
*सादगी और विनम्र की प्रतिमूर्ति विन्ध्येश्वरी प्रसाद वर्मा उर्फ बिन्दा बाबू 135 वीं जयंती पर विशेष*
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शिवहर—–बिहार के राजनीतिक मानचित्र पर अनेकों महान विभूति हुए है एवं होते रहेगे जिनका कार्य और त्याग आने वाले पीढ़ी के लिये प्रेरण श्रोत बना रहेगा। ऐसी ही महान् विभूतियों में स्व०बिन्ध्येश्वरी प्रसाद वर्मा उर्फ बिन्दा बाबू थे ।
जन्मभूमि स्व० बिन्ध्येश्वरी प्रसाद वर्मा ( बिन्दा बाबू) का जन्म 26 सितम्बर 1886 को ग्राम मानपुरा जिला – वैशाली में हुआ था। इनके पिता – जमीनदार कालीचरण वर्मा जो एक धर्मनिष्ठ व्यक्ति थे ।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा ग्रामीण क्षेत्र में, स्नातक तक मुजफ्फरपुर में उच्च शिक्षा हेतु आगे की पढ़ाई कलकता में हुई थी। अपने पिता से प्ररित होकर वे बचपन से ही ईश्वर के प्रति आस्था रखने लगे और दस वर्ष के उम्र से ही महाभारत एवं रामायण का पाठ करते थे ।
वकालत की परीक्षा पास बिन्दा बाबू मुजफ्फरपुर में वकालत करना शुरू कर दिया। समय के अन्तराल में उनका वकालत पेशा काफी चमक गया। बिन्दा बाबू के जीवन का मुल्यमंत्र था सेवा, तभी तो वे अपनी वकालत की अच्छी कमाई को लात मारकर आजादी के दीवाने बनें । गाँधीजी जब 1917 में चम्पारण जाने के क्रम में आचार्य कृपलानी से मिले तो उनके साथ चम्पारण के निलही को अंग्रेज से मुक्त कराने के लिए बिचार विर्मश आहुत बैठक में बिन्दा बाबू भी सम्मिलित हुए।
वे गॉधीजी के के साथ चम्पारण आन्दोलन में साथ दिय, जिससे गाँधी जी उनसे काफी प्रभावित हुए तथा उनके सरैयागंज स्थित मकान में आए ,1918 में रॉलेट एक्ट के विरूद्ध मुजफ्फरपुर में आन्दोलन का संचालन बिन्दा बाबू ने किया ।
बिन्दा बाबू मुजफ्फरपुर नगर पालिका के अध्यक्ष 1923 में हुए। नगरपालिका के अध्यक्ष के रूप में लगातार पाँच बार का कार्यकाल पूरा किया। वे सादगी के प्रतिक थे। सदा ही हाथ का सिला हुआ कपड़ा पहना करते थें।
एक बार की बात है वे अपने आदमी उनसे मिलने आया। निवास स्थान पर बैठे थें । सज्जन उनसे पूछा कि बिन्ध्येश्वरी बाबू का निवास यही है। उन्होनें कहा क्या बात है। इस पर वह सज्जन खिसियाते हुए बोला । मै तुमसे जो
पुछता हूँ, उतना ही बताओं । इसपर बिन्ध्येश्वरी बाबू ने कहा कि क्षमा करें, मै ही बिन्ध्येश्वरी प्रसाद वर्मा हॅू। इस पर उक्त सज्जन ने उनसे क्षमा याचना की।
बिन्दा बाबू मुजफ्फरपुर नगर पालिका के चेयरमैन के समय स्व० रामदयालू सिंह वाइस चेरयमैन एवं महम्मद का काफी सफी दाऊदी सभापति थें। उनके कार्यकाल मे नगर विकास हुआ, गरीब जनता की सेवा करना उनके जीवन का उद्देश्य रहा। बिन्दा बाबू स्वतंत्रता प्राप्ति के उद्देश्य से कई बार जेल गये,1932 में वे हजारीबाग जेल में रहे, जहाँ स्व ० नारायण, स्व० योगेन्द्र शुक्ला भी थे। उनका दृढ़ संकल्प था कि जब जारी रखेंगे। वे जाता जेल यात्रा तक देश आजाद नहीं हो मुजफ्फरपुर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष 16 वर्षो तक एवं प्रदेश कांग्रेस के कार्य समिति के सदसय के रूप में सक्रिय रह है।
उन्होंने हरिजनों के कल्याणर्थ एक संगठन का निर्माण गॉधी जी ने बिहार मे कराया था, जिसके महासचिव बिन्दा बाबू एवं कार्यालय सचिव जगजीवन बाबू बनाये गये थे। इनके कार्यकाल में हरिजनों को धार्मिक स्थलों में प्रवेश मिला। हरिजनों के बच्चे को निःशुल्क शिक्षा मिला ।
बिन्दा बाबू कांग्रेस सदस्य के रूप में मुजफ्फरपुर जिला के ग्रामीण क्षेत्र से 1937 में बिहार विधान सभा के सदस्य हुए। बिन्दा बाबू स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व बिहार विधान सभा के अध्यक्ष 16 अप्रील 1946 को जब’ गाँधी जी के अनुयायी, सादगी, और विनम्रता की प्रतिभूति, अपने अयंत साधारण परिवेश में हाथ का सिला सफेद खादी का कुरता, खादी का मोटी धोती, दुपलिया टोपी और देहाती चमड़ऊ जूता पहने बिन्दा बाबू नवगठित विधान सभा के अध्यक्ष के आसनपर विद्यमान हुये, सभी नेता डा० श्री कृष्ण सिंह तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री के साथ सारे सभा सदो ने बड़ी गर्भजोशी से, करतल ध्वनि के बीच उनका स्वागत किया।
ऐसी थी सरल-मोहक छवि, गॉधी युग के कर्मनिष्ठ, अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी और स्वातं त्योहार युग में भी आजीवन निस्वार्थ भाव से होम कर देने वाले, राष्ट्र के सच्चे सपूत – हमारे माननीय बिन्ध्येश्वरी प्रसार वर्मा की जिन्होने बड़ी निष्ठा और लगन के साथ बिहार, विधान सभा अध्यक्ष के रूप में इस पद को गौर्वान्वित किया और 16 वर्ष के लम्बे अरसे तक अपना कार्यभार संभाला। इन्हें स्वतंत्र भारत के प्रथम विधान सभा अध्यक्ष होने का भी गौरव प्राप्त हुआ।
1946 ई0 से 1962 ई० तक बिहार विधान सभा के अध्यक्ष रहे। उनके कार्यकाल में अनेक निर्णय लिये गये, जिसमें जमीनदादी उन्मुलन शैक्षणिक और औद्योगिक विधेयक अन्य महत्वपूर्ण सामाजिक, अवधेयक थे । वे कांग्रेस के सक्रिय सदस्य थे। उनमें विलक्षण धैर्य और एकाग्रता थी और अध्यक्ष के रूप में उनकी निष्पक्षता की सभी आज भूरी-भूरी प्रशंसा करते है। कई बार जब उनको कांग्रेस पार्टी का हवाला देते हुए लोग उनसे अपनी तरफ लाने का प्रयास करते तो वे बड़े विनम्र शब्दों में अब मैं कांग्रेस का पक्षधर नही रहा, अब मै इन्साफ का पक्षधर हॅू और वे आदि-अंत तक सिद्धांत पर अटल रहे ।
वे एक महान देशभक्त के साथ वे सच्चे धर्म परायण व्यक्ति थें, ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास था, उनका मानना था कि ईश्वर के ही सभी कार्य होते है अपने जीवन के अंत तक यह विश्वास उनका बना रहा। अपने विधान सभा अध्यक्ष काल में डा० श्री कृष्णा सिंह तथा अनुग्रह नारायण सिंह के मध्य एक कड़ी का काम करते और आपसी मतभेदो को या किसी समस्या को बड़ी से निपटा दिया करते थे, इनके अदभूत गंणों एवं भव्य कुशलता व्यक्तिीत होकर ही स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जी ने इन्हे सन् 1961 ई० को पभूषण की उपाधि से अवसर शताब्दी के अलंकृत किया इनके जन्म भारत के तत्कालिन प्रधानमंत्री स्व० राजीब गॉधी ने बिन्दा बाबू को महान स्वतंत्रता सेनानी तथा संत राजनीतिज्ञ बताया था।
1971 में विधान सभा स्थित उनके तैलचित्र का अनावरण तत्कालिन लोकसभा अध्यक्ष गुरु दयायल सिंह ढिल्लो ने किया उन्होने ने कहा कि आनेवाला प्रेरण लेना पीढ़ी तथा खासकर विधान सभा अध्यक्षो को उनसे चाहिए। किस तरह बिन्दा बाबू ने निष्पक्ष होकर विधान सभा का 1946 से 1962 तक संचालन किया ।
त्याग और सादगी प्रतीक बिन्दा बाबू ने 1962 ई के पश्चात सक्रिय राजनीति से एकदम सन्यास ले लिया और पंडित जवाहर लाल नेहरू के आग्रह के बावजूद भी कोई उच्च पद इन्होने स्वीकार नही किया । तथा कहते
रहे क़ि नये लोगो को मौका दिजीए।
133वीं जयंती के अवसर पर बिहार विधानसभा अध्यक्ष
श्री विजय कुमार चौधरी, द्वारा बिहार विधानसभा विन्धेश्वरी प्रसाद वर्मा एक संत राजनेता की पुस्तक का विमोचन विधानसभा परिसर में किया गया है।
इस महान विभूति को हमेशा याद में रखने के उद्देश्य से मेरी एवं जनता को दिये सरकार द्वारा अश्वासन के तहत सरकार से मेरा आग्रह है कि उनका आदमकद प्रतिमा राजधानी एवं मुजफ्फरपुर नगर में बनाया जाये। नियति ने हमसे 22 जुलाई 1968 को इन्हें छीन लिया । अंत में ऐसे महान विभूति को मै श्रद्धासुमन अर्पित कर श्रद्धांजलि दे रहा हूँ।
*लेख – शिवम् राज गोरखपुरी