
मांड या पसावन :
पके हुए चावल का पानी………

चावल को पकाने के बाद जो पानी बचता है उसे मांड कहा जाता है।
बिहार में कुछ जगहों पर लोग इसका सेवन भी करते हैं।
अब आहार और सौंदर्य विशेषज्ञ भी इसे सेहत के लिए फायदेमंद बता रहे हैं।
बिहार और यूपी में मांड चावल काफी प्रचलित है लोग इसे अपने रोज के खाने में खाना पसंद करते है।
बिहार में कही-कही तो इसे पसावन ही कहते हैं।
बाकी इसे मांड नाम से प्रसिद्धि मिली हुई है।
पहले पढ़ते थे कि चावल को मांड सहित बनाना चाहिए क्योंकि उसके पोषक तत्व मांड में ही होते हैं।
जब चूल्हे पर भोजन बनता था तब बटुली में चावल बनता था और चावल डालने से पहले पानी एक उचित तापमान पर गर्म किया जाता था जब पानी अच्छी तरह से गर्म हो जाए लेकिन उबलना न शुरू हो उससे पहले ही चावल धोकर डाल दिया जाता था।
इस पानी को अदहन कहते थे।
गृहणियों को इतना सटीक अंदाजा रहता था कि उनका अदहन और चावल बराबर बैठता था मजाल है कि भात गीला रह जाय या कच्चा रह जाए।
चावल और पानी का हिसाब बिन नापे एकदम बराबर रहता था कि उसी अदहन में चावल पककर एकदम बढ़िया भात बनता था।
कुछ क्षेत्रों में अदहन ज्यादा रखते हैं उबलने के बाद उनका मांड निकालकर यानि पसावन पसा कर फिर भात बनाते हैं।
इस पसावन का स्वाद बहुत बेहतरीन होता था इसे पीने के लिए हम बच्चों में मार हो जाती थी।
पसावन में मां एक कलछुल (कलछी) भात और नमक डाल देती थी और हम सब बच्चे बड़े शौक से पी लेते थे।
पहले जिन घरों में संयुक्त परिवार होता था वहां दाल सब्जी बहुत ज्यादा लगती थी इसलिए तरी वाली तरकारी की तरी को गाढ़ा करने के लिए गृहणियां इस पसावन का प्रयोग करती थी।
भात से मांड निकालकर तरकारी में डाल दिया करती थी इससे सब्जी की तरी गाढ़ी हो जाती थी और पौष्टिकता बढ़ जाती थी सब्जी को गाढ़ा करने के लिए अधिक मसाले का उपयोग भी नही करना पड़ता था।
सुबह-सुबह स्कूल रहता था और संयुक्त व बड़ा परिवार था उस पर से चूल्हे पर भोजन बनता था तो स्कूल के समय पर भोजन शायद ही तैयार हो पाता था
ऐसे में मांड संग भात ही हम सब का रोज का भोजन बनता था क्योंकि हमारे स्कूल के समय पर सिर्फ चावल ही पक पाता था।
जब नए चावल होते थे तो उनका मांड और भात दोनों ही बड़े मीठे व स्वादिष्ट होते थे।
अरवा चावल से ज्यादा स्वादिष्ट भुजिया चावल का मांड होता है।
जहां पहले मांड सहित भात बनाने की सलाह दी जाती थी अब जब लोग मधुमेह रोगी होने लगे हैं तो डॉक्टर उन्हे भुजिया चावल खाने या मांड निकालकर भात बनाकर खाने की सलाह देते हैं।
यू मधुमेह रोगी को भात से परहेज करना चाहिए परन्तु मेरी तरह जो भातहा होता है उसका बिन भात खाए पेट ही नहीं भरता है इसलिए उनके लिए मांड निकालकर भात बनाना खाना ठीक होता है।
घर में मांड भात खाने वाले सदस्यों की संख्या अधिक हो तो चावल में ज्यादा पानी डालकर गीला सा भात बनाते हैं और तीखा सा नमक मिलाकर खाते हैं इस भात को मड़गिल्ला भात कहा जाता है।
पसावन पसाना भी सबको नही आता है क्योंकि भात बनाते समय ये देखना जरूरी रहता है कि कितने प्रतिशत चावल पकने पर मांड निकालना है और कितना मांड निकालना है और कितना रहने देना है ताकि मांड भी निकले और भात भी न कच्चा रह जाए न गीला हो एकदम ठीक बने।
गर्म-गर्म बटुली में से ऊपर प्लेट रखकर मांड निकालना भी बहुत मुश्किल होता है क्योंकि चावल का भार होता है ऊपर से बेहद गर्म होता है यदि सावधानी न रखी तो जलने या फिर मांड संग भात भी गिरने का भय रहता है।
ये सब काम कुशल गृहणी ही कर सकती है क्योंकि ये देखना आसान है लेकिन करना मुश्किल होता है।