*सम्पादकीय*
✍🏾जगदीश सिंह सम्पादक ✍🏾
*अपनों के साथ खेल ना किया करो साहब*!!
*गलती से जीत गये तो बहुत कुछ हार जाओगे*??
बदलती दुनियां ,बदलते लोग, खंडहर होती दिल की ईमारतें, और आखरी सफर की उदास राहों में मटिया मेट होती हसरतों के सानिध्य में पल पल गुजरती ज़िन्दगी के छांव तले इस मतलबी संसार का कालचक्र अपनी कालजई गति को स्थिर नहीं कर पा रहा है। हर कोई मतलबपरस्ती की गीत गा रहा है।जरूरत भर साथ के बाद अनाथ बनाकर अजनबी बन जाना तो आम बात हो गयी है। न जाने चन्द दिनों का मेहमान बनकर आया आदमी अपने को इस कायनात का अनमोल धरोहर समझ बैठता है। माया लोक के इस पड़ाव पर रूकते ही अपने को शहंशाह समझने लगता है!जब की हर रोज वह देख रहा है प्रिय जन रोज साथ छोड़ रहे हैं! हताश उदास अपनो के बिछड़ने का अहसास करीब से सभी कर रहे हैं।आखिर जब यह जगत ही मिथ्या है तो फिर किसके लिए धन, सम्पति, महल अटारी के संरक्षण में मानवीय मूल्यों का भक्षण कर रहा है आदमी! गीता में वर्णित श्लोक में जब साफ साफ लिखा है आत्मा अमर है! न कभी मरती है न वजूद विहीन होती है!केवल शरीर बदल देती है!फिर भी इस मायावी जगत में अधर्म का रास्ता लोगों को सस्ता क्यों नजर आने लगा है!जब की सभी को पता है कोई अपना नही है।धनलक्ष्मी की प्रभाव शाली आस्था के चलते आपसी समरसता अपनों से अलगाव का रास्ता विवशता बन गया है। देखिए न इस बदलते युग में मातृ देवो भव: पितृ देवो भव का मूल मंत्र षड्यंत्र का शिकार हो गया।अब श्वसुर देव देवो भव: सास मां देवो भव:का नया सूत्र इजाद हो गया है। अपनत्व का घनत्व स्वामित्व के महत्व के बलवती होते ही उस दर्द के स्पंदन से दूर हो गया जो कभी चाहत की बस्ती में महत्व पूर्ण हुआ करता था! चाहत के चितेरे उस अंधेरे मार्ग पर चल निकले जो भारतीय संस्कृतियों के मूल्यों का उपहास कर रहा है!घर पराया हो गया! रिश्तों की फेहरिस्त में मां बाप का सम्बन्ध आया का बन गया,! चौखट की चौहद्दी में में हद बन्दी हो गयी!अपनों की सोच और मानसिकता गन्दी हो गयी!इसी लिए तो अनाथालय,वृद्धा आश्रम आज आह कराह तथा चाह के संगम में हमराह की तलास का संसाधन बन गया! जिस महल को ख्वाबों की बस्ती में सजाया संवारा उसी का आखरी वक्त में सूना आंगन हो गया!आज आधुनिक जमाने का दिखावटी बनावटी त्योहार रक्षाबंधन भी क्रन्दन कर रहा है।समाज में मानसिक विकृतियों की चपेट में आकर विवेक खोने वाले नौजवानों की बढ़ती पैदावार सम्बन्धो के खुशगवार मौसम को विषाक्त कर रहा है! हर तरफ आज शोर है! हर कोई अपने में भाव विभोर है! तब भी मातृशक्ति पर अत्याचार घनघोर है! आखिर क्यों ! कितना दोगला आज का हो गया है इन्सान! घर में मां बाप बे आबरू है फिर भी वाटशप पर सम्बन्धों का तिजारती शोर भरा तूफान है!आज बहनों के लिए पवित्र पारम्परिक त्योहार है रक्षा बन्धन है हर तरफ हर्षोल्लास है! लेकिन पश्चिम बंगाल में हाहाकार है। काश आज कलकत्ता की घटना के विरोध में मातृशक्ति शोक दिवस के साथ ही ललकार दिवस मना कर अपने भाईयों को सन्देश देती की सम्बन्धो की श्रृंखला में हर अबला बराबर की भागीदार है। आज महिला समाज के सामाजिक संगठनों के प्रेणताओ को आगे आना चाहीए था। इसका एलान करना चाहीए था!आज खुलेयाम रक्षा बन्धन का विरोध कर सन्देश देना चाहीए था की हर बेटी सुरक्षित रह सके! या यह आन्दोलन बन जाना चाहीए था की रक्षा बांधते समय बहने कसम दिलाती भाईयों को हर बहन बेटी अपनी है। उस पर नजर गन्दी मत करना भाई! यह बचन बहनों को भाईयों से लेना ही चाहीए! लेकिन समाज में फैली कुरितियो के सानिध्य में पल रहे घटिया सोच के शागिर्दों में इतना आत्म बल कहां! जो समाज में फैली रही विकृत सोच को बदलने की दिशा में कदम आगे बढ़ाते! सारे सामाजिक संगठन तिजारती बन चुके हैं दिखावटी बन चुके है अब राजा राममोहन राय के रास्ते पर चलने वाला कोई नहीं है! सब कुछ दिखावटी है! मिलावटी है!आज कलकत्ता तड़फड़ा रहा है! कल कहीं और दर्द उभरेगा! यह देश लगता है कभी नहीं सुधरेगा! आज जो चुप बैठे हैं कल पश्चाताप करेंगे!———??
।सबका मालिक एक ऊं साई राम।—-जगदीश सिंह सम्पादक राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय पत्रकार संघ भारत
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