
[ #महालया ]
उत्सवों कि शुरुआत, देवी का आह्वान…
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आज अश्विन अमावस्या के दिन ही महालया के शुभारम्भ के साथ श्राद्ध खत्म हो जाते हैं और माँ दुर्गा कैलाश पर्वत से पृथ्वी पर इसी दिन आती हैं और अगले 10 दिनों तक वे यहां पर रहती हैं। यानी की कल से शारदीय नवरात्र प्रारम्भ होगा। महालया के दिन से ही दुर्गा पूजा का प्रारंभ हो जाता है। बंगाल के लोग इस महालया का साल भर से इंतजार करते रहते हैं। शास्त्रों के अनुसार महालया और सर्व पितृ अमावस्या एक ही दिन होती है। महालया के दिन मूर्तिकार मां दुर्गा की आंख को तैयार करता है। इसके बाद से ही मूर्तियों को अंतिम रूप दिया जाता है। इसी के साथ शक्ति की वो नौ रात्रि अर्थात नवरात्रि की शुरुआत हो जाएगी। यह पर्व पुरातन काल का है, या फिर इसे सनातन काल का भी कह सकते हैं। लेकिन यह नहीं कह सकते कि शक्ति की आराधना कब कहाँ और कैसे शुरू हुई। वह कब कहाँ नहीं हुई है…? वे तब भी आराध्या थीं, जब मानव मन आराधना की ठीक विधि भी न तय कर पाता था। तब भी, जब सब पत्थर का था, अस्त्र भी, आवास भी, औजार भी और अब भी, जब सब पत्थर से हैं, आदमी भी, अंतस् भी और आँखें भी।
शक्ति देवी रूप में आराध्या सदैव रही है। शक्ति की तो आराधना होती ही रही है। अनगिनत रूपों में जैसे विद्यारूप में, बलरूप में, संपदारूप में, सौंदर्यरूप में, कलारूप में, कामरूप में, मातृरूप में और कन्यारूप में भी। देवियों की उपासना प्रायः तीन रूपों में होती रही है- शक्तिरूप में, शांतरूप में और कामरूप में। यहां पर जब हम शक्तिरूप कह रहे होते हैं, तब भी प्रायः अन्य रूप प्रकारांतर से समाहित होते ही रहे हैं। हम नवदुर्गा में भी ये रूप देख सकते हैं। जिन देवियों की हमने काम रूप में उपासना की उनका भी प्रायः अन्य से व्यामिश्रण होता रहता है। जिस सौंदर्यपरक रूप में देवी का ध्यान या चित्रण होता है, वहां यह मिश्रण स्पष्ट हो जाता है।उदाहरण के लिए हम कतिपय श्लोक देख सकते हैं…
पटाम्बरपरिधानां मृदुहास्यां नानालंकारभूषिताम्।
मंजीर-हार-केयूर-किंकिणि-रत्नकुण्डल-मण्डनम्।।
प्रफुल्लवदना पल्लवाधरा कांतकपोला पीनपयोधराम् । कमनीयां लावण्यां क्षीणकटिं निम्ननाभिं नितम्बनीम्।।
ये वे मंत्र नहीं, जो छिन्नमस्ता, कामाख्या या त्रिपुरसुंदरी आदि कामरूप छवियों के ध्यान के लिए प्रयुक्त होते हैं, अपितु नवदुर्गा के ध्यान में रखकर भी अपनाये जाते हैं। और ऐसे अनगिनत हैं। देवी की ये नौ शुभ रातें यौगिक संस्कृति में दैवी स्त्रीत्व के समय के रूप में मनायी जाती हैं। तरह तरह की धार्मिक क्रियायें किए जाते हैं और ऐसी बहुत सी ध्यान प्रक्रियायें भी हैं जो खास तौर पर इन्हीं दिनों के लिये बनायी गयी हैं। देवियों को पारंपरिक रूप से पूजने वाली संस्कृतियों में यह जानकारी थी कि अस्तित्व में ऐसा बहुत है जिसे कभी समझा नहीं जा सकता। आप इसका आनंद ले सकते हैं, इसकी सुंदरता का उत्सव भी मना सकते हैं पर इसे कभी समझ नहीं सकते। जीवन गूढ़ है, एक रहस्य है और हमेशा ऐसा ही रहेगा। नवरात्रि का उत्सव इसी मूल अंतर्दृष्टि पर आधारित है। कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि मनुष्य जाति स्वर्ग से नीचे उतर कर आयी थी, पर वैसा कुछ भी नहीं है। मनुष्य का विकास हुआ है, क्रमिक विकास! अमीबा, जमिनी कीड़े, टिड्डे, भैंस और सभी प्रकार के पशुओं के गुण आज भी हमारी मजबूरियों और आदतों के रूप में हममें मौजूद हैं। आधुनिक न्यूरोलॉजी भी यह बात मानती है कि हमारे मस्तिष्क का एक भाग साँप के मस्तिष्क जैसा है जो आदतों के हिसाब से चलता है। पर उसके ऊपर सेरेब्रल कोर्टेक्स का फूल विकसित हो चुका है।
आप सभी को सर्व पितृ अमावस्या और महालया की ढेरों शुभकामनाएँ। माता रानी सबको सुखी रखे, खुशहाल रखे और आपके सारे कष्ट और दुखों को दूर करें..!🙏🙏
#शुभ_महालया…💓💓