
भारत के चौकीदार को कोटि कोटि धन्यवाद…
खबर आ रही है कि एयरइंडिया का स्वामित्व अव टाटा को मिल गया है। इस अवसर पर चर्चित लेखक विचारक संपादक एवं जेएनयू के प्रोफेसर डॉक्टर आनंद रंगनाथन ने 68 साल पहले जमशेद जी टाटा द्वारा की गयी टिप्पणी को ट्वीट किया है।
“मेरे मित्र नेहरू ने आज मेरी पीठ पर छुरा मारा है।” आज से 68 साल पहले जमशेद जी टाटा ने उपरोक्त टिप्पणी तब की थी जब तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने उनकी एयरलाइंस कम्पनी का अचानक अधिग्रहण जबरिया कर लिया था। अतः इस एक तथ्य से वह प्रचंड मूर्ख चमचे पहले अपनी बुद्धि की शुद्धि कर लें जो लगातार यह चीखते रहते हैं कि नेहरू ने जो देश बनाया, मोदी उसे बेचे डाल रहा है।
अब बात आगे कि…
एयरइंडिया/इंडियन एयरलाइंस को सरकारी संरक्षण में किस तरह लूटा खसोटा गया इसकी कहानी तो बहुत लंबी है लेकिन यह 2 उदाहरण उस पूरी कहानी को जानने समझने के लिए पर्याप्त हैं।
28 मई 2005 को इंडियन एयरलाइंस के तत्कालीन मुखिया सुनील अरोड़ा ने एक चिट्ठी तब के कैबिनेट सचिव बीके चतुर्वेदी को लिखी थी। इस चिट्ठी में सुनील अरोड़ा ने साक्ष्यों के साथ विस्तार से यह बताया था कि एक खास कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए तत्कालीन उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने जरूरत से ज्यादा जेट प्लेन खरीदवाए। इंडियन एअरलाइंस के विमानों को फायदे वाले रूटों पर उड़ने से मना किया।
2004 में यूपीए के सत्ता में आने के साथ ही शुरू हुआ एयरइंडिया की लूट खसोट का यह सिलसिला लगातार चलता रहा तथा कितना बेलगाम, बेरहम और बेशर्म होता गया.? इसका सबूत है 2010 के कामनवेल्थ खेलों से पहले दिल्ली में T-3 टर्मिनल का निर्माण करने की आड़ में सरकार ने जीएमआर ग्रुप की कंपनी डायल को जिस तरह अंधाधुंध सौगातें बांटीं उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है।
17 अगस्त 2012 को संसद में प्रस्तुत की गई CAG की रिपोर्ट में यह उजागर हुआ था कि जीएमआर ग्रुप की कंपनी “डायल” को न केवल कौड़ियों के भाव जमीन दी गई, बल्कि हेरफेर कर उसे 30 के बजाय 60 साल तक एयरपोर्ट चलाने का ठेका दे दिया गया। CAG रिपोर्ट के अनुसार 3 मई 2006 को सरकार ने आपरेशन, मैनेजमेंट डेवलपमेंट समझौते (OMDA) के तहत दिल्ली एयरपोर्ट के पुननिर्माण का जिम्मा “डायल” को सौंपा था। 26 अप्रैल 2006 को डायल के साथ स्टेट सपोर्ट एग्रीमेंट (SSA) किया गया। CAG के अनुसार, “डायल” को फायदा पहुंचाने के लिए इन समझौतों के साथ या तो छेड़छाड़ की गई या इन्हें नजरअंदाज किया गया। मसलन, OMDA में कहीं भी एयरपोर्ट डेवलपमेंट शुल्क का प्रावधान नहीं था, लेकिन बाद में उड्डयन मंत्रालय व एयरपोर्ट इकोनामिक रेगुलेटरी अथारिटी (AERA) ने “डायल” को यह शुल्क वसलूने की अनुमति दे दी। इससे उसे 3415.35 करोड़ का फायदा पहुंचा था।
CAG ने अपनी रिपोर्ट में बहुत विस्तार से तथ्यों साक्ष्यों का उल्लेख करते हुए बताया था कि “डायल” ने किस तरह से केवल दो हजार करोड़ रुपये से भी कम लगा कर न सिर्फ 60 साल के लिए दिल्ली एयरपोर्ट हथिया लिया है, बल्कि 24 हजार करोड़ की जमीन और उससे संभावित 1,63,557 करोड़ की कमाई के अधिकार भी हासिल कर लिए हैं।
केवल इतना सोचिए कि क्या एयरइंडिया का स्वामित्व यूपीए सरकार के बजाए टाटा समूह के हाथ में होता तो एयरइंडिया/इंडियन एयरलाइंस की इतनी बेरहम बेशर्म लूट हो पाती.?
देश के चौकीदार प्रधानमंत्री मोदी को आज इसलिए धन्यवाद क्योंकि वह यह सच जानते हैं कि वो अनंतकाल तक इस देश के प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे। अतः अपने कार्यकाल में वह ऐसी व्यवस्था करे जा रहे हैं कि भविष्य में भारतीय हितों की बर्बर बेरहम बेशर्म लूट नहीं हो सके। एयरइंडिया को सरकार चलाए या टाटा। इस बात से आम आदमी को कोई अंतर नहीं पड़ने वाला। लेकिन एयरइंडिया की लूट के जिन दो प्रकरणों का उल्लेख ऊपर किया है, उस तरह से एयर इंडिया को लूटने की छूट कुछ लोगों को दे दी जाए तो आम आदमी और विमान यात्रियों के हितों पर भयंकर प्रभाव पड़ता है।
पिछले 7 वर्षों के दौरान देश की रेल सेवा में सुखद परिवर्तन की स्पष्ट झलक दिखने लगी है। हालांकि रेलसेवा अभी अपने परिवर्तन के प्रारंभिक चरण में ही है। अब आशा की जा सकती है कि राष्ट्रीय वायुसेवा एयरइंडिया में भी सुखद परिवर्तन की बयार बहती दिखायी देगी। टाटा का अबतक का इतिहास इस आशा को और दृढ़ करता है। देश में सार्वजनिक परिवहन (बस और ट्रक) पर टाटा के वर्चस्व को आज तक कोई देशी विदेशी कंपनी चुनौती नहीं दे सकी है। देश की सड़कों पर आज दर्जनों विदेशी कंपनियों की कारें और मोटरसाइकिल दौड़ती हुई दिख जाती हैं। लेकिन ट्रक और बस टाटा के ही दिखाई देते हैं। ऐसी गुणवत्ता की साख और धाक वाले टाटा समूह के हाथों में भारत की राष्ट्रीय वायुसेवा अब सुरक्षित रहेगी और उसका निरंतर विकास होगा। यह मेरा मानना है।