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🔔🔔 *राम वन गमन* 🔔🔔
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,,,,,,✒️आचार्य श्री करुणेश शुक्ल जी
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सज्जनों , केवट के प्रेम मे लिपटे कठोर वाक्यो को सुनकर भगवान हंस पडे़ ।राम जी को हंसता देख सीता जी अत्यन्त प्रसन्न हो गयी । स्वाभाविक है पति को हंसता देखकर पत्नी को आनन्द ही होता है । अयोध्या से चले तब से श्रीरामजी का चेहरा गम्भीर था , पर वह भक्त ध्य है जिसने मेरे प्रभु को हंसा दिया । गोस्वामी बाबा का मत है कि प्रभु श्रीराम , लक्ष्मण और सीता जी की तरफ देखकर हंसे –
सुनि केवट के बैन प्रेम लपेटे अटपटे ।
बिहसे करुनाएन चितइ जानकी लखन तन ।।
आइये विचार करें कि प्रभु सीताजी और लक्ष्मण जी की तरफ देखकर क्यूँ हंसे ? सज्जनों – पहली बात तो प्रभु सीता जी और लक्ष्मण जी की तरफ देखकर इसलिये हंसे कि तुम दोनो मुझे प्सन्न करने का लाख यत्न किया पर स्वाभाविक रुप से यही भक्त (केवट) मुझे प्रसन्न कर पाया । वैसे मित्रो इस प्रसंग पर भिन्न भिन्न भाव संतो ने दिये है । कुछ सन्तो की मान्यता है कि रामजी सीता जी को देखकर यह कहना चाहते है कि , सीते ! विवाह समारम्भ याद आता है । जब आपके पिता ने आप जैसी सुन्दरी कन्या दान मे दी तब मैने तुम्हारे पिता को एक चरण का अंगूठा ही धोने दिया था ? यह देता लेता कुछ नही पर दोनो चरणों को धोना चाहता है । लक्ष्मण जी की ओर देखकर इसलिये हंसे कि -बचपन मे लक्ष्मण जी की एक आदत थी कि राम जी के साथ एक पाँलने मे सोवे और रामजी के पाँव का अगूँठा चूसे तभी लक्ष्मण जी को नींद आती थी । जब अँगूठा चूसने को न मिले तो लक्ष्मण जी सारे घर मे परेशानी उत्पन्न करते थे । लोगो को जगाते थे । यहाँ पर राम जी लक्ष्मण जी को कहते है , बचपन मे जब अगूँठा नही चूस पाता था तब सबको परेशान करता था और यहाँ केवट दोनो पैर धोने वाला है तुम कुछ नही कर सकते ।
कुछ सन्तो की मान्यता है कि अयोध्या मे एक नियम था कि प्रथम होलिकोत्सव पर नववधू अपने देवरो को नेग देती थी । सीता जी के अयोध्या आगमन पर जब पहली होली पडी़ तो भरत ,सत्रुघ्न और लक्ष्मण ने नेग मांगा । भरत जी ने जन्म जन्मान्तर राम जी के चरणों मे प्रीति माँगी , सत्रुघ्न जी ने कहा मै जन्म जन्मान्तर राम जी के दासो का दास बनना चाहता हुँ । जब लक्ष्मण जी का नम्बर आया तो लक्ष्मण जी ने भगवान राम के दोनो चरणों की सेवा का अधिकार माँगा । इस माँग को सुनते ही सीता जी मूर्क्षित होकर पृथ्वी पर गिर पडी़ । बहुत से वैद्य आये पर कोई सीता जी की मूर्क्षा दूर नही कर पाया ।सीता जी को गहरा आघात लगा था ।यदि सेवा ही चली जायेगी तो मेरे जीवन का क्या अर्थ होगा । सारी मातायें लक्ष्मण जी को धमकाती है तूने ऐसा क्या माँग लिया कि सीता मूर्क्षित हो गयी ? तब लक्ष्मण जी ने बताया कि मैने प्रभु के दोनो चरणों की सेवा माँगी हैं । राम जी ने लक्ष्मण को बुलाया और चुपके से कहा कि तुम सीता जी के कान मे कह दो कि आज से एक पैर की सेवा तुम करना और एक पैर की मै करुँगा उनकी मूर्क्षा दूर हो जायेगी । लक्ष्मण जी ने जाकर यही किया । सीता जी मूर्क्षा दूर हो गयी । महल मे पुनः आनन्द व्याप्त हो गया ।
मित्रों – आज गंगा किनारे राम सीता और लक्ष्मण को होली के त्योहार की याद दिलाते है । उस दिन आप दोनो एक एक पाँव के लिये लडते थे आज यह तीसरा आदमी दोनो पाँव ले जा रहा है । हम इसे बाँट नही सकते फिर भी इस केवट ने दोनो पांव की सेवा ले ली ।
सज्जनों – इस प्रकरण पर एक सर्वमान्य मत पूर्व जन्म का कछुआ जो केवट बन कर आया था । वैकुण्ठ मे श्री नारायण के पैर को छूना चाहता था । जब वह पैर की तरफ जाता तो लक्ष्मी जी हटा देती और शिर के पास जाने लगता तो शेष जी फुंफकार कर भगा देते । कई बार प्रयास के बाद भी वह कछुआ भगवान के चरण को नही छू पाया इसी प्रयास मे उसकी मृत्यु हो गयी । वही केवट बनकर आया है और राम जी के दोनो चरणों को धोने जा रहा है । शेष जी लक्ष्मण के. रुप. मे और लक्ष्मी जी सीता के रुप मे सम्मुख है कुछ नही कर पा रहे हैं ।
मित्रों – कुछ भी कारण रहा हो पर राम जी लक्ष्मण और सीता जी को देखकर हंसे । केवट को पिछला जन्म याद है । आज वह जिद पर अडा़ है आप अपना पैर यदि नही धोने को कहोगे तो महराज मै नाँव पर नही बैठाउँगा । इधर गंगा जी परेशान होने लगी कि केवट चर्चा बन्द करे तो अच्छा रहेगा ।शायद लक्ष्मण क्रोधित होकर केवट की जगह मुझ पर ही बाण न चला दे ।तुम हठी हो तुम्हारे कारण भैय्या यहाँ रुके है और इस की अगूढ बाते सुन रहे हैं । लगता है मेरे दरवाजे पर आकर भी राम जी चले जायेंगे और मै चरण भी नही छू पाउँगी । जब श्रीराम जी ने देखा कि इस हठी भक्त की बात माने बिना काम नही चलने वाला तो रामजी को कहना पडा़ –
बेगि आनु जल पाय पखारु । होत बिलंबु उतारहि पारु ।।
धन्य है केवट ! आज प्रभु को सामने से कहना पडा़ कि भाई जल ले आ और मेरे पाँव धो ले , और मुझे उस पार जल्दी उतार दो ।केवट यह सुनकर नाँचने लगा ।रामजी ने पुनः कहा – यह नाचना बन्द करो और जल्दी पैर धुलो ~मुझे बिलम्ब हो रहा है । केवट कहता है महराज ! इतनी जल्दी नही हो पायेगा , बहुत जल्दी हो तो दूसरा रास्ता देख लो ! लक्ष्मण जी क्रोध मे आग बबूले — पर कर क्या सकते है ? राम जी चुप !! केवट ने कहा , महराज ! अनपढ जरुर हूँ पर मैने इतना जरुर सुना है कि सत्कार्य करना हो तो अकेले नही किया जाता । पत्नी भी साथ होना चाहिये । इसलिये आप रुको – मै घर जाकर अपनी पत्नी को लिवाकर आऊँ तब पैर धुलता हूँ । लक्ष्मण जी कहते है – महराज ! अब तो हद हो गयी ~ यह पत्नी परिवारजनो को बुलायेगा । किसी को महत्व दे दो तो वह पता नही अपने आप को क्या समझने लगता है ? राम जी कहते है , जब इसकी यही इच्छा है तो पूरी कर. लेने दो ।
किस प्रकार पत्नी के साथ केवट ने भगवान के पैरो को धुला ? जानते है ——-/ अगले सत्र मे ——– तब तक ——- जय जय सीताराम जय जय राधेश्याम
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