
25 पार की कुंवारी लड़कियां और दोषी मां बाप-
आज समाज में 25 वर्ष और कहीं कहीं तो 30वर्ष से भी बड़ी लड़कियाँ कुंवारी बैठी हैं।
इसका सर्वाधिक दोषी मां बाप के अलावा और कोई नहीं हो सकता।
उनके बड़े-बड़े सपनों की पूर्ति ना होने से लड़की का जीवन बर्बाद होता जा रहा है।
अगर अभी भी माँ-बाप नहीं जागे तो स्थितियाँ और विस्फोटक हो सकती हैं।
हमारा समाज आज बच्चों के विवाह को लेकर इतना सजग हो गया है कि आपस में रिश्ते ही नहीं हो पा रहे हैं।
समाज में आज 25 से 35 उम्र तक की बहुत सी कुँवारी लडकियाँ घर बैठी हैं, क्योंकि इनके मां बाप के सपने हैसियत से भी बहुत ज्यादा हैं।
इस प्रकार के कई उदाहरण हैं।
ऐसे लोगों के कारण समाज की छवि बहुत खराब हो रही है।
सबसे बडा मानव सुख सुखी वैवाहिक जीवन होता है।
पैसा भी आवश्यक है, लेकिन कुछ हद तक पैसे की वजह से अच्छे रिश्ते ठुकराना गलत है।
पहली प्राथमिकता सुखी संसार व अच्छा घर-परिवार होना चाहिए।
ज्यादा धन के चक्कर में अच्छे रिश्तों को नजर-अंदाज करना गलत है। “संपति खरीदी जा सकती है लेकिन गुण नहीं।”
मेरा मानना है कि एक समय तक अच्छे से अच्छा लड़का देखें और 25 वर्ष की आयु से पूर्व जो भी लड़के मिलें उनमें सर्वोत्तम का चुनाव कर अविलंब विवाह कर दें।
25 की उम्र के बाद विवाह नहीं होता, समझौता होता है और मेडिकल स्थिति से भी देखा जाए तो उसमें बहुत सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, बहुत सी लड़कियां मां बनने की उम्र व स्थिति पार कर चुकी होती हैं।
आज उससे भी बुरी स्थिति कुंडली मिलान के कारण हो गई है!
आप सोचिए, जिनके साथ कुंडली तो मिलती है- लेकिन घर और लड़का अच्छा नहीं मिलता, और जहाँ लड़के में सभी गुण हैं वहां कुण्डली नहीं मिलती और हम सब कुछ अच्छा होने के कारण भी कुण्डली की वजह से रिश्ता छोड़ देते हैं।
आप सोच के देखें, जिन लोगो के 36 में से 20 या फिर 36 /36 गुण भी मिल गए फिर भी उनके जीवन मे तकलीफें हो रही हैं।क्योंकि हमने लडके के गुण नहीं देखे,मात्र कुंडली पर विश्वास किया।
आजकल समाज में लोग बेटी के रिश्ते के लिए (लड़के में) चौबीस टंच का सोना खरीदने जाते हैं।
देखते-देखते चार पांच साल व्यतीत हो जातें हैं।
उच्च “शिक्षा- या “जॉब” के नाम पर भी समय व्यतीत कर देते हैं।
लड़के देखने का अंदाज भी समय व्यतीत का अनोखा उदाहरण हो गया है?
खुद का मकान है कि नही?
अगर है तो फर्नीचर कैसा है?
घर में कमरे कितने हैं?
गाडी है कि नहीं है?
है तो कौनसी है?
रहन-सहन और खान-पान कैसा है?
कितने भाई-बहन हैं?
बंटवारे में माँ-बाप किनके गले पड़े हैं बहन कितनी हैं?
उनकी शादी हुई है कि नहीं?
माँ-बाप का स्वभाव कैसा है?
घर वाले, नाते-रिश्तेदार आधुनिक ख्याल के हैं कि नही?
बच्चे का कद क्या है?
रंग-रूप कैसा है?
शिक्षा, कमाई, बैंक बैलेंस कितना है?
लड़का-लड़की सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं कि नहीं?
उसके कितने दोस्त हैं?सब बातों पर पूछताछ पूरी होने के बाद भी कुछ प्रश्न पूछने में और सोशल मीडिया पर वार्तालाप करने में और समय व्यतीत हो जाता है।
हालात को क्या कहें!
माँ -बाप की नींद ही खुलती है 30 की उम्र पार होने पर।
फिर चार-पाँच साल की यह दौड़-धूप बच्चों की जवानी को बर्बाद करने के लिए काफी है।इस वजह से अच्छे रिश्ते हाथ से निकल जाते हैं। माँ-बाप अपने ही बच्चों के सपनों को चूर चूर-कर देते हैं।
“एक समय था जब खानदान देख कर रिश्ते होते थे।”
वो लम्बे निभते थे।
समधी-समधन में मान मनुहार थी।
सुख-दु:ख में साथ था रिश्ते-नाते की अहमियत का अहसास था।
चाहे धन-माया कम थी मगर खुशियाँ घर-आँगन में झलकती थी।
आज समाज की लडकियाँ और लड़के खुले आम दूसरी जाति की तरफ जा रहे हैं और दोष दे रहे हैं कि समाज में अच्छे लड़के या लड़कियाँ हमारे लायक नही हैं,इसी कारण लडकियाँ आधुनिकता की पराकाष्ठा पार कर गई हैं।
“जब ये लड़के-लड़कियाँ मन से मैरिज करते हैं, तब ये कुंडली मिलान का क्या होता है?
तब तो कुंडली की कोई बात नहीं होती! माता- पिता सब कुछ मान लेते हैं।
तब कोई कुण्डली, स्टेटस, पैसा, इनकम बीच में कुछ भी नहीं आता।
अगर अभी भी माता- पिता नहीं जागेंगे तो स्थितियाँ और विस्फोटक हो जाएंगी ।
समाज के लोगों को समझना होगा कि लड़कियों की शादी 21-25 में हो जाए और लड़कों की22-26 की उम्र में। परिवारों का इस पीढ़ी ने ऐसा तमाशा किया है कि आने वाली पीढ़ियां सिर्फ किताबों में पढ़ेंगी “संस्कार “! समाज को अब जागना आवश्यक है,अन्यथा रिश्ते ढूंढते रह जाएंगे।”🙏🙏🙏