
★★★ दिवाली का महत्व और विशेष संदर्भ , साथ ही ऐसे करें मां लक्ष्मी को प्रसन्न!!
★देशभर में दिवाली का पर्व आज धूमधाम से मनाया जा रहा है। धनतेरस से लेकर भैया दूज तक चलने वाला ये पांच दिन का त्योहार का इतिहास बहुत पुराना है। दिवाली का पर्व ना केवल भारत में बल्कि दुनिया के कई देशों में धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार का ना केवल महत्व ही है बल्कि इतिहास भी है। दिवाली के दिन ना केवल श्रीराम अयोध्या लौटे थे बल्कि इस दिन मां दुर्गा ने काली का रूप लिया था, भगवान महावीर को मोक्ष की प्राप्ति की प्राप्ति हुई थी। दिवाली के दिन ही पांडव अपने वनवास और अज्ञातवास से वापस लौटे थे। आइए जानते हैं दिवाली के इतिहास के बारे में…!
1★ दिवाली पर प्रकट हुईं लक्ष्मी
कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही माता लक्ष्मी क्षीर सागर से प्रकट हुई थीं। इसीलिए इस दिन इनकी पूजा की जाती है। इसलिए इस दिन लोग घरों को सजाते हैं और मां लक्ष्मी का स्वागत कर उनकी पूजा की जाती है। माना जाता है कि दिवाली की रात लक्ष्मी-विष्णु विवाह भी हुआ था।
2★श्रीराम के लौटने पर जले थे दीये
रामायण से जुड़ी गाथाओं के अनुसार, त्रेता युग में कार्तिक मास की अमावस्या के दिन माता सीता और लक्ष्मण के साथ भगवान श्रीराम 14 वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या वापस आए थे। उनके स्वागत में अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर मिठाई बांटी थी। श्रीराम की वापसी की खुशी में हर साल इस दिन दीप जलाकर और मिठाइयां बांटकर उत्सव मनाया जाता है।
3★ गोवर्धन पूजा: टूटा इंद्र का घमंड
भगवान कृष्ण द्वारा इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत (यानी प्रकृति) की पूजा शुरू करवाने से नाराज इंद्र ने इतनी बारिश कर दी कि तबाही आ गई। तब श्रीकृष्ण ने इंद्र का घमंड तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत को उंगली पर उठाकर गोकुलवासियों की रक्षा की। तभी से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा की प्रथा पड़ी।
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4★ यमुना को मिला था वरदान
मान्यताओं के अनुसार यमुना अक्सर अपने भाई यमराज से घर आने और भोजन करने का निवदेन करती थीं, लेकिन यमराज नहीं आ पाते थे। एक बार कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को यमराज उनके घर पहुंचे तो यमुना ने यमराज से वचन लिया कि वह हर साल इस दिन उनके घर आएंगे। इसी से भाईदूज पर्व की परंपरा पड़ी।
5★यमराज ने दिया नचिकेता को ज्ञान
कठोपनिषद के अनुसार नचिकेता को पिता उद्दाल ऋषि ने यमराज को दान करने की बात कह दी। पिता की बात मानकर नचिकेता कार्तिक मास की अमावस्या पर यमलोक पहुंच गए, लेकिन यमराज नहीं मिले तो वह उनके आने का इंतजार करने लगे। यह देख यम खुश हुए और तीन वर मांगने को कहा। नचिकेता ने उनसे पिता का स्नेह, अग्नि विद्या और मृत्यु रहस्य का ज्ञान मांगा।
6★ मां ने धरा महाकाली का रूप
माना जाता है कि दीपावली के दिन मां दुर्गा ने महाकाली का रूप धारण किया था। असुरों का विनाश करते-करते वह देवों का नाश करने लगीं। तब महादेव महाकाली के आगे लेट गए। क्रोध में वह जैसे ही शिवजी के सीने पर चढ़ीं, उनका क्रोध शांत हो गया। इसीलिए दीपावली पर काली पूजन भी किया जाता है।
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7★विष्णु बने थे राजा बलि के द्वारपाल
दैत्यों के राजा बलि दानवीर थे। उनके राज्य में दया, दान, अहिंसा, सत्य व्याप्त था। ऐसे राज्य की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने राजा का द्वारपाल बनना स्वीकार किया। कार्तिक मास की पूर्णिमा को उन्होंने राजा की धर्मनिष्ठा स्मृति को बनाए रखने के लिए तीन दिनव तक अहोरात्रि महोत्सव का निश्चय किया। यही महोत्सव दीपमालिका के नाम से प्रसिद्ध है।
8★ श्रीराम-सीता के व्रत से जुड़ा छठ
दिवाली से जुड़ा सूर्य उपासना का महापर्व छठ भी श्रीराम से जुड़ा है। एक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम और माता सीता ने रावण वध के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी को उपवास रख कर सूर्यदेव की आराधना की थी। इसके अगले दिन यानी सप्तमी को उगते सूर्य की पूजा कर आशीर्वाद प्राप्त किया था।
9★ महावीर को हुई थी मोक्ष की प्राप्ति
जैन धर्म दिवाली को भगवान महावीर के मोक्षदिवस के रूप में मनाता है। ऐसा माना जाता है कि कार्तिक मास की अमावस्या के दिन महावीर को मोक्ष की प्राप्ति हुई था। वहीं, बौद्ध धर्म के लोग इस दिन सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने के उत्सव में दिवाली मनाते हैं। इस त्योहार को बौद्ध धर्म में अशोक विजयादशमी भी कहते हैं और मठों को सजाकर और प्रार्थना कर यह उत्सव मनाया जाता है।
10★ मुक्त हुए थे हरगोबिंद साहिब
सिखों के तीसरे गुरु अमरदासजी ने दिवाली को लाल पत्र दिवस के रूप में मनाया था। 1577 में इसी दिन अमृतसर के हरिमंदिर साहिब का शिलान्यास हुआ था। 1619 में इसी दिन सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद ग्वालियर में जहांगीर की कैद से मुक्त हुए थे। इसकी स्मृति में सिख दिवाली को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते है!
11★दिवाली पर लौटे थे पांडव
महाभारत के अनुसार, जब कौरव और पांडव के बीच चौसर का खेल हुआ तो इसमें पांडव सब कुछ हार गए थे। तब पांडवों को वनवास और अज्ञातवास भोगना पड़ा था। वनवास और अज्ञातवास पूरा होने के बाद पांडव दिवाली के दिन ही वापस लौटे थे। उनके लौटने की खुशी में नगरवासियों ने दीप जलाकर उत्सव मनाया था।
12★ संतों को मिला था निर्वाण
महान समाज सुधारक और आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती को दीपावली के दिन निर्वाण प्राप्त हुआ था। उन्होंने समाज में फैली बुराइयों का विरोध कर वैदिक संस्कृति का पक्ष लिया था। वेदों के प्रकांड ज्ञाता और महान विद्वान स्वामी रामतीर्थ ने भी दिवाली के दिन ही देह त्यागी थी।
13★कहीं सूप बजाना, कहीं झाड़ू दान
दीपावली पर देश के कई राज्यों में ब्रह्ममुहूर्त में उठकर सूप बजाते हुए मां लक्ष्मी की प्रार्थना की जाती है। कई जगह खर-संठी (अरंजी की लकड़ियों) का हुक्का बनाया जाता है। इसे जलाकर पूरे घर में घुमाने के बाद बुझाकर छत पर फेंक देते हैं। मान्यता है कि इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा चली जाती है। दीपावली पर मंदिरों में नई झाड़ू दान करने की परंपरा भी देश के कई क्षेत्रों में हैं।
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14★ इंडोनेशिया में भारत जैसी दिवाली
भारत की तरह कई देशों में दिवाली बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। इंडोनेशिया और सिंगापुर में तो यह त्योहार बिल्कुल हमारी तरह ही मनाया जाता है। इस दिन घरों में रंगोलियां बनाकर घर-बाजारों की रंग-बिरंगी रोशनी से सजावट की जाती है और मिठाई बांटकर बधाई दी जाती है।
15★मलयेशिया, मॉरीशस में होती है छुट्टी
काफी संख्या में भारतवंशियों के बसे होने के कारण मलयेशिया और मॉरीशस में भी दिवाली की धूम रहती है। इस दिन दोनों देशों में राष्ट्रीय सार्वजनिक अवकाश भी होता है। मलयेशिया में दिवाली को ‘हरी दिवाली’ कहा जाता है। इसके अलावा श्रीलंका में भी दिवाली प्रमुख त्योहारों में शामिल है। नेपाल में दिवाली को तिहार कहा जाता है। यहां भी भारत की तरह घरों को सजाया जाता है।
16★ ऐसे करें लक्ष्मी पूजन
स्थिर लक्ष्मीप्राप्त्र्यथं श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्र्यथं
सर्वारिष्टनिवृत्तिपूर्वकसर्वाभीष्टफलप्राप्त्र्यथम् आयुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धर्यथं व्यापारे लाभार्थं च गणपति नवग्रह कलशादि पूजनपूर्वकं श्रीमहाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती लेखनी कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये’
इस मंत्र के जप के बाद गणपति पूजन कर लक्ष्मी पूजन करें।
★17 विष्णु बिना लक्ष्मी पूजन अधूरा
कई लोग लक्ष्मी पूजन के समय सिर्फ उन्हीं की मूर्ति की पूजा करते हैं। मां लक्ष्मी अपने पति भगवान विष्णु के बगैर कहीं नहीं रहतीं। इसलिए उनकी तस्वीर या मूर्ति के साथ भगवान श्रीविष्णु की तस्वीर या मूर्ति होना जरूरी है। इसके अलावा मां लक्ष्मी के साथ श्रीगणेश की भी तस्वीर या मूर्ति स्थापित कर उनका भी विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए, तभी मां लक्ष्मी का स्थायी वास होता है।
★18इस मंत्र से करें मां लक्ष्मी को प्रसन्न
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमस्तु ते।।
अश्वदायै गोदायै धनदायै महाधने।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे।।
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः।।
★घर के अलावा दिवाली पर इन व्यापार कार्य स्थल वाहन के समीप, व फैक्ट्री, आदि जगहों पर भी जलाएं दीपक, मां लक्ष्मी होंगी प्रसन्न!
★19लक्ष्मी के बाद दीप पूजन भी जरूरी
★दीपावली पर मां लक्ष्मी की पूजा के बाद दीप पूजन करें। इसके लिए तिल के तेल के सात, ग्यारह, इक्कीस या ज्यादा दीपक प्रज्ज्वलित कर एक थाली में रखकर इस मंत्र का उच्चारण करें।
त्वं ज्योतिस्तवं रविश्चन्दरो विधुदग्निश्च तारकाः।
सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः।।
!!!! इति, शुभमस्तु !!!!