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शत्रुघ्न सिन्हा वर्षों तक BJP में रहा,हमेशा कांग्रेस को कोसते रहा और जब कोई बड़ा पद नहीं मिला, तो बीजेपी की बुराई करने लगा, पर फिर भी BJP नहीं छोड़ी और जब टिकट कटा, तो सारे दलों के चक्कर काटने के बाद कांग्रेस ने शरण दी। अब वही कांग्रेस विद्वानों की पार्टी लगने लगी। पर शायद उन्हें अपनी पत्नी विद्वान नहीं लगी, इसीलिए उन्हें सपा से टिकट दिलवाया और सम्भव है कल को बेटी को बसपा का टिकट दिला दें।
जरा सोचिए इनकी मानसिकता कैसी है? सिद्धू कल तक BJP का फायर ब्रांड नेता था और इसे उस वक़्त मोदीजी महापुरुष नजर आते थे, ये कांग्रेस को खूब जमकर गालियां देता था, फिर जब इसे भी कोई बड़ा पद नहीं मिला, तो बीजेपी छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया , अब बीजेपी सबसे खराब पार्टी और सोनिया तो राजमाता समान हो गयी और ये कहता है कि मुसलमानों एक हो जाओ।
*जरा सोचिए ये लोग कैसे हैं? कुछ साल पहले केजरीवाल के पास 300 पेज के सबूत थे, इसकी नजर में दुनिया की सबसे भ्रष्ट पार्टी कांग्रेस थी, इसने अपने बच्चों की कसम खायी थी कि कांग्रेस से कभी गठबंधन नही करूंगा और आज उसी से गठबंधन के लिए हाथ पैर पटकता हुआ नजर आता है।*
जरा सोचिए क्या चरित्र है इसका? मायावती जिसे गुंडा कहती थी जिन लोगों ने मायावती की जान लेनी चाही, जिसके विरोध में मायावती की राजनीति शुरू हुई थी, आजकल उसी के साथ गठबंधन कर लिया गया है।
जरा सोचिए ये किसका भला करना चाहती है? देश के टुकड़े टुकड़े करने की बात करने वाला कन्हैया लेफ्ट पार्टी का नेता बन जाता है चुनाव लड़ता है हार जाता है । अब काँग्रेस ने भी प्रत्यक्ष रूप से सार्वजनिक मौका दे दिया। सोचिए ऐसे लोग अपने फायदे के लिए क्या कर सकते है !
जरा सोचिए 1984 में सिख नरसंहार हो, 1990 कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार हो या 1967 हजारों संतों को गोलियों से भून देना हो, इनके हिसाब से सब कुछ न्याय संगत था, संविधान भी सुरक्षित था, सारी संस्थाएं भी स्वतंत्र थीं। जैसे ही एक पार्टी सत्ता से बाहर हुई तो अब होगा न्याय याद आया, एक जमात खड़ी हो गयी। जिसे आजकल भारत में डर लगने लगा और संविधान खतरे में आ गया, सारी संस्थाओं की स्वतंत्रता खतरे में लगने लगी।
*जरा सोचिए इस देश का बँटवारा धर्म के आधार पर हुआ, फिर भी इस “देश के संसाधनों में पहला हक मुस्लिमों का है” ये एक देश का उच्च पद (प्रधानमंत्री) पर बैठा हुआ रिमोट चालित बंदा कंट्रोल कहता है। मंदिरों से लाउडस्पीकर उतरवाए जाते हैं, लेकिन मस्जिदों के लाउडस्पीकर पर कोई कार्यवाही नहीं होती। दुर्गा पूजा, राम नवमी के जुलूस पर प्रतिबंध लगाया जाता था और ईद मोहर्रम, ताजियों पर छूट दी जाती थी।*
ज़रा सोचिए और पहचानिए अपने बीच स्वार्थी नेताओं को। इन पार्टियों के बारे में सोचिए, जो अचानक शायद 2004 के बाद आईएएस की परीक्षा को उर्दू में करते ही और मुस्लिमों के द्वारा ही उनकी कॉपी जांचने से मुस्लिम प्रतियोगी बड़ी तादाद में कलेक्टर क्यों बनने लगे?
क्यों एक पक्ष को देश के शीर्ष संस्थानों में बैठाया जा रहा है और यही हमारे विरोध की असली वजह होनी चाहिए।
जरा सोचिए, जब हिंदू मुस्लिम आपस मे भाई-भाई हैं, तो फिर दोनों को एक समान क्यों नहीं देखा जाता? दोनों को एक समान अधिकार क्यों नहीं, दोनों के लिए समान कानून क्यों नहीं?
जरा सोचिए, कौन समाज को बाँट रहा है ? धर्म की राजनीति किसने शुरू करी और कौन कर रहा है ? ये लोग किसका विकास करेंगे। भीष्म पितामह की तरह चुप मत रहिये, गांधारी की तरह आँखों मे पट्टी मत बांधिए। आप खुद सोचिए अपने बच्चों के भविष्य के बारे में और देश हित को सर्वोपरि रखते हुए स्वयं फैसला कीजिये।
आपका एक-एक वोट देश को सुरक्षित रखेगा। अपनी बहुसंख्यक होने की ताकत दिखाने का वक़्त अब है..