
सम्पादकीय
✍🏾 संतोष नयन सम्पादक✍🏾
क्या लेकर तू आया जग में– क्या लेकर तूं –जायेगा।
सोच समझ लें- रे -नर मूरख आखिर में- पछतायेगा!!——
आंख खोल तूं देख मुसाफिर जग ए मुसाफिर खाना है!
सब कुछ छोड़ यही पर तुमको खाली हाथ ही जाना है!
क्या लेकर तू आया जग में क्या लेकर तू जायेगा!
सोच समझ लें रे मन मूरख अन्त समय पछतायेगा!——-
सच के सतह पर जबरदस्त ठोकर मारता चन्द अल्फाज़ मतलबी संसार के विषाक्त परिवेश में मृत्यु लोक के रीत रिवाज में फंस कर मोहवस प्रारब्ध के परिधि में कर्म की खेती में अधर्म की अगेती फसल काट रहे मानव समाज के बृहद जीवन की पल पल परम धाम के निष्काम आवरण में पहुंचने का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।
आत्मा का परमात्मा से मिलन की आस लिए में न जाने कितने सहस्त्र वर्षों से ब्यथित मन संसारिक मोह-माया में उलझ कर आवागमन का चक्कर लगाते चौसठ हजार योनियों में भटक रहा है।जब की इस मायावी मृत्यू लोक के मायावी संसार में अपार सम्भावनाओ का द्वार उस अदृश्य परम सत्ता परम शक्ति से मिलन का खुला हुआ है!
मगर माया की विहंगम छत्र छाया में इस मिट्टी की काया को सन्मार्ग का ज्ञान हो ही नहीं पाता!
जब तक ज़िन्दगी में ताजगी भरी रहती आवारगी सर चढ़ कर बोलती रहती!
ज्योही उम्र का सूरज ढलने लगता हर पल यह जीवन खलने लगता!आखिर क्यों!
इसलिए कीअविरल प्रवाहमान परमधाम के भक्ति भरे राह से मन भटक गया!
वह सारे वादे भूल गया जो मां के गर्भ में आने के पहले सर पटक-पटक कर मालिक के दरबार में किया था!
नियति नियन्ता के कायनाती इन्तजामात में अकस्मात कुछ भी नहीं होता सब पूर्व निर्धारित है!
पूर्व जन्म के कर्म पर सब कुछ आधारित है!
बस रास्ते का चयन करना अपनी जिम्मेदारी बनती है!
कितनी अजीब बात है!
हर आदमी जानता है इस जहां से खाली हाथ ही जाना है!
फिर भी वह हर पल कल बल छल से धन लक्ष्मी को बन्धक बनाने का ख्वाब देखता रहता है!
अवतरण दिवस से लेकर परिनिर्वाण दिवस तक परिणाम से बेखबर रहबर बनने का ख्वाब लिए बेहिसाब वह ऐसा कर्म करता है जिसका परम धाम में कोई महत्व नही है।
अपनत्व के घनत्व में ममत्व का आवरण ओढ़े मानव उस तत्व को भूल जाता है जिसके वरदहस्त से आश्वस्त होकर मृत्युलोक में मस्त जीवन गुजार रहा है!
यह भी पता है जाना तो परमधाम में ही है!
वहीं आखरी मन्जिल है!
वहीं आखरी विराम है!
जो बोया इस जीवन में वहीं मिलेगा उस उपवन में! खैरात में कुछ भी नहीं मिलने वाला है।
महल,अटारी, धन सम्पदा,का कारवां हमेशा विपदा को साथ साथ लेकर ही चलता है!
जो इस काफिले में मोह की गठरी को सर पर रखा वह उपहास का पात्र बनकर इतिहास बन गया!
न जाने कितने सिकन्दर वक्त की दरिया में डूब गये।
-साधु ,सन्त फकीर,पीर ,औलिया ,अपनी तकदीर इस सबसे दूरी बनाकर ही लिखते हैं!
इस मतलबी दुनियां में इसी लिए सबसे अलग दिखते हैं!
जिनका नाम सदियों तक इस जमीं पर कायम रहता है!
सारा जमाना उनके चरणों में झुकता है।
एहतराम करता है!
सलाम करता है!
धन लक्ष्मी को बन्धन्क बनाकर जिसने अहम पाल लिया उसका न मुकाम रह गया न उसका कहीं नाम रह गया!
गुमनाम हो गया मतलबी जमाने की भीड़ में!
तमाम रियासतें दफन हो गयी, तमाम सूरमा मिट्टी में मिल गये, तमाम राजघराने जिनकी कभी तूती बोलती थी खंडहर में तब्दील होकर दहशत का पर्याय बन गये है!ये वक्त है साहब जिसने इसकी कद्र नहीं किया उसकी कद्र वक्त भी नहीं करता है!
गरीब असहाय, लाचार ,बीमार,लावारिश की परवरिश करने वाले का जीवन उसके अन्तर्मन में बिराजमान उस अदृश्य शक्ति का शानिध्य पाकर धन्य हो जाता है जिसने करूणा का रसास्वादन दीन दुखियों को कराया!उसका प्रारब्ध से मिला जीवन पारितोषिक में बदल जाता है।बहुत भाग्य से हजारों योनियों में श्रेष्ठ योनि मानव योनि नसीब होती है।
किसी की बुराई करने के पहले हजार बार सोचिए!किसी लाचार विवश की बद्दुआओं से बचकर रहने वाला जीवन का आखरी सफर भी एहतराम का शानिध्य लिए श्मशान में भी किर्तिमान स्थापित कर हमेशा हमेशा के लिए इतिहास बन जाता है।
सबका मालिक एक
🕉️ साईं राम🌹🌹🙏🏾🙏🏾