
“प्यार का मंदिर……
दरवाजे पर घंटी बजी….
रानी बिटिया देखो तो इसवक्त कौन आया है कहीं मोहन तो ….हे भगवान मेरा बच्चा …कहकर सुषमा जी स्वयं ही दरवाजे की ओर दौड पडी …दरवाजा खोला तो सामने लालाजी और एक काले कोट मे व्यक्ति खडा था …
अरे लालाजी आप ….आइए अंदर आइए ….
नही जी बस ….वकील साहब वो.. …
जी….लीजिए …कहते हुए वकील साहब ने कुछ पेपर्स सुषमा जी के आगे बढा दिए
ये कया है लालाजी….
आखिरी नोटिस ….बहनजी आपको अगले तीन दिनों में ये घर जिसे आप लोग प्यार का मंदिर कहते है खाली करना है ….
जी….ये आप कया कह रहे है लालाजी …हम कहा जाएंगे ….दया कीजिए ….लगभग गिडगिडाते हुए सुषमा जी बोली
देखिए बहनजी ….दया ही कर रहा था अबतक ….वरना तीसरे नोटिस पर ही ये घर ….ये चौथा और आखिरी नोटिस है या तो अगले तीन दिनों में मेरा पैसा ब्याज सहित लौटा दीजिए या ये घर छोडकर चले जाइएगा …नीलामी का नोटिस है ये परसों इस घर की नीलामी होगी मेरे पैसे की वसूली के लिए …..
पर लालाजी…. मे ….
आप तो सब जानते है मोहन के पिताजी के एक्सीडेंट के बारे मे उनके दोनों पैर ….ऐसे में उन्हें लिए कहा जाऊंगी मे ….ऊपर से जवान बेटी …लालाजी रहम कीजिए ….
देखिए बहनजी ….मे व्यापारी आदमी हूं ऐसे रहम करता रहा तो चला लिया मैने धंधा …..बस बहुत हुआ ….
और ये सब आपको पैसा लेने से पहले सोचना चाहिए था …जय राम जी की ….चलो वकील साहब ….
कहकर लालाजी चले गए ….
पीछे जैसे ही सुषमा जी आँँखे पोछते हुए मुडी तो पतिदेव सुरेन्द्र बाबू व्हील चेयर पर दिखे …
कया हुआ सुषमा…कया फिर से नोटिस …..उफ्फ…. मेरे ये पैर …..कमबख्त….मे कुछ कर भी नहीं सकता ….
पापा ….घबराइए मत ….मैंने अपने एक सहेली से बात की है उनके यहां किराए पर ….
पापा मम्मी हमें ये घर खाली करना ही होगा अब और कोई चारा नहीं बचा ….लाखों रुपए बकाया है हमपर और वो हमारे पास है नही ….मे जो कमाती हूं उससे घरखर्च और किराया निकल जाएगा …..
पर रानी ये घर ….हमारा प्यार का मंदिर ….
मां …..अब ये हमारा घर नही रहा ….अब हमें समान समेटकर चलने की …..कहकर वह भी सुबकने लगी
काश….मोहन …..
बस मां….भूल जाओ उन्हें ….भूल जाओ …..अब वो वापस नहीं आनेवाले…
रानी ….कया बकती है ….
सही कह रही हूं पापा …..आपके साथ इतना बड़ा हादसा हो गया और वो …..आखिर कया कसूर था हमारा …..
यही की उनपर विश्वास ……पापा फोन तक नहीं उठाते वो …..
सच कहते है लोग विदेश जाकर अच्छे अच्छो के दिल बदल जाते है पहले यकीन नहीं होता था मगर अब जब अपने घर का बेटा ही…….
गलती उसकी नही है मेरी ही है ….मे ही पीछे पडा था उसके ….वो आखिरी समय तक अमेरिका जाने से मना करता रहा ….
मगर मैंने ही …..अच्छा सालाना पैकेज ….
उफ्फ…… मुझे कया पता था मेरे साथ ये हादसा हो जाएगा और मे ….
पापा …..जरूर भैया को वहां कोई लडकी मिल गई है सुना है मैने वहां सैटल होने के लिए लडके वहां की लडकियों से शादी करके पक्का हो जाते है और भूल जाते है अपने देश अपने मां बाप को.. ….
मन बदलते समय नही लगता ….भूल गए है मोहन भैया हमें …मान लीजिए आप लोग….आपको… मां को ….अपनी इस छोटी बहन को जिसे वो बेटी…..
मां …..कहकर सीने से लग गई
तीनों मां बाप बेटी एकसाथ रोने लगे ….मगर अब हो कया सकता था मोहन जिसे बडी उम्मीदों से सुरेन्द्र बाबू ने अमेरिका भेजा था ताकि वो वहां कामयाब होकर यहां उनके लिए एक मजबूत कंधा बन सके इसी उम्मीद से उन्होंने अपना घर जिसे वह प्यार का मंदिर कहते थे गिरवी तक रख दिया था हालांकि उसवक्त मोहन मना करता रहा उसे उनसब से दूर नही जाना वो यही रहकर कम कमाकर अपनों के साथ रहना चाहता है मगर पिताजी की जिद के आगे उसे झुकना पड़ा ….
बेटा मोहन……मे कामयाब नहीं बन सका तो कया ….
वो मेरा सपना मेरा बेटा पूरा करेगा ….
जानता है मेरा बचपन से सपना था मे भी विदेश जाऊं वहां जाकर अपने माता पिता के लिए खूब कमाकर लौटू ताकि मेरे माता पिता भाई बहन गर्व से कहे देखो ये है मेरा बेटा ….उन्हें हर सुख सुविधाएं दूं……
पूरी कालोनी में मेरे घरवालों का नाम ऊंचा हो ….
मगर जिम्मेदारियों ने ऐसा घेरा की ….मोहन तू वो सपना जिऐगा…मेरा वो सपना तू साकार करेगा ….बोल करेगा ना ….
आखिर मोहन को पिता का कहा मानना पडा और वो सालाना पैकेज पर एक विदेशी कम्पनी के आँफर पर अमेरिका चला गया ….
पहले पहल शुरुआत में वह तीन चार दिनों में फोन करने लगा मगर जब पिताजी ने उसे डांटा और कहा वह ऐसे फोन पर फिजूलखर्ची करेगा तो कया कमाएगा …
फिर हफ्ते दर हफ्ते फोन करने लगा ….सबकुछ ठीक ही था कि अचानक उसने फोन करना ही बंद कर दिया …..
इधर सुरेन्द्र बाबू नौकरी करते थे और बेटी रानी कालेज मे पढती थी …एकदिन एक बच्चे को सडक पर बचाते हुए वह स्वयं ट्रक की चपेट में आ गए और दोनों पैरों को खो बैठे ….
चूंकि उनके दोनों पैर नही रहे तो कम्पनी वालों ने उन्हें अनफिट घोषित कर सहानुभूति राशि देते हुए कम्पनी से हटा दिया ….वो सहानुभूति से मिली राशि से कुछ इलाज तो कुछ ब्याज रुप मे खर्चा होने लगा मगर उसके बाद कया ….
आखिर घरपरिवार चलाने के लिए रानी को एक नौकरी करनी पडी ….अभी जैसे तैसे वह हादसे से उभरना शुरू कर ही रहे थे कि लालाजी की ब्याज बढने लगी और आखिर ब्याज ना भर पाने के कारण वो नोटिस पर नोटिस देने लगे ….और आज आखिरी नोटिस भी आ गया ……
उफ्फ….. ये भी इसीदिन पर ….
कया हुआ जी….
याद है सुषमा …..शादी के दो सालों बाद मैने तुम्हारे जन्मदिन पर ही ये घर तुम्हें उपहार स्वरूप दिया था और परसों ……परसों वहीं तारीख है ….
तुम्हारे जन्मदिन पर ही हमें ये घर जिसे तुमने प्यार से नाम दिया था उस घर उस प्यार के मंदिर को ….छोडना पडेगा ……
हे भगवान …..कितने प्यार से एक एक ईट जोडकर …..कहते हुए सुषमा जी सुरेंद्र बाबू सहित एकबारगी फिर सुबक पडी …….
मगर मन को समझाकर आखिरकार सबने समान पैकिंग करना शुरू कर दिया और तय दिन पर बाहर घर छोडने के लिए ट्रक भी आ गया …..
अभी समान ले जाना शुरू ही हुआ था कि लालाजी ने रोक दिया …ऐ…..अभी रुको …..अभी यहां नीलामी शुरू हो रही हैं उसके बाद समान लौड करना …..
मगर लालाजी …..हमारा कया काम यहां पर …..
देखिए सुरेन्द्र बाबू ….काम भले ना हो मगर मेहमानों के आने का वक्त हो गया है तो ….और आप भी तो देखिए कितने लगते है नीलामी में मंदिर के भाव ….हां …हां….कहकर वकील साहब के साथ आए दो तीन और लोग हंस पड़े…..
नीलामी शुरू हुई …..घर के अंदर बैठे सुरेंद्र बाबू सुषमा जी और रानी भीगी हुई आँँखे लिए उन सुनहरे पलों को याद कर रहे थे जब मोहन का जन्म हुआ था फिर रानी के रुप मे दूसरी बार उन्हें एक खूबसूरत गुडिया मिली
कैसे पहली बार मोहन का जन्मदिन मनाया गया था फिर रानी का ….
ये मेरा कमरा है….. ये मेरा….. दोनों भाई बहन का झगड़ा ….
शादी की सालगिरह सेलिब्रेशन ….वो दिन त्यौहार मनाना ….वो हंसी मजाक वगैरह वगैरह …..
बाहर से आती नीलामी की आवाज अचानक बंद हो गई ……
पापा…. लगता है शायद……
अब हमें चलना चाहिए रानी बोली
हां बेटा ….चलो …..
तभी दरवाजा खुला ……कहा ….कहा जाऐगे ….इस प्यार के मंदिर को छोडकर उसके देवता ……
पापा मम्मी ….रानी …..मे आ गया …..
सबने दरवाजे की ओर देखा …सामने मोहन खडा था
मोहन…..मोहन ……तू आ गया…. मेरे बच्चे….
देख यहां…… सुषमा जी कुछ कहती इससे पहले मोहन बोला ….मां ….मुझे माफ कर देना …मुझे माफ कर देना पापा ….और तुम भी मेरी छोटी बहन …..
पर मोहन तू था कहा ….रानी ने तुझे कितने फोन किए मगर तेरा नम्बर हमेशा बंद …..बेटा तू …..कया तू हमसे नाराज है….
पापा ….आप बैठिए ….मां आप भी ….
पापा ….वो दरअसल मुझे आपका ये कर्जा उतारने का एक सुनहरा मौका मिला वही एक साइट पर ….
पापा उस प्रोजेक्ट के रूप मे मुझे तीस लाख रुपए मिलने थे कम्पनी ने मुझे मौका दिया तो मैने तुरंत स्वीकार कर लिया मगर वहां जाकर पता चला वहां कोई भी मोबाइल नेटवर्क काम नहीं करते ….और इसलिए वहां मेरा फोन बंद हो गया कम्पनी वालों से भी सम्पर्क नही हो पा रहा था तो …..
पर पापा मैंने आपके मां के आशीर्वाद से वो प्रोजेक्ट पूरा कर दिया ….
पापा कम्पनी बहुत खुश हुई इनाम के साथ साथ मुझे यहां भारत मे कम्पनी का हेड बनाकर भेजा है …
पापा ….जब यहां आ रहा था तब पता चला आपके एक्सीडेंट के बारे मे और ये घर ….
हां …मां ….आज आपका जन्मदिन है ना ….देखिए ….मे अपने साथ केक भी लेकर आया हूं आइए साथ मे काटेंगे……
अब कया जन्मदिन मोहन ….ये घर ….ये मंदिर अब हमारा….कहकर फिर से सुबक पडी….
ये अब भी आप का ही है मां.. ….लीजिए ….
कहकर कुछ पेपर्स मां के चरणों में रख दिए ….
कया मतलब….. सुरेन्द्र बाबू और रानी चौकते हुए बोले
पापा बताया ना….वो तीस लाख ….
पापा मैने लालाजी के तमाम पैसे लौटा दिए ये हमारे घर के पेपर्स है ….और हां ….आपके ये दो पैर भले ना रहे हो मगर मे हूं ना आपके असली पैर ….अब आप अपने इस बेटे के कंधों पर दुनिया देखना ….और गर्व से वो सब कहना जो आप कहना चाहते हो ….
और तू ….मेरी लाडो ….मे तेरा भी गुनाहगार हूं मेरी वजह से …..
भैय्या ….मुझे माफ कर दो मैने आपको गलत ….
पगली तू तो मेरी बेटी है …बहादुर बेटी …जो मेरी गैरमौजूदगी मे मेरे मम्मी पापा का मजबूत कंधा बनी रही शाबाश……आ ….कहकर मोहन ने उसे भी सीने से लगा लिया…..फिर सबने एकसाथ मिलकर केक काटा…..
ये देखकर सुरेन्द्र बाबू ने सुषमा जी से कहा…. सुषमा…. एकदिन मैंने तुम्हें ये घर ये प्यार का मंदिर उपहार स्वरूप दिया था तुम्हारे जन्मदिन पर ….और आज देखो फिर से एकबार तुम्हें तुम्हारे जन्मदिन पर तुमहारे बेटे ने प्यार का मंदिर …..शाबाश मोहन …..सचमुच तुमने हमारी परवरिश को सही साबित कर दिया मेरे बच्चे ….
कहकर मोहन को सीने से लगा लिया मोहन ने मां और रानी को भी अपने साथ गले लगा लिया…
एक सुंदर रचना….
#दीप…🙏🙏🙏