सम्पादकीय
✍🏿जगदीश सिंह सम्पादक✍🏿
मरने के बाद भी ठगे जाते हैं साफ दामन वाले!!
कफ़न उन्हें भी सफेद ही मिलता है जो शख्स दागदार है??
जीवन का प्रकृति प्रदत्त नियम है सीधे साधे पर सबकी नजरें इनायत होती है टेढ़े से किसी को नहीं शिकायत होती है। इस समाज का भी अजब नियम है हर किसी के लिए आखरी वक्त में एक ही पैरहन एक ही कफन है। चाहे राजा हो या रंक! आखरी सफर में जाते जाते सबका मिट जाता है कलंक! श्मशान हो या कब्रिस्तान जाते जाते सभी का होता है एक ही फरमान बनकर रहो इन्सान साथ कुछ भी नही जायेगा? खाली हाथ आया खाली हाथ ही जाना है।इस जहां में मतलब का हर कोई दीवाना है।सराफत के जीवन के वाद वरासत पाने वालो के लिए श्मशान पर कुछ घन्टा ठहरना मुश्किल हो जाता है। जिनके लिए जीवन भर मेहनत से धन सम्पदा महल अटारी खेती बारी झूठ सच्च की ।ईबारत के सानिध्य में अपनों से भी तिजारत करते रहे! वह भी चली चला की बेला में अकेला छोड़कर मुंह मोड़कर जब चले तो आपने वहीं कहने लगे यही बिधि का बिधान है!यह तो सदियों से भगवान का चल रहा सम्विधान है!कुछ देर के लिए ग़म में डूबे अपने मन्सुबे को जाहीर कर देते हैं?वह तो जाना ही था समय पूरा हो गया था!कौन यहां रहने आया है।शास्त्र ने भी यही बताया है !मुनी मनीषियों ऋषियो ने भी यही समझाया है! फिर भी माया के विहंगम लोक में अवतरित होते ही आदमी स्वार्थ का रसास्वादन कर प्रारब्ध का अभिवादन कर खुद के शब्द का परिमार्जिन कर समय के साथ मगरुरीयत का शिकार हो जाता है?उसके भीतर इतना विकार भर जाता है की एक ही मां बाप की सन्तान होने के बावजूद भी अधिकार का सवाल उठाकर रिश्तों की हत्या कर देता है?अच्छे खासे खुशहाल परिवार में सारी ज़िन्दगी भर की समस्या भर देता है।तिरस्कार, तकरार के साथ ही बिचार भी प्रदुषित हो जाता है! जिनके लिए सब कुछ करता है वहीं उसी के साथ तमाशा करते हैं?जरूरत भर साथ रहकर किनारा कर लेते हैं? सम्बन्ध में प्रतिबन्ध का जिस तरह से निबन्ध स्वार्थी लिखते हैं अगरअन्तिम यात्रा के समय का अनुश्रवण कर लेते तो जीवन धन्य हो जाता!———————
जिन पर लुटा चुका था दुनियां की दौलतें!!
उन वारिसों ने कफ़न भी हमें नाप कर दिया??
इस मतलबी संसार में दया ,करुणा, अपनत्व सब कुछ स्वार्थ के सागर में समाहित होकर
इन्सानियत के महत्व का जनाजा उठा दिया है!जिनको अपना मानते रहे उन्हीं के बीच शव उठाते समय भी तमाशा हो गया?वहीं धन सम्पदा बर्बादी की परिभाषा बन गई!जीवन का सच जानना है तो कुछ देर एकाग्रचित होकर श्मशान के किनारे बीरान जगह पर बैठ जाईए! हकीकत हांफती भागती चिल्लाती नजर आयेंगी वहीं मौत मुस्कुराती इठलाती बलखाती अपनी औकात को दिखाती मूर्ख मानव के कर्मों पर मुस्कुराती नजर आयेंगी! रामनाम सत्य के जयकारे के साथ सारे कर्मों को इस संसार में छोड़कर अन्तिम यात्रा का मुसाफिर जब असहाय लाचार होकर लप लपाती चिता में जलता है तो उसकी चटकती हड्डियों कि आवाज में बेदना करुणा सुनाई दे्ता है!कहती हैं मत कर तू अभिमान रे बन्दे साथ नही कुछ जान है। मगर वही नियति है समय रहते तो आखरी बिदाई का होश भी न है! महाकाल अविनाशी के आश्रम मे पहुंचते ही सारे धर्म कर्म का हिसाब शुरु हो जाता है।कफ़न भी शरीर से हटा लिया जाता है। रश्म अदायगी के बाद कौन श्मशान जाता है!सदियों से चली आ रही परम्परा का परिशीलन आज भी उसी तरह से कायम है। जब तक सृष्टी रहेगी आखरी सफर पर निकलने के पहले अन्त्येष्टि होती रहेगी!आज का आधुनिक समाज बिना पंख चढ़ रहा है परवाज़!स्वार्थ के सौदागरों ने विकृति भरा खेल शुरु कर दिया है। जिसके आगोश में नाता रिश्ता सब ला वास्ता होता जा रहा है।खुद को फरिस्ता बनने का ख्वाब लिए ही इस जहां से रुखसती करने को मजबूर आदमी सादगी मे सफर कर रहा है। सभी एक ही राह के मुसाफिर है फिर भी मुगालता पाले इन्सान झूठे मान सम्मान स्वाभीमान के लिए इन्सान होने से गुरेज कर जाता है।सब कुछ याद आता है मगर सफर जब तन्हाई में गुजरता है। तब कल को जानने के पहले आज में जीएं करूणा श्रद्धा समर्पण को अर्पण करें।?साथ कुछ नहीं जाएगा? सहयोग सद्भावना के साथ अपनी भावना का उद्गार जनहित में करें?
सबका मालिक एक 🕉️साईनाथ
जगदीश सिंह सम्पादक
7860503468