच का साक्षात्कार करना चाहते हैं तो कुछ पल श्मशान के सुनसान वातावरण में बैठकर दिल को चीर देने वाली विस्मयकारी आग की लपटों के बीच चटकती हड्डियों की आवाजों को गौर से सुने,जहां माया भी महाकाल अविनासी के आश्रम से दूरी बनाकर खड़ी रहती है सबकुछ कुछ देर में ही समझ मेंआने लगता है।
बस यही सच है!
बाकी सब मिथ्या है!
यह जगत झूठ का पुलिंदा माया का आडम्बर है !
समय रहते जो सम्हल गया उसका कल भी सुधर गया।
मत करो अभिमान!
मत झूठे;अभिमान में किसी का दिल दुखाओ!
कर्म की फसल यहां नहीं वहा काटना है!
जहां चौरासी लाख योनियों मे आवागमन का हिसाब होता है
सबका मालिक एक 🕉️साईंराम🙏🏾🙏🏾