
सम्पादकीय
जगदीश सिंह सम्पादक
खतरे के निशान से उपर बह रहा है उम्र का पानी!
वक्त की बरसात है कि थमने का नाम ही नहीं ले रही है!!
ज़िन्दगी का सफर अवतरण दिवस के दिन से शुरू होकर आखरी सफर के मनहूस वातावरण के दिन तक चलायमान रहता है लेकिन ज्यों ही पंचभूतों के हवाले शरीर को किया जाता है सब कुछ वही पर विलोपित होकर रह जाता है।
अहम का वहम वहीं समाप्त हो जाता है।कितना अद्भुत उपर वाले विधान है जब तक सांस है तभी तक अपनों का मिलता सम्मान है वर्ना पल भर में ही जो सबसे प्रिय रहा बेगाना हो जाता है।
विधाता के कायनाती ब्यवस्था में आस्था के चलते ही सम्बन्धों के मेला में अकेला होते हुए भी आदमी माया के मतलबी संसार में आपने मूल को भूलकर सुख के साहचर्य की लालसा पाले दिन रात जारी कर्म करने से भी गूरेज नहीं करता है इस कदर स्वार्थ की लो लिप्सा में डूब जाता है कि उसको अपना गन्तव्य ही भूल जाता है।
ज़िन्दगी का रास्ता कठिनाई के जंगल से गुजरते हुए जब तक उम्मिदो के धरातल पर कदम रखता तब तक तन्हाई का अन्धकार विवस और लाचार बना देता है।
उम्र का हर लम्हा स्वार्थ का सानिध्य पाकर परमार्थ के राह पर चलने वालों के लिए कलुषित मानसिकता पर बार बार प्रहार कर बुद्धि और विचार बदलने पर मजबूर कर देता है।
मान सम्मान स्वाभिमान अभिमान के चंगुल में फंस कर आदमी इन्सानियत को दरकिनार करते हुए अहंकारी रसूख पर इतराते यह अहम का वहम पाल लेता है जब की यह सभी को पता है इस जगत में सब कुछ मिथ्या है यह माया लोक है जहां अनवरत चलने वाले वाली व्यवस्था में महज कुछ दिनों का पड़ाव मिला है।
और मूर्ख मानव इसी को अपनी मंजिल समझ लेता है।ज्ञान चक्षु उस समय परिकल्पित हो उठता है जब संकल्पित जीवन के आखरी सफर के समापन के बाद अनमोल मिट्टी की काया माया से विमुक्त होकर सर्वस्व स्वाहा को समर्पित हो जाती है। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। मानव तन को प्राप्त करने के बाद वासनामई वातावरण मे पुष्पित पल्लवित होकर सुख समृद्धि की चाहत में सम्पूर्ण उम्र गुजार यूं ही गुजर जाती है कभी उस मालिक के विशाल वैभव शाली पारदर्शी व्यवस्था में आस्था के मर्मस्पर्शी आवरण में दिए गये समदर्शी सन्देश को याद नहीं करता माया के मोहनी स्वरूप का दर्शन पाकर सब कुछ भूल जाता है।
जब की यह सबका पता है कुछ भी साथ नहीं जायेगा!
प्रारब्ध से उपलब्ध जीवन में वही पारंगत हुआ जिसने समय रहते आत्म ज्ञान के समन्दर में मोह का त्याग कर गोता लगा लिया!
धन्य हो गया उसका जीवन जिसने खुद को पहचान लिया!
मौत का खौफ ही मालिक के महल में जाने का रास्त्ता प्रशस्त करता है।
खुद को पहचानिए यह केवल कुछ दिनों का पड़ाव है फिर सफर पर निकलना ही निकलना है।सबका मालिक एक ऊं साई राम🌹🌹
जगदीश सिंह सम्पादक राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय पत्रकार संघ भारत
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