
दाउदपुर के दिन

खण्ड एक
ब्रिटिश कालीन भारत का एक प्रान्त बिहार, जिसका एक अतिप्रसिद्ध जिला सारण आज भी अपनी गरिमा को स्वतंत्र भारत में भी बनाये हुए हैं। इसी पुराने सारण में से काटकर दो जिले सिवान और गोपालगंज बनाएं गये। सारण जिले का दाउदपुर स्टेशन ब्रिटिशकाल में जितना महत्वपूर्ण था, उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण अब हैं। दाउदपुर स्टेशन सारण के मुख्यालय छपरा जंक्शन से तीसरा पश्चिम की ओर तथा सिवान जंक्शन से पूरब की और छठा स्टेशन हैं। इस स्टेशन के चारों तरफ दूर दूर तक लगभग पचास गाँव बसे हुए हैं। यह दाउदपुर स्टेशन ही कभी सुबह की सुहानी हवा में मॉर्निंग वॉक के अतिरिक्त आजादी संग्राम से लेकर जेपी आंदोलन तक क्रांतिकारियों का मुख्य केन्द्र रहा। सन १९४२ का भारत छोड़ो आंदोलन हो अथवा जेपी आन्दोलन ऐतिहासिक रेल बन्दी हो सबका साक्षी रहा। १९७१ ई० में भारत पाकिस्तान युद्ध में जब पाकिस्तान के सैनिक भारत में बन्दी बनाकर लाए गए तब दाउदपुर स्टेशन प्लेटफॉर्म उन तमाम बंदी सैनिकों का भोजन स्थल बना। तब केवल एक ही प्लेटफॉर्म दाउदपुर स्टेशन पर था। उन दिनों इस क्षेत्र में मझोली रेलवे लाईन थी। तभी दाउदपुर स्टेशन से ही गन्ने की लदनी होती थी और मालगाड़ी पर लाद कर गन्ना यहाँ से विभिन्न चीनी मिलों में भेजा जाता था। तब यह दाउदपुर स्टेशन सुन्दर फूलों से सजा-धजा रहता था।
समय के अंतराल पर मझोली लाइन बड़ी लाइन में तब्दील हो गई। दो प्लेटफॉर्म भी बन गए। एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफार्म पर जाने के लिए ऊपरी पूल भी बन गया। गाड़ी के आने की सूचना देने के लिए घंटी के बदले ध्वनि विस्तारक यंत्र भी लग गया। दो एक्सप्रेस ट्रेनों का ठहराव भी होने लगा। परन्तु फूलों से सजे स्टेशन की शोभा समाप्त हो गई। इसकी मनोरम छटा गायब हो चली। हालांकि स्टेशन के दक्षिण पेड़ों की हरियाली अभी भी कायम हैं। पहले जब दाउदपुर स्टेशन पर लैम्प पोस्ट की बत्तियां जलती थी तो वह दृश्य काफी मनोरम लगता था। गाड़ी के ईजनों में यही पर पानी भड़ा जाता था। यही पर पानी टंकी बनी थी, जो स्टेशन के पश्चिमी छोड़ पर थी। तब स्टेशन पर जगह जगह पानी पीने के टैब लगे हुए थे। अब दिनों प्लेटफार्म पर चापा नल हैं। क्षेत्र के हर तबके से सरोकार रखता आया हैं, यह ऐतिहासिक दाउदपुर स्टेशन।
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