
जयचंद और मीर कासिम के साथ मुलायम का नाम लिया जाएगा
– हमारे देश में परंपरा है कोई कितना ही बुरा क्यों ना हो ?
मरने के बाद कहा जाता है कि फलाने स्वर्गवासी हो गए…
देवलोकगमन हो गया…
श्रीचरणों में विलीन हो गए…
आदि आदि ।
लेकिन सच कहने की ताकत बहुत कम लोगों में होती है ।
मुल्ला मुलायम ना तो स्वर्गवासी हुए और ना ही श्रीचरणों में विलीन हुए ।
मुलायम का नाम इतिहास में जयचंदों और मीर कासिमों के साथ लिया जाएगा ।
-मुलायम सिंह यादव की जीवनी डॉ सुनील जोगी ने लिखी है ।
आज मैंने उस किताब के कुछ पन्नों को पलटा और मैं उस अध्याय पर गया जहां 1990 में कारसेवकों पर गोलीकांड का जिक्र था ।
डॉ सुनील जोगी ने अपनी किताब में 1990 के गोलीकांड के अध्याय का नाम दिया है…
ऐतहिासिक जिम्मेदारी ।
-मतलब बिलकुल साफ है…
समाजवादी लेखक भी मानते हैं कि 1990 में कारसेवकों पर की गई गोलीबारी एक ऐतिहासिक घटना थी और इस ऐतिहासिक घटना के सूत्रधार मुलायम सिंह यादव थे ।
समाजवादी लेखक मुझसे सहमत नहीं होंगे लेकिन सच यही है कि मुलायम सिंह यादव को भारत के इतिहास में 1990 के गोलीकांड के लिए ही याद किया जाएगा ।
हिंदुओं के गद्दार के रूप में याद किया जाएगा और वोट के लिए हिंदुओं का कत्ल करने के लिए याद किया जाएगा
मुलायम स्वयं भी मुसलमानों के सामने ये कहकर वोट मांग चुके थे कि मुझे वोट दो क्योंकि मैंने बाबरी ढांचे को बचाने के लिए कार सेवकों पर गोलियां चलवाई थीं
-सिर्फ यही नहीं…
काशी विश्वनाथ में ज्ञानवापी परिसर के अंदर पहले हिंदुओं का जाना बहुत सरल था ।
कोई बंदिश नहीं थी लेकिन मुलायम ने मुसलमानों के दबाव में और मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते वहां पर बैरीकेड्स लगवा दिए थे ।
जिसकी वजह से ज्ञानकूप और श्रृंगार गौरी हिंदुओं की पहुंच से दूर हो गए थे ।
इसका केस आज भी चल रहा है और वाराणसी में सुनवाई हो रही है ।
मुलायम सिंह यादव को हिंदुओं के विलेन के रूप में ही याद किया जाएगा ।