
जब सीताजी की रक्षा करते हुए ,रावण ने जब जटायु के दोनों पंख काट डाले, तो काल आया और जैसे ही काल आया, मौत आई तो गीधराज जटायु ने कहा — खवरदार ! ऐ मौत ! आगे बढ़ने की कोशिश मत करना।मैं मौत को स्वीकार तो करूँगा; लेकिन तू मुझे तब तक नहीं छू सकती, जब तक मैं सीता जी की सुधि प्रभु श्री राम को नहीं सुना देता।
गीधराज जटायु ने कहा — मैं मौत से डरता नहीं हूँ ।तुझे मैं स्वीकार करूँगा; लेकिन मुझे तब तक स्पर्श नहीं करना, जब तक मेरे प्रभु श्री राम न आ जायँ और मैं उन्हें सीताहरण की गाथा न सुना दूँ ।
किन्तु महाभारत के भीष्म पितामह जो महान तपस्वी थे, नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे, 6 महीने तक बाणों की शय्या पर लेट करके मौत का इंतजार करते रहे ।आँखों से आँसू गिरते थे।भगवान कृष्ण जब जाते थे तो मन ही मन हँसते थे; क्योंकि सामाजिक मर्यादा के कारण वहिरंग दृष्टि से उचित नहीं था; लेकिन जब जाते थे तो भीष्म के कर्म को देखकर मन ही मन मुसकराते थे और भीष्म पितामह भगवान कृष्ण को देखकर दहाड़ मारकर रोते थे।कन्हैया! मैं कौन से पाप का परिणाम देख रहा हूँ कि आज बाणों की शय्या पर लेटा हूँ ।भगवान कृष्ण मन ही मन हँसते थे, वहिरंग दृष्टि से समझा देते थे भीष्म पितामह को; लेकिन याद रखना वह दृश्य महाभारत का है, जब भगवान श्री कृष्ण खड़े हुए हैं, भीष्मपितामह बाणों की शय्या पर लेटे हैं, आँखों में आँसू हैं भीष्म के, रो रहे हैं ।भगवान मन ही मन मुसकरा रहे हैं ।
रामायण का यह दृश्य है कि गीधराज जटायु भगवान की गोद रूपी शय्या पर लेटे हैं, भगवान रो रहे हैं और जटायु हँस रहे हैं ।बोलो भाई, वहाँ महाभारत में भीष्म पितामह रो रहे हैं और भगवान कृष्ण हँस रहे हैं और रामायण में जटायु जी हँस रहे हैं और भगवान राम रो रहे हैं ।बोलो, भिन्नता प्रतीत हो रही है कि नहीं?
अंत समय में जटायु को भगवान श्री राम की गोद की शय्या मिली; लेकिन भीषण पितामह को मरते समय बाण की शय्या मिली।जटायु अपने कर्म के बल पर अंत समय में भगवान की गोद रूपी शय्या में प्राण त्याग रहा है, राम जी की शरण में, राम जी की गोद में और बाणों पर लेटे लेटे भीष्म पितामह रो रहे हैं ।ऐसा अंतर क्यों?
ऐसा अंतर इसलिए है कि भरे दरबार में भीष्म पितामह ने द्रौपदी की इज्जत को लुटते हुए देखा था, विरोध नहीं कर पाये थे ।दुःशासन को ललकार देते, दुर्योधन को ललकार देते; लेकिन द्रौपदी रोती रही, बिलखती रही, चीखती रही, चिल्लाती रही; लेकिन भीष्म पितामह सिर झुकाये बैठे रहे।नारी की रक्षा नहीं कर पाये, नारी का अपमान सहते रहे ।उसका परिणाम यह निकला कि इच्छा मृत्यु का वरदान पाने पर भी बाणों की शय्या मिली और गीधराज जटायु ने नारी का सम्मान किया, अपने प्राणों की आहुति दे दी।तो मरते समय भगवान श्री राम की गोद की शय्या मिली।
जाकर नाम मरत मुख आवा।
अधमउ मुकुत होइ श्रुति गावा॥🚩
शिवजी कहते है, हे उमा! मरते समय जिनका नाम मुख में आ जाने से अधम से अधम (महान् पापी) भी मुक्त हो जाता है, ऐसी है राम के नाम की महिमा, ऐसा वेद गाते हैं-॥🚩
भगवान राम सीता मैया की खोज करते हुए, जव वन में आगे बढ़ते है तो क्या देखते है गिद्धराज पक्षी घायल अवस्था में तड़पता हुआ अंतिम समय मे राम राम पुकार रहा है तब भगवान राम उसे अपनी गोदी में बिठा लेते है-और उसे परमगति प्रदान करते है-अदभुद दृश्य-रघुकल नन्दन जय श्री राम।।
परहित वस् जिनके मन माही ।
तिन्ह कंहु जग दुर्लभ कछु नाही ।।🚩
भगवान राम लखन से कहते है हे भाई! जिनके मनमें दूसरों का हित बसता है ( समाया रहता है ) उनके लिए जगत में कुछ भी ( कोई भी गति ) दुर्लभ नही है ।🚩
संसार में वे ही सुकृत मनुष्य हैं, जो दूसरों के हित के लिए अपना सुख छोड़ देते हैं। 🚩
एक मास भक्षी करने वाले गिद्ध पक्षी को प्रभु अपनी गोद में विठाते है क्योकि गीध ने सीता माँ को रावण से छुड़ाने के लिए अपनी जान कुर्वान करदी इसलिए प्रभु ने उसे परमगति प्रदान की ➖जो परहित करते है उन्हें हमारे प्रभु इसी तरह गले से लगाते है➖ जितना हो सके परहित करो भाई➖प्रभु राम दया के सागर है ➖जय हो प्रभु राम की➖
जो दूसरों के साथ गलत होते देखकर भी आंखें मूंद लेते हैं उनकी गति भीष्म जैसी होती है और जो अपना परिणाम जानते हुए भी औरों के लिए संघर्ष करता है उसका माहात्म्य जटायु जैसा कीर्तिवान होता है।
।।।।मेरे प्रभु राम।।जय श्री राम।।