
पत्नी है तो दुनिया में सब कुछ है।
राजा की तरह जीने और आज दुनिया में अपना सिर ऊंचा रखने के लिए अपनी पत्नी का शुक्रिया अदा कीजिए।
आपकी सुविधा-असुविधा, आपके बिना कारण के क्रोध को संभालती है।
तुम्हारे सुख से सुखी है और तुम्हारे दुःख से दुःखी है।
आप रविवार को देर से बिस्तर पर रहते हैं लेकिन इसका कोई रविवार या त्योहार नहीं होता है।
चाय लाओ,
पानी लाओ,
खाना लाओ।
ये ऐसा है और वो ऐसा है।
कब अक्कल आएगी तुम्हें?
ऐसे ताने हम मारते हैं।
उसके पास बुद्धि है और केवल उसी के कारण तो आप जीवित हैं।
वरना दुनिया में आपको कोई भी नहीं पूछेगा।
अब जरा इस स्थिति की सिर्फ कल्पना करें:
एक दिन *पत्नी* अचानक रात को गुजर जाती है!
घर में रोने की आवाज आ रही है।
पत्नी का *अंतिम दर्शन* चल रहा था।
उस वक्त पत्नी की आत्मा जाते-जाते जो कह रही है,
उसका वर्णन:
“मैं अभी जा रही हूँ,
अब फिर कभी नहीं मिलेंगे।
जिस दिन शादी के फेरे लिए थे,
उस वक्त साथ-साथ जीने का वचन दिया था,
पर अब अकेले जाना पड़ रहा है,
यह मुझको पता नहीं था।
मुझे जाने दो।
अपने आंगन में अपना शरीर छोड़ कर जा रही हूँ।
बहुत दर्द हो रहा है मुझे,
लेकिन मैं मजबूर हूँ,
अब मैं जा रही हूँ।
मेरा मन नहीं मान रहा,
पर अब मैं कुछ नहीं कर सकती।
मुझे जाने दो।
बेटा और बहू रो रहे हैं,
देखो।
मैं ऐसा नहीं देख सकती और उनको दिलासा भी नहीं दे सकती हूँ।
पोता ‘बा बा बा’ कर रहा है,
उसे शांत करो,
बिल्कुल ध्यान नहीं दे रहे हो। हाँ,
और आप भी मन मजबूत रखना और बिल्कुल ढीले न होना।
मुझे जाने दो।
अभी बेटी ससुराल से आएगी और मेरा मृत शरीर देखकर बहुत रोएगी।
उसे संभालना और शांत करना।
और आप भी बिल्कुल नहीं रोना।
मुझे जाने दो।
जिसका जन्म हुआ है,
उसकी मृत्यु निश्चित है।
जो भी इस दुनिया में आया है,
वह यहाँ से ऊपर गया है।
धीरे-धीरे मुझे भूल जाना,
मुझे बहुत याद नहीं करना।
और इस जीवन में फिर से काम में डूब जाना।
अब मेरे बिना जीवन जीने की आदत जल्दी से डाल लेना।
मुझे जाने दो।
आपने इस जीवन में मेरा कहा कभी नहीं माना है।
अब जिद छोड़कर व्यवहार में विनम्र रहना।
आपको अकेला छोड़कर जाते हुए मुझे बहुत चिंता हो रही है,
लेकिन मैं मजबूर हूँ।
मुझे जाने दो।
आपको BP और डायबिटीज है।
गलती से भी मीठा नहीं खाना,
अन्यथा परेशानी होगी।
सुबह उठते ही दवा लेना न भूलना।
चाय अगर आपको देर से मिलती है तो बहू पर गुस्सा न करना।
अब मैं नहीं हूँ,
यह समझकर जीना सीख लेना।
मुझे जाने दो।
बेटा और बहू कुछ बोले तो चुपचाप सब सुन लेना।
कभी गुस्सा नहीं करना।
हमेशा मुस्कुराते रहना,
कभी उदास नहीं होना।
मुझे जाने दो। अपने बेटे के बेटे के साथ खेलना।
अपने दोस्तों के साथ समय बिताना।
अब थोड़ा धार्मिक जीवन जीएं ताकि जीवन को संयमित किया जा सके।
अगर मेरी याद आये तो चुपचाप रो लेना लेकिन कभी कमजोर नहीं होना।
मुझे जाने दो।
मेरा रूमाल कहां है, मेरी चाबी कहां है,
अब ऐसे चिल्लाना नहीं।
सब कुछ ध्यान से रखने और याद रखने की आदत डालना।
सुबह और शाम नियमित रूप से दवा ले लेना।
अगर बहू भूल जाये तो सामने से याद कर लेना।
जो भी खाने को मिले,
प्यार से खा लेना और गुस्सा नहीं करना।
मेरी अनुपस्थिति खलेगी,
पर कमजोर नहीं होना। मुझे जाने दो।
बुढ़ापे की छड़ी भूलना नहीं और धीरे-धीरे चलना।
यदि बीमार हो गए और बिस्तर में लेट गए तो किसी को भी सेवा करना पसंद नहीं आएगा।
मुझे जाने दो।
शाम को बिस्तर पर जाने से पहले एक लोटा पानी मांग लेना।
प्यास लगे तो ही पानी पी लेना।
अगर आपको रात को उठना पड़े तो अंधेरे में कुछ लगे नहीं,
इसका ध्यान रखना।
मुझे जाने दो।
शादी के बाद हम बहुत प्यार से साथ रहे।
परिवार में फूल जैसे बच्चे दिए।
अब उस फूलों की सुगंध मुझे नहीं मिलेगी।
मुझे जाने दो।
उठो,
सुबह हो गई,
अब ऐसा कोई नहीं कहेगा।
अब अपने आप उठने की आदत डाल लेना,
किसी की प्रतीक्षा नहीं करना।
मुझे जाने दो।
और हाँ, एक बात तुमसे छिपाई है,
मुझे माफ कर देना।
आपको बिना बताए बाजू की पोस्ट ऑफिस में बचत खाता खुलवाकर 14 लाख रुपये जमा किये हैं।
मेरी दादी ने सिखाया था।
एक-एक रुपया जमा करके कोने में रख दिया।
इसमें से पाँच-पाँच लाख बहू और बेटी को देना और अपने खाते में चार लाख रखना अपने लिए।
मुझे जाने दो।
भगवान की भक्ति और पूजा करना भूलना नहीं।
अब फिर कभी नहीं मिलेंगे!
मुझसे कोई भी गलती हुई हो तो मुझे माफ कर देना।”
इस आत्मीय संदेश में पत्नी की भावनाएं और उसकी देखभाल की जिम्मेदारी को दर्शाया गया है, जो उसके जाने के बाद भी परिवार को संभालने का संदेश देती है।