
#महिला मित्रों को समर्पित
पूरी उम्र ससुराल में गुजारी मैंने फिर भी
मुझे मायके से कफन मांगना अच्छा नहीं लगता !
शादीशुदा महिलाओं को कुछ बातें अच्छी नहीं लगती फिर भी वे किसी से कुछ कहती नहीं
उन्ही एहसासों को इकट्ठा करके
आज मैंने एक कविता लिखी है
“मुझे अच्छा नहीं लगता”
मैं रोज खाना पकाती हूं
तुम्हें बहुत प्यार से खिलाती हूं
पर तुम्हारे झूठे बर्तन उठाना
मुझे अच्छा नहीं लगता!
कई वर्षों से हम तुम साथ रहते हैं
लाजिम है कि कुछ मत मतभेद तो होंगे
पर तुम्हारा बच्चों के सामने चिल्लाना
मुझे अच्छा नहीं लगता!
हम दोनों को ही जब किसी फंक्शन में जाना हो
तुम्हारा पहले कार में बैठकर यूं हॉर्न बजाना
मुझे अच्छा नहीं लगता!
जब मैं शाम को काम से थक कर घर वापस आती हूं
तुम्हारा गिला तोलिया बिस्तर से उठाना
मुझे अच्छा नहीं लगता!
माना कि तुम्हारी महबूबा थी वह कई वर्षों पहले
पर अब तुम्हारा उसे घंटों बतियाना
मुझे अच्छा नहीं लगता!
अभी पिछले वर्ष ही तो गई थी
यह कहकर तुम्हारा मेरी राखी डाक से भिजवाना
मुझे अच्छा नहीं लगता!
पूरे वर्ष तुम्हारे साथ ही तो रहती हूं
पर तुम्हारा यह कहना कि
जरा मायके से जल्दी लौट आना
मुझे अच्छा नहीं लगता!
तुम्हारी मां के साथ तो मैंने इक उम्र गुजार दी
मेरी मां से दो बातें करते तुम्हारा हिचकिचाना
मुझे अच्छा नहीं लगता!
यह घर तेरा भी है हमदम, यह घर मेरा भी है हमदम
पर घर के बाहर सिर्फ तुम्हारा नाम लिखवाना
मुझे अच्छा नहीं लगता!
मैं चुप हूं कि मेरा मन उदास है
पर मेरी खामोशी को तुम्हारा
यूं नजर अंदाज कर जाना
मुझे अच्छा नहीं लगता!
अब मैं जोर से नहीं हंस्ती जरा सा मुस्कुराती हूं
पर ठहाके मार के हंसना
और खिलखिलाना
मुझे भी अच्छा लगता है!
………..❤❤❤❤❤