*सम्पादकीय*
✍🏾जगदीश सिंह सम्पादक ✍🏾
*सहमी हुई है झोपड़ी वारिश के खौफ से*!!
*महलों की आरजू है कि बरसात तेज हो*!!
प्रकृति के परिवर्तित स्वभाव मे तय होता कि वक्त को पारितोषिक देते हुए निश्चित समय में बदल जाना है। आज कल हालात जिस तरह का देखने को मिल रहा है उसमें कहीं प्रकृति खौफ पैदा कर रही है तो कहीं मानव समाज मानवता के समापन के लिए प्रतिबद्ध दिख रहा है।सम्पूर्ण विश्व में आजकल जलजला का दौर चल रहा है।कहीं प्रकृति कुपित है तो कहीं खुद के ज्ञान से विज्ञान के चरमोत्कर्ष पर पहुंचने वाला मानव समाज तबाही के मंजर का आगाज कर रहा है।मानवता को बचाने की सारी प्रतिबद्धता विलोपित हो चली है।झूठे मान सम्मान में अभिमान को मूर्तरूप देकर प्रकृति की पारदर्शी व्यवस्था में इन्सान व्यवधान पैदा कर रहा हैं। जल जंगल जमीन सभी का विनाश कर रहा है। इन्सानी बस्तियों का सर्वनाश हो रहा है। जिस तरह धरती कम्पित हो रही है ग्लैशियर पिघल रहे हैं जंगलों का सफाया हो रहा प्रकृति के सहयोगी चराचर जगत के जीवों का विनाश हो रहा है वह आने वाले कल के लिए प्रतिपल प्रतिस्पर्धा के खेल में सर्वनाश का समेकित आभाष करा रहा है।तमाम प्रकृति के प्रहरी दोहरी मार की चपेट में आकर अपने अस्तित्व को बचाने में भी कामयाब नही हो पा रहे हैं। दुष्ट तथा लालची मानव दानव से भी बदतर ब्यवहार पर उतर आया है !मानवीय सम्वेदना आर्तनाद करती ज़िन्दगी को देखकर भी द्रवित नहीं होती! कठोरता की पराकाष्ठा देखिए तोप मीसाईल बमों की गड़गड़ाहट में दम तोड रही इन्सानियत मासूमियत लिए तड़फड़ाती अपने वजूद को मिटा रही है।जन्ग चाहे जैसी हो हलाक होती है मानवता ! परिकल्पित सोच ही परिष्कृत उद्देश्यों के लिए मानवीय मूल्यों को स्थापित नहीं करने देती। विकृतियों के साहचर्य मेंअनिवार्य अहंकारी उत्कंठा ने तो लंका का विनाश करा दिया!रावण जैसा महा ज्ञानी अभिमानी बन बैठा!चौंकिए नहीं विश्व विनाश के लिए पथ भ्रमित परिवेश में पल रहीं महान शख्सियतों ने हुंकार भर दिया है!सर्वनाश का शंखनाद कर दिया है!वर्तमान मे अभी आप पाश्चात्य देशों में खून खराबे का मन्जर देख रहे है कल देश द्रोहियों की जमात इस देश की सम्प्रभुता को भी चुनौती देगी और हालात वहीं पैदा करेंगी जो पाश्चात्य देशों का हो रहा है! भारत वर्ष के उत्कर्ष में पहुंचने के पहले ही वे निष्कर्ष निकाल लिए हैं।मगर वक्त है साहब ! बदलाव की बहती हवा में जो वहसीपन घुस गया था आज उसका आपरेशन हो रहा है!जब समन्दर में ज्वार भाटा उठेगा तो कुछ देर के लिए तबाही अपना आशियाना बना ही लेगी! फिर भी समय का सरगम कभी खुशी तो कभी ग़म के साथ लम्हों को हम सफर बना लेता हैऔर उसी के सानिध्य में ज़िन्दगी हर कदम पर जंग लड़ती उम्र के दहलीज पर पहुंच कर मंजिल की
दहलीज पर विराम लेने को मचलने लगती है।बदलते युग में जैसे मौसम का कोई भरोसा नहीं वैसे ही आज के इन्सानों के बदलते मुखौटे पर भरोसा करना लाज़िम नहीं रहा।
जयहिंद 🙏🏾🙏🏾
जगदीश सिंह सम्पादक मऊ क्रांति न्यूज व
राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय पत्रकार संघ भारत 7860503468