
जनपद महाराजगंज के ऐतिहासिक धार्मिक स्थल
महाराजगंज , भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के महराजगंज जिले में स्थित एक नगर पंचायत है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है।
अदरौना देवी का मंदिर
अरदौना में स्थित लेहड़ा देवी का मंदिर महाराजगंज के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से है। यह जगह फरेन्दा (आनन्दनगर) तहसील मुख्यालय से पाँच किलोमीटर की दूरी पर स्थित बृजमनगंज मार्ग पर स्थित है। पुराने समय में यह स्थान आर्द्रवन नाम के सघन जंगल से घिरा हुआ था। पवह नदी के तट पर स्थित माँ वनदेवी दुर्गा का पवित्र मंदिर स्थित है। माना जाता है कि अरदौना देवी के मन्दिर की स्थापना महाभारत काल में पांडवों के अज्ञातवास काल में स्वयं अर्जुन ने की थी। पहले समय में इस मंदिर को अरदौना देवी थान के नाम से जाना जाता था लेकिन बाद में इस मंदिर का नाम लेहड़ा देवी मंदिर रखा दिया गया। वर्तमान समय में यह मंदिर लेहड़ा देवी मंदिर के नाम से ही जाना जाता है। अज्ञातवास काल के दौरान अर्जुन ने इस जगह पर वनदेवी की पूजा की थी। अर्जुन की पूजा से प्रसन्न होकर वनदेवी माँ भगवती दुर्गा ने उसे अमोध शक्तियाँ प्रदान की थीं।
माँ भगवती के आदेशानुसार अर्जुन ने इस जगह पर शक्ति पीठ की स्थापना की थी। बाद में यहीं अदरौना देवी के नाम से प्रसिद्ध हुई। इसके अतिरिक्त, स्थानीय लोगों का मानना है एक बार कोई युवती नाव से वह नदी पार कर रही थी। तब नाविकों ने उस युवती को बुरी नीयत से स्पर्श करना चाहा था। उस वक्त वनदेवी माँ ने स्वयं प्रकट होकर उस युवती की रक्षा की थी और नाविकों को नाव के साथ ही उसी समय जल समाधि दे दी थी।
तपस्थली
अरदौना मंदिर से कुछ ही दूरी पर एक प्राचीन तपस्थली है। इस जगह पर कई साधु-संतों की समाधियाँ हैं। इन्हीं साधु योगियों में एक प्रसिद्ध बाबा वंशीधर थे। बाबा वंशीधर एक सिद्ध योगी के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। अपने योग बल के द्वारा उन्होंने कई चमत्कार और लोक-कल्याण के कार्य किये थे। बाबा की शक्ति और भक्ति से कई वन्य जीव जन्तु उनकी आज्ञा को मानने के लिए तैयार हो जाते थे। माना जाता है कि एक बार बाबा वंशीधर ने अपनी शक्तियों द्वारा एक शेर और मगरमच्छ को शाकाहारी जीव बना दिया था।
प्राचीन शिवलिंग: जिला मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी की कटहरा गाँव स्थित है। इस गाँव के समीप ही दो टीले स्थित हैं। इन टीलों पर दो प्राचीन शिवलिंग स्थित है। पहला शिवलिंग मंदिर के भीतर स्थित है वहीं दूसरा शिवलिंग खुले आसमान के नीचे स्थित है। माना जाता है कि इस जगह का सम्बन्ध शिव और बौद्ध मतावलम्बियों से रहा है। प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर यहाँ बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। काफी संख्या में लोग इस मेले में सम्मिलित होते हैं।
बनर सिंहागढ़
फरन्दा सोनौली राजमार्ग से होकर, राजपुर-मुड़ली होते हुए बनर सिंहागढ़ आसानी से पहुँचा जा सकता है। लगभग 35 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैले, इस जगह पर कई टीलें, स्तूप और तालाब आदि स्थित है। इसके अतिरिक्त यहाँ एक प्राचीन शिवलिंग और एक चतुरभुर्जी मूर्ति भी स्थित है। प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर यहाँ मेले का आयोजन किया जाता है। कुछ लोग इसे वीरगाथा काव्य के नायक आल्हा-उदल के परमहितैषी, सैयदबरनस के किले के रूप में भी मानते हैं। कई पुरातत्वविद् इसे देवदह भी मानते हैं।
सोनाड़ी देवी
सोनाड़ी देवी चौक वन क्षेत्र पर स्थित है। इस जगह पर एक स्तूपाकार ऊँचा टीला है, जिसकी ऊँचाई 30-35 फीट है। इस जगह के आस-पास कई छोटे-बड़े सरोवर भी स्थित है। माना जाता है इस जगह पर एक विशाल वट वृक्ष स्थित है। यह वृक्ष हजारों वर्ष पुराना है। इस पेड़ की शाखाएं इतनी अधिक लम्बी है कि अब वह वृक्ष बन चुकी हैं। यह वृक्ष एक अदृभुत दृश्य दर्शाते हैं। इसके अतिरिक्त इस जगह पर गोरखपंथियों का एक मठ भी स्थित है।
शिव मंदिर
महाराजगंज के इटहिया स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर है। प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर स्थानीय लोगों के सहयोग से मेले का आयोजन किया जाता है। यह निचलौल कस्बे से लगभग दस कि॰मी॰ उत्तर दिशा मे स्थित है।
विष्णु मंदिर
महदेइया स्थित विष्णु मंदिर यहाँ के पुराने मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में स्थित भगवान की मूर्ति काफी प्राचीन है। विष्णु मंदिर के परिसर में एक तालाब स्थित है। माना जाता है कि इस तालाब से अन्य अनेक महत्वपूर्ण मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं।
सांई मंदिर
घुघली में निर्मित सांई मन्दिर जनपद का एकमात्र सांई मन्दिर है तथा श्रद्धालुओं के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति, रामनवमी तथा दीपावली को यहाँ धूमधाम से मनाया जाता है।
सोहगीबरवा वन्य जीव अभयारण्य
आनन्दनगर तहसील तथा अन्य उपमंडलों में फैला सोहगीवरवा जंगल अपने वन्य जीव अभयारण्य के लिये प्रसिद्ध है। यहाँ चीतल, अजगर तथा कुछ प्रवासी पक्षियों की बहुतायत है तथा तेंदुओं के लिये भी यह अभयारण्य जाना जाता है। सोहगीबरवा के अतिरिक्त बिहार सीमा पर स्थित वाल्मीकिनगर के जंगल हाथियों तथा बाघों की भी शरणस्थली हैं।