
ईद पर गिले शिकवे भूला कर एक दूसरे से गले मिल कर ईद की मुबारकबाद दी जाती है. इस बार ईद आज 03 मई 2022 को है. इस खास मौके पर हर मुस्लिम के लिए ईद के पहले फितरा देना फर्ज़ होता है. जिसमें हर व्यक्ति गरीबों को पौने दो किलो अनाज या उतनी कीमत देता है.
ईद-उल-फितर मुस्लिम समुदाय का सबसे बड़ा त्योहार है. दुनिया भर में ईद का त्योहार रमज़ान का पाक महीना ख़त्म होने के बाद मनाया जाता है. करीब महीने भर तक चले रोजों के बाद चांद का दीदार किया जाता है और उसी के बाद ईद की तारीख की जानकारी प्राप्त होती है. इस बार ईद आज 03 मई 2022 को है. मुस्लिम समुदाय में ईद के वक्त अच्छी खासी रौनक देखने को मिलती है. इस दौरान मस्जिदों को सजाया जाता है, सभी लोग इस दिन नए कपड़े पहनने के साथ-साथ अपने-अपने घरों में पकवान बनाते हैं.
ईद पर अपनों से छोटों को ईदी के रूप में तोहफों के अलावा पैसे भी दिए जाते हैं और सारे गिले शिकवे भूल कर आपस में एक दूसरे से गले मिल कर ईद की मुबारकबाद दी जाती है.
किस तरह मनाते हैं ईदमुस्लिम समुदाय के सबसे बड़े त्योहार ईद पर घरों में मीठे पकवान, खासतौर पर सेवई बनाई जाती है. इस पकवान का नाम शीर-कोरमा है. इस्लाम धर्म का यह त्योहार गिले शिकवे भूल कर आपस में भाईचारे का संदेश देता है.
ईद के दिन सभी लोग जल्दी उठकर नहा-धोकर नए कपड़े पहनते हैं और ईद की पहली नमाज़ सलात अल फज्र पढ़ी जाती है. मुस्लिम समुदाय के हर व्यक्ति के लिए रमज़ान में यानी ईद के पहले फितरा देना फर्ज़ होता है. जिसमें हर व्यक्ति गरीबों को पौने दो किलो अनाज या उतनी कीमत देता है.
ईद-उल-फितर का इतिहास
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार जंग-ए-बद्र के बाद ईद-उल-फितर की शुरुआत हुई थी. बताया जाता है कि इस जंग का नेतृत्व ख़ुद पैग़ंबर मोहम्मद साहब ने किया था और इस जंग में मुस्लिम समुदाय की फतह हुई थी.
क्या है ईद के चांद का महत्व
मुस्लिम धर्म को मानने वाले अनुयायी विशेष कैलेंडर को मानते हैं. जिसको चंद्रमा की उपस्थिति और अवलोकन द्वारा निर्धारित किया गया है. इसके अनुसार रमज़ान के महीने के बाद ईद का चांद नज़र आता है. रमज़ान के पाक महीने की शुरुआत चांद के दीदार से ही होती है और ये ख़त्म भी चांद के दीदार से होता है.
करते हैं अल्लाह का शुक्रियामुस्लिम समुदाय के लोग ईद वाले दिन अल्लाह का शुक्रिया अदा करते हैं क्योंकि अल्लाह ने उन्हें 30 दिनों तक रोज़े रखने की ताकत दी है. रमज़ान के महीने में दान भी किया जाता है. इसके पीछे मान्यता है कि इस पाक महीने में दान देने से उसका दोगुना फल मिलता है.