
ॐ नमः शिवाय
पूर्व काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था।
वो शिकार करके अपने परिवार का पालन पोषण किया करता था।
उसपर एक साहूकार का कर्जा था जिसका ऋण चित्रभानु ने एक बार वक्त पर नहीं चुकाया।
जिससे साहूकार उसपर क्रोधित हो गया और उसे शिव मठ में बंदी बना लिया।
जिस दिन साहूकार ने शिकारी को बंदी बनाया वो दिन शिवरात्रि का था।
शिव मठ में उस दिन शिकारी ने ध्यानमग्न होकर शिव से जुड़ी धार्मिक बातें सुनीं इसके साथ ही उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी।
शाम होने पर साहूकार ने शिकारी चित्रभानु को अपने पास बुलाया और उससे ऋण को अदा करने पर बात की। जिसके बाद शिकारी ने अपना सारा ऋण साहूकार को लौटा दिया और अपने बंधक से मुक्त हो गया।
इसके बाद वो जंगल में शिकार के लिए निकला लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण शिकारी भूख-प्यास से व्याकुल हो उठा ।
वो अपना शिकार खोजते हुए बहुत दूर निकल गया।
शिकार ढूंढते ढूंढते रात हो गई।
इस पर शिकारी चित्रभानु ने विचार किया कि उसे रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी।
ये सोचकर वो एक तालाब के किनारे पहुंचा जहां उसे एक बिल्व वृक्ष नजर आया जिसपर चढ़कर वो रात बीतने का इंतजार करने लगा।
बिल्व वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग था,
जो बिल्वपत्रों से ढका हुआ था।
जिसका अंदाजा शिकारी को नहीं था।
अपना पड़ाव बनाते वक्त उसने जो टहनियां तोड़ीं वे संयोग से शिवलिंग पर जा गिरी।
इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए।
एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची।
तभी शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची,
हिरणी बोली- ‘मैं गर्भिणी हूं
और शीघ्र ही प्रसव करूंगी।
तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे,
जो ठीक नहीं है।
मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी,
तब तुम मुझे मार लेना।
शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।
प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र फिर से टूटकर शिवलिंग पर गिर गए।
इस प्रकार उसका अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न हो गया।
कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली।
जिसे देख शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा।
समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया।
तब उसे देख हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया-
‘हे शिकारी!
मैं अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं।
मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।
हिरणी की बात सुनकर शिकारी ने उसे भी जाने दिया।
दो बार शिकार को खोकर शिकारी चिंता में पड़ गया।
रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था।
इस बार भी धनुष से लगकर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे।
इससे दूसरे प्रहर की पूजन भी सम्पन्न हो गई।
तभी एक अन्य हिरणी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली।
शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था।
उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई।
वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली-
‘हे शिकारी!
मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी।
इस समय मुझे मत मारो।’
शिकारी हंसा और बोला- ‘सामने आए शिकार को छोड़ दूं,
मैं ऐसा मूर्ख नहीं।
इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं।
मेरे बच्चे भूख-प्यास से व्याकुल हो रहे होंगे।
जिसके उत्तर में हिरणी ने फिर कहा- जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है,
ठीक वैसे ही मुझे भी सता रही है।
हे शिकारी!
मेरा विश्वास करो,
मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।
हिरणी का दुखभरा स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई।
उसने उस मृगी को भी जाने दिया।
शिकार के अभाव में और भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था।
सुबह होने ही वाली थी कि एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया।
शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा।
शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला- ’
हे शिकारी!
यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है,
तो मुझे भी मारने में विलंब न करो,
ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुख न सहना पड़े। मैं उन हिरणियों का पति हूं,
यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो।
मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।’
मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया।
उसने सारी कथा मृग को सुना दी।
तब मृग ने कहा- ‘मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं,
मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी।
अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है,
वैसे ही मुझे भी जाने दो।
मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।’
शिकारी ने उसे भी जाने दिया।
इस प्रकार सुबह हो आई।
उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही पर शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई।
पर अनजाने में ही की हुई पूजन का परिणाम उसे तत्काल मिला।
थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया,
ताकि वह उनका शिकार कर सके,
किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता,
सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई।
शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया।
उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया।
अनजाने में ही क्यों न सही पर शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई।
जब मृत्यु काल में यमदूत उसके जीव को ले जाने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया तथा शिकारी को शिवलोक ले गए।
शिवजी की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए तथा महाशिवरात्रि के महत्व को जानकर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।
राजा ने मासिक शिवरात्रि के इस व्रत का प्रचार प्रसार पूरे विश्व में फैलाया और लोगों को इसके महत्व के बारे में बताया।
हर_हर_महादेव 🙏