
🔔🔔 राम वन गमन 🔔🔔
🌹🌹🌹 भाग 40🌹🌹🌹
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शुक्ल
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सज्जनों , गंगा जी के किनारे पर स्नानादि कार्य करके श्रीराम जी , लक्ष्मण , सीता एवं मन्त्री सुमन्त्र रास्ते की थकान मिटाने लगे । तभी यह समाचार निषादराज गुह को मिला ।
कुछ भील दौडे़ दौडे़ निषादराज के पास पहुँचे और उनसे कहते है —स्वामी !
जिनका नाम अभी तक हम सुनते रहे है अहिल्या का उद्धार करने वाले ,
शिव धनुष तोडने वाले श्रीराम अपने भाई ,
भार्या एवं मन्त्री सुमन्त्र के साथ गंगा जी के किनारे पर बैठे है ।
हे स्वामी !
मुझे एक बहुत बडा़ आश्चर्य दिखा – श्रीराम और लक्ष्मण मुनि वेष मे है ।
जैसे ही यह समाचार निषादराज ने सुना –
*
यह सुधि गुँह निषाद जब पाई ।
मुदित लिये प्रिय बन्धु बोलाई ।।
*
लिए फल मूल भेंट भरि भारा ।
मिलन चलेउ हियँ हरषु अपारा ।।
मित्रों – निषादराज ने जैसे यह समाचार सुना उसकी प्रसन्नता का ठिकाना नही रहा ।
उसने तुरन्त अपने भाई बन्धुओ को एकत्र किया और थोडे़ से फल फूल लेकर श्रीराम जी का दर्शन करने के लिये चल देता है ।
गुहराज प्रेम मग्न है ,
क्या श्रीराम मुझे अपनायेंगे ?
श्रीराम मुझसे गले तो मिलेंगे नही ?
मुझसे बात करेंगे ?
चलिये कोई बात नही अगर वे मुझे एक बार देख भी लेंगे तो मेरा उद्धार हो जायेगा ।
ऐसी मन मे तरह तरह की कल्पना करता हुआ निषादराज भगवान श्रीराम के सम्मुख पहुँचा ।
मित्रों –
इस प्रसंग पर एक बात जरुर कहना चाहूँगा ,
रात दिन पुण्य का दावा करने से अच्छा है कि व्यक्ति यह कहे कि मै पापी हूँ ।
क्या हम अपने आपको पापी कह सकते है ?
मन्दिर मे भले ही मन कहे कि मै पापी हूँ ,
दीन हूँ पर बाजार मे यदि कोई कह दे कि तुम पापी हो तो उस पर मानहानि का केश कर देंगे ।
संत इसलिये हमसे आगे हैं कि वे अपने आपको पापी कहने की छमता रखते है और पुण्य कहते हैं इसलिये पीछे हैं ।
हम किसी दिन व्रत रहें और उस दिन कोई हमसे पूँछे ,
भोजन किया ?
तब उसे और उसके माध्यम से और लोगो को यह बताते हुये बहुत आनन्द आता है कि आज हमारा व्रत है ।
धन्य है गोस्वामी बाबा ,
सूरदास ,
जिन्होने लोगो के सामने यह कहा कि हम पापी हैं ।
जीवन मे एक बात जरुर मान ले कि पाप को प्रकट करने एवं पुण्य को छिपाने से ही कल्याण होगा ।
दूसरा कोई रास्ता नही है ।
सज्जनों – एक पापी प्रभु की शरण मे आ रहा हैं ।
दूर से भगवान के चरणारविन्द मे दण्डवत प्रणाम किया –
करि दण्डवत भेंट धरि आगे ।
प्रभुहि बिलोकत अति अनुरागे ।।
निषादराज के नेत्र सजल हो उठे ।
श्रीराम जी ने गुह की भाव दशा देखी – गुह हाँथ जोडकर कहता है – महराज !
मै तो पापी हूँ ,
भील हूँ ।
दुनिया कहती है कि जो गंगा स्नान करता है वह पबित्र हो जाता हैं ,
पर हम तो रोज स्नान करते हैं फिर भी गंगा हमे पबित्र नही करती ।
अब गंगाजी को भी पबित्र करने दूसरी गंगा आ गयी है , अतः अब सायद हमारा बेडा़ पार हो जाय ।
सजल नेत्रो से गुह राम दर्शन मे मग्न है ।
उसका भावावेश देखकर राम जी ने उसे अपने पास हाथ पकडकर बैठाया –
सहज सनेह बिबस रघुराई ।
पूँछी कुशल निकट बैठाई ।।
गुह दण्डवत प्रणाम किये लेटा है ,
भगवान श्रीराम ने गुह का हाँथ पकडकर खडा़ किया ।
यह गुहराज की कल्पना के बाहर था ।
उसने सोचा था कि श्रीराम जी एक बार मेरी ओर देख ले यही बहुत है पर जब गुह को रामजी ने गले लगाया तब गुह देहभान भूल गया ।
आज गुहराज राम रुप बन गया ।
मित्रो – गोस्वामी बाबा ने दिखाया कि यहीं से रामराज का उद्घाटन हुआ ।
रामराज की कल्पना करना है तो सबसे पहले झोपडी़ मे बैठे हुये को बुलाने जाना चाहिये । रामराज के विषय मे सोचना भी हो तो जिसकी आँखो मे आंसू बहते हो उसे प्यार करो ।
श्रीरामजी यहाँ से पहला कदम रामराज का चले हैं ।
मित्रो – हम ब्राम्ह्यण कुल मे जन्म लिये है तो इसका अर्थ यह नही कि हम दूसरो को नीच माने ।
तिलक लगाने वाले यह सोचें कि तिलक न लगाने वाले अपबित्र हैं ।
कौन पबित्र ,
कौन अपबित्र ?
कौन बडा़ ,
कौन छोटा ?
इसका निर्णय जिसने जन्म दिया है उसे करने दो ।
ईश्वर का नियम अपने हांथ मे न लो ।
हमे क्या अधिकार है कि ईश्वर की सृष्टि को नीच गिनने का ?
हमे तो सब एक लगते है ।
चतुराई चूल्हे पडी़ धिकहि पड्यो आचार ।
तुलसी हरि भक्ति बिनु चारो बरन बिचार ।।
बस जीवन मे प्रेम चाहिये । राम कथा तो प्रेम प्रधान कथा है ।
यह राग प्रधान ग्रन्थ है ,
विराग प्रधान नही ।
मित्रों – आज निषादराज रामजी की भुजा मे बन्द हैं ।
यह मनुष्य कितना भाग्यशाली है धीरे से प्रभु के हाँथ मे से निकला और उनके चरणों पर गिर पडा़ ।
रामजी गुहराज को बुलाते है ,
तब गुहराज इतना ही बोल सका – महराज !
मेरा आज आपने बेडा़ पार कर दिया ।
आज मेरी धरती पबित्र हो गयी ।
सदियों से हमे कोई नही बुलाता ~आज आपने पतितपावन नाम सच साबित कर दिया ।
मित्रों यदि रामजी की संस्कृति को अपनाना है ,