
*दर्दनाक सच्चाई*
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*जागो सनातनी जागो*
💔 जब 7 बेटियों के हिन्दू पिता को अपनी बेटियों को मजहबी भीड़ से बचाने के लिए उन्हें बारी-बारी काटकर उनके शवों को कुएं में डालना पड़ा…
🟧 इतिहास से हमें अवश्य सीखना चाहिए,
क्योंकि यह पुनः भी दोहराया जाएगा।
गुजरांवाला, पाकिस्तान का पंजाब प्रांत।
यह वह भूमि थी जहाँ वीर योद्धा सरदार हरि सिंह नलवा ने जन्म लिया था।
इसी धरती पर एक संपन्न पंजाबी हिंदू परिवार बसता था।
इस परिवार के मुखिया लाला जी उर्फ बलवंत खत्री थे, जो बड़े जमींदार थे और एक शानदार कोठी में रहते थे।
उनके साथ उनकी पत्नी प्रभावती और उनके आठ बच्चे रहते थे – सात बेटियां और एक बेटा।
यह वर्ष 1947 की बात है।
भारत का विभाजन हो चुका था।
जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन डे के ऐलान के बाद, गुजरांवाला के आसपास के इलाकों में हिंदू-सिखों के कत्लेआम की खबरें आने लगीं।
‘अल्लाह हू अकबर’ और ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ का शोर करती भीड़ ने काफिरों की औरतों को न हड़पने का संकल्प लिया था।
लाला जी गांधी के आदर्शों पर विश्वास करते थे।
उन्हें लगता था कि यह धार्मिक उन्माद थोड़े समय में शांत हो जाएगा।
पर सच्चाई कुछ और ही थी।
18 सितंबर 1947
एक सिख डाकिया लाला जी के हवेली आया और उन्हें खबर दी कि उनकी बेटियों को उठाने के लिए मजहबी भीड़ आ रही है।
पर लाला जी ने उस पर विश्वास नहीं किया।
उन्होंने सोचा कि यह सब उनके मित्र मुख्तार भाई नहीं कर सकते।
गुरुद्वारा
गुरुद्वारा हिंदू-सिखों से खचाखच भरा था।
वहां सुरक्षा में जुटे हट्टे-कट्टे हिंदू-सिख योद्धा तैयार थे।
अचानक एक भीड़ ने गुरुद्वारे पर हमला किया।
पुरुषों ने अपनी तलवारों से बहादुरी से लड़ाई की, पर भीड़ की संख्या ज्यादा थी।
मजहबी उन्माद
भीड़ ने ‘अल्लाह हू अकबर’ के नारे लगाते हुए एक-एक करके सभी को मार गिराया।
उन्होंने माताओं और बहनों पर पांच-पांच वैसी दरिंदे उनके कपड़े उतार कर वही उनके साथ बलात्कार और दरिंदगी की थी।
कुछ ही देर में गुरुद्वारा खून से लथपथ हो गया।
लाला जी का निर्णय
लाजो, लाला जी की बेटी, ने कहा, “तुस्सी काटो बापूजी, मैं मुसलमानी नहीं बनूंगी।
” लाला जी की आंखों में आंसू आ गए।
वह अपनी बेटियों को खुद मारने के विचार से कांप उठे,
परंतु अपनी बेटियों को मजहबी भीड़ के हवाले नहीं कर सकते थे।
लाला जी ने एक-एक कर अपनी बेटियों को मुक्ति दी और उनके शवों को गुरुद्वारे के कुएं में डाल दिया।
अंतिम निर्णय
लाला जी ने अपनी पत्नी प्रभावती और बेटे बलदेव को सुरक्षित स्टेशन तक पहुंचाने का आदेश दिया। इसके बाद,
उन्होंने खुद को चाकुओं से गोदा और उसी कुएं में छलांग लगा दी।
लाला जी की पत्नी, बेटे बलदेव और अजन्मे संतान के साथ भारत पहुंचने में सफल रहीं।
वे पंजाब के अमृतसर में बस गए।
लाला जी का पोता अब इस दर्दनाक इतिहास को जीवित रखे हुए है,
ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदी न दोहराई जाए।
एक पेंटिंग
केसी आर्यन ने 1947 के उस भयानक समय की त्रासदी को पेंटिंग के माध्यम से जीवित रखा है, जिसमें हिंदू-सिखों के साथ हुई अत्याचारों की दास्तान छिपी है।
इतिहास की इस दर्दनाक सच्चाई को हम नहीं भूल सकते।
यह हमें याद दिलाती है कि हमें अपने धर्म, संस्कृति और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सदैव सतर्क रहना चाहिए और इन दरिंदो की दरिंदगी कभी नहीं भूलना चाहिए।