
शरीर में बद्ध आत्मा विफलता के लिए अति प्रवृत्त है: राकेश तिवारी वरिष्ठ समाजसेवी
“सबसे पहले मुझे लगता है कि आपको पता होना चाहिए कि ऐसी समस्याएं बहुत अप्राकृतिक नहीं हैं क्योंकि शरीर में बद्ध आत्मा विफलता के लिए अति उद्यत होता है। लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि ऐसी विफलता हमें हमारे जीवन के सबसे महत्वपूर्ण मिशन, पूर्ण रूप से कृष्ण-भावनामृत में बने रहना को निष्पादित करने से हतोत्साहित नहीं करेगी। जो कुछ भी पतन हुआ है, आपको उसके लिए खेद होना चाहिए, लेकिन यह न तो इतना गंभीर है और न ही यह एक स्थायी अयोग्यता है। लेकिन आपको ऐसी कृत्रिम चीजों से खुद को जांचने की कोशिश करनी चाहिए और भगवान श्रीकृष्ण के चरण कमलों का पूर्णरूपेण आश्रय लेना चाहिए।”
(श्रील प्रभुपाद का उपेंद्र को पत्र – लॉस एंजिल्स, 9 दिसंबर 1968)
“परम विजयते श्रीकृष्ण संकीर्तनम” कलियुग में यह संकीर्तन आंदोलन (भगवान के नाम का जप और कीर्तन) मानवता के लिए परम वरदान है और यह भगवान से सीधे जुड़कर भगवदप्रेम विकसित करने की सर्वोत्तम सरल विधि है। इसीलिए सदा ही भगवान के नाम का जप करिए और ख़ुश रहिए।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे