
छठ पर्व पर विशेष आलेख-घनश्याम सागर
भगवती आदिशक्ति के नव अवतारों मे छठा स्वरुप माँ कात्यायनी ही जगत मे छठी मैया के रुप मे पूजी जाती हैं मा नक्षत्र मंडल मे सूर्य को अपने माथे पर धारण करती हैं माँ जिस सूर्य को धारण करती हैं व अग्नि का विशालतम पिंड है माँ ने अपने शक्ति से कुल 12 सूर्य उत्पन्न किए जिसमे केवल एक सूर्य को अपने माथे पर धारण करती हैं सूर्य पृथ्वी के चारगुना बडे आकार का है उस सूर्य को माँ धारण सिर्फ माथे पर एक विंदी के रुप मे धारण करती है तो सहजता से अनुमान लगाईये माँ की विशालता कितनी होगी कितना तेज और अपार शक्ति माँ छठी (कात्यायनी) के अंदर मौजूद हैं वैसे माँ के इस रुप की पूजा शारदीय और चैत्र नवरात्रि मे छठवें स्वरूप मे की जाती है देवी भक्तों के लिए जो नित्य प्रति माँ आदिशक्ति की पूजा करते रहते है वे वास्तव मे प्रत्येक दिन कात्यायनी यानी छठी मैया की पूजा करतें हैं माँ सूर्य को माथे पर लेकर ही प्रकट होती हैं इसीलिए इस पर्व को सूर्यषष्ठी व्रत के नाम से भी जाना जाता है चूकिं सूर्य के उदय से माँ का आगमन होता है इसीलिए व्रती महिलाएं उगते हुए सूर्य को अर्ध्य अर्पित करती है और माँ की पूजा अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य देते हुए प्रार्थना करती है माँ जगदम्बा आप इस रात सूर्य को छोड रातभर मेरे घर रहें कल उदित सूर्य को जब अर्ध्य अर्पित करुंगी तब आप पूनः उनके साथ प्रस्थान कर जाना उसके बाद माँ जगदम्बा श्रद्धालु महिलाओं के घर आ जाती हैं फिर खुशी यानी कोसी भरी जाती है माँ की उपासना मे अनेक दीपों को जलाकर दीपमालिका की तरह ही पूजा की जाती है माँ छठी मैया के रुप मे इस बात को प्रमाणित कर जाती हैं कि मै ईश्वर हूँ मेरी नजरों सभी मनुष्य समान है कोई वर्ण ब्यवस्था नही कोई जाति पाति नही क्या राजा क्या रंक सभी एक समान मेरी पूजा करें किसी पंडित की कोई जरुरत नही जो अंतरात्मा मे श्रद्धा पैदा हो उसी से मेरी पूजा करो वनस्पति, फल,मेवा,अपने अपने घर से बनाए आटे का ठेकूआ चढाओ गन्ना माँ को विशेष प्रिय है इसलिए छः गन्ने की संधि बनाकर कलश को उसके बीच मे स्थापित किया जाता है संसार के सनातन संस्कृति की उपासना पद्धति मे छठ व्रत ही एकमात्र ऐसा उपासना है जो आडम्बर को छोड समानता के भाव को मानव मानव को एकता के सूत्रों मे पिरो जाता है माँ ने वरदान दे रखा है जो भी मन से विकाररहित होकर संसार को बिना पीडा पहुँचाए अपनी मनवांछित इच्छा करेगा उसकी इच्छा मै अवश्य पूर्ण करुंगी उदित सूर्य को अर्ध्य के बाद महिलाएं पारण कर व्रत को समाप्त करती है और जरुरतमंदों को अन्न वस्त्र इत्यादि दान करने से व्रत का फल करोड़ों गुना प्राप्त हो जाता है।