
🛕🛕🛕🛕🛕🛕🛕🛕🛕🛕🛕
🔔🔔 राम वन गमन🔔🔔
🌹🌹🌹 भाग 48🌹🌹🌹
💥☘💥☘💥☘💥☘️💥☘️💥
☀️ आचार्य श्री करुणेश शुक्ल जी☀️
☘💥☘💥☘️💥☘️💥☘️💥☘️
सज्जनों , भगवान राम ने केवट से कहा , केवट भैय्या ! अब तो पैर भी धुल लिया , चरणामृत का सबके साथ पान भी कर लिया अब तो पार ले चलो । केवट ने कहा , बस महराज ! एक छोटा सा कार्य और है , उसके बाद ले चलता हूँ । भगवान ने कहा , अब क्या शेष है ? केवट कहता है महराज ! मै तो अनपढ हूँ , साथ ही यहाँ पर उपस्थित सभी भील भी अनपढ है । यहाँ पर आप तीनो ही पढे लिखे है ।गुरुदेव वशिष्ठ ने आपको शिक्षा प्रदान की हैं ।कर्मकाण्ड का भी ज्ञान दिया होगा , भले ही आप क्षत्रिय राजकुमार हो पर अगर जल्दी चाहते हो तो पहले आप मन्त्रोचारण करें और मै अपने पितरो को तर्पण कर दूँ उसके बाद गंगा पार कराता हूँ । अन्यथा आप रुको हम जाते है किसी कर्मकाण्डी से अनुनय विनय करते है यदि आ गया तो ठीक है । भगवान राम ने लक्ष्मण की तरफ देखा और कहा -लक्ष्मण ! चलो शुरु हो जाओ । मन्त्रोचारण होने लगा । राम लक्ष्मण केवट के बाप दादाओ का तर्पण कराते है , कितने भाग्यशाली होंगे केवट के पितृगण । लक्ष्मण जी कहते है , महराज ! यह कहता था कि सामने किनारे जाने के पैसे नही लेगा पर इसने बाकी क्या रखा ? हमसे कर्मकाण्ड भी करवा लिया –
*पद पखारि जलु पान करि आपु सहित परिवार ।*
*पितर पारु करि प्रभुहि पुनि मुदित गयउ लेइ पारि ।।*
मित्रों – अनपढ केवट भी अपने पितरो का तर्पण करना नही भूला और आजकल का पढा लिखा व्यक्ति कहता है , *क्या है तर्पण?* । हमारी पहचान जिससे है जिस दिन उन्हे भुला दोगे , हमारा स्वयं का कोई अस्तित्व नही रह जायेगा । जीवनकाल मे पितरो की सेवा और मरणोपरान्त उनके निमित्त तर्पण पिण्डदान मत भूलना , तभी रामायण पढना , कथा श्रवण करना सफल होगा ।
केवट, पितरो को , कुल को ,गाँव को , पत्नी को पार लगाया , फिर राम जी से कहा ,महराज ! अब आप नौका मे बिराजिये । भगवान राम ने सर्वप्रथम सीता जी को बिठाया फिर स्वयं बैठे पीछे लक्ष्मण जी एवं निषादराज भी बैठे । नौका की रस्सी केवट ने खोली ।नौका मंदगति से किनारे की ओर चल पडी़ ।भीलो के द्वारा राम जी का जय जयकार हो रहा है । दूसरे किनारे पर नौका पहुचने लगी तो केवट के मन मे विचार आया कि वैसे तो हमने इन्हे बहुत परेशान किया है – यदि जल्दी किनारे पहुंचाया तो जल्दी उतर जायेंगे , रुकेंगे नही । यह दर्शन बार बार मिलने वाला नही हैं । अभी मेरे नियन्त्रण मे है – उसने तुरन्त नौका को किनारे की तरफ न ले जाकर फिर बीच की तरफ घुमाने लगा ।लक्ष्मण जी ने देखा तो रामजी से कहा , भैय्या ! यह नाव वापस क्यूँ ले जा रहा है ? केवट ने कुछ सुना ही नही – अपने मे मगन कोई सुन्दर गीत गुनगुना रहा है । इधर उधर घुमाते घुमाते दो तीन घण्टे हो गये । लक्ष्मण जी भगवान राम से कहते है , भैय्या ! अब यह नया खेल खेलने लगा – अब आपही कुछ बोलो । राम जी कहते है – केवट ! क्यों इधर से उधर चक्कर लगा रहे हो ? केवट कहता है , महराज ! आपको क्या समस्या है ? आप लोगो को तो चौदह वर्ष वन मे काटने हैं । क्या इसमे कोई तिथि या वार निश्चित है कि अमुक तिथि या वार को पहुँचना हैं ? राम जी कहते है , नहीं । केवट ने कहा , तो क्या समस्या है , कुछ दिन यहीं सही ।नौका मेरी है , चलानी भी मुझे आती है , आपको तो केवल बैठे रहना हैं ।पैसे भी नही देने हैं ।लक्ष्मण जी की क्रोध से आँख लाल – क्रोध मे कहते है – अब तू उतारने का नाटक बन्द कर । रामजी कहते है , भइया ! और कुछ नही पर हमे जो इधर से उधर चक्कर लगाता है इससे हम परेशान हो गये हैं । केवट ने व्यंग किया – महराज ! गंगा के दो किनारो के बीच चार छः चक्कर लगाता हूँ इससे आप परेशान हो गये और आप हम सबको चौरासी लाख चक्कर खिलाते हो तो हम सब परेशान नही होते ।
सज्जनों – भक्त उलाहना भी देता है । रामजी ने बात बदल दी और कहा कि केवट ! परेशानी की बात सिर्फ इतनी है कि जब तू नाव इधर उधर करता है तो डर लगता है । केवट ने कहा , प्रभू ! यदि गिरने का डर लगता है तो मेरा हाथ पकड़ लीजिये ~ धन्य है केवट ! यदि श्रीराम मेरा हाथ पकडे़गे तो मै भवसागर मे नही गिरुँगा ।रामजी ने केवट का हाथ पकड़ लिया । गोस्वामी बाबा कहते है –
उतरि ठाढ भये सुरसरि रेता । सीय रामु गुह लखन समेता ।
किनारे पर उतरकर रामजी , लक्ष्मण , सीता , निषादराज गंगा जी की बालुका मे खडे़ हुये ।
उसके बाद केवट ने नौका को रस्सी से बाँधा । अब केवट गंगा जी मे बिधिवत हाथ पैर धुलकर प्रभु के सम्मुख पहुँचकर एक ऐसा कार्य किया जो अभी तक नही किया था ।
क्या किया केवट ने ? पहले न करने का कारण ? जानने के लिये पढिये अगला भाग ———- तब तक ——// जपते रहे —– *जय जय सीताराम जयय जय राधेश्याम*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏