
ये पेड 1000 साल पुराना है मतलब इस पेड ने हमारी 40 पीढीयो के पुरखो को जन्म लेते और बुजुर्ग होकर मरते देखा है।
👉 ये पेड हमारा पुरखा है।
👉 पेड हम आदिवासियों के पुरखे कैसे?
साथीयो हम आदिवासियों में मृत शरीर को जमीन में गाडने और मृत शरीर के ऊपर एक फलदार पेड लगाने की प्रथा थी।
जब मृत शरीर पर लगा पौधा धीरे धीरे बडा होता है तो उसकी जडे जमीन की गहराई में जाती है जो मृत शरीर की हड्डियों को जकड लेती है और मिट्टी से मिनरल के साथ साथ इन हड्डीयो से पुरखो के DNA को भी शोख लेती है और पुरखो का DNA हड्डीयो से तने में और तनो से फुल में और फुल से फल में और फल से धरती पर रहने वाले मानव,पशु और पक्षियों में ट्रांसफ़र हो जाता है इसलिए हम आदिवासी धरती पर उगने वाले हर पेड पौधो को अपना पुरखा मानते है।
👉 कोयामुरी उप-महाद्वीप के मुलवासीयो में मृत शरीर को जमीन में गाडने की प्रथा थी लेकिन बाहरी आक्रमणकारी और शरणार्थीयो के आगमन के कारण कालान्तर में आदिवासियों की मुल संस्कृति संक्रमित हुई और आदिवासी भी देश के कुछ हिस्सो में मृत शरीर को जलाने लग गया।
मृत शरीर के जमीन में गाडने के फायदे-
1) मृत शरीर को जमीन में गाडने से हमारा मुल DNA जिंदा रहता है।
2) मृत शरीर को जमीन में गाडने से मृत शरीर उपजाऊ मिट्टी में परिवर्तित हो जाता है।
3) मृत शरीर के ऊपर पेड लगाने की प्रथा से पेडो की संख्या में वृद्धि होती है।
4)मृत शरीर के जमीन में गाडने से हजारो साल के बाद भी मृत शरीर की हड्डियों के अंदर के DNA से जमीन की मिल्कियत को साबित कर सकते है।
5)मृत शरीर को जमीन में गाडना जलाने से आसान होता है।
6) मृत शरीर को गाडना प्रकृति के अनुरूप होता है इससे पर्यावरण को कोई हानी नही होती है न प्रदुषण फेलता है।
👉 मृत शरीर को जलाने से नुकसान
1) मृत शरीर के जलाने से इंसान का DNA समाप्त हो जाता है।
2) मृत शरीर को जलाने के लिए पेडो को काटने से जंगल खत्म होते है।
3) मृत शरीर को जलाने से पर्यावरण में प्रदुषण फेलता है।
4) मृत शरीर के जलाने के बाद हजारो सालो के बाद हम अपने DNA के आधार पर अपनी मिल्कियत साबित नही कर सकते।
जोहार
जिंदाबाद
जय आदिवासी
Tantiya Bhil Adiwasi dada ✍️