
भारत का आकाश संतों से भरा है…
उन्हीं में से एक थे देवरहा बाबा
‘खेचरी योग मुद्रा’ को सिद्ध किए हुए थे देवरहा बाबा…
इस मुद्रा की साधना के लिए पद्मासन में बैठकर दृष्टि को दोनों भौहों के बीच स्थिर करके फिर जिह्वा को उलटकर तालु से सटाते हुए पीछे रंध्र में डालने का प्रयास किया जाता है। इस स्थित में चित्त और जीभ दोनों ही ‘आकाश’ में स्थित रहते हैं, इसी लिये इसे ‘खेचरी’ मुद्रा कहते हैं ।
इसमें साधक अपनी श्वास और हवा यानी वायु पर नियंत्रण पा लेता है। इससे वो योग साधना में लीन होकर काफी समय तक श्वास नहीं लेता, जिससे उनके शरीर का विकास वहीं थमा रहता है इसीलिए खेचरी योग साधक बहुत लंबे समय तक जीते थे ! परम् वंदनीय महर्षि देवरहा बाबा भी उनमें से है!!
देवरहा बाबा एक ऐसे महान संत योगीराज जिनके चरणों में सिर रखकर आशीर्वाद पाने के लिए देश ही नहीं विदेशों के राष्ट्राध्यक्ष तक लालायित रहते थे।
एक बार देवरहा बाबा से मिलने प्रधानमंत्री राजीव गांधी को आना था। आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक पेड़ को काटने के निर्देश दिए। पता लगते ही बाबा ने एक बड़े अफसर को बुलाया और पूछा कि पेड़ क्यों काटना चाहते हो? अफसर ने कहा, ‘प्रधानमंत्री आ रहे हैं, इसलिए जरूरी है।’ बाबा बोले, ‘ नही! यह नहीं काटा जाएगा। इसने अभी रो-रो के मुझसे तुम लोगों को शिकायत की है।’ अफसरों ने अपनी मजबूरी बताई पर बाबा जरा भी राजी नहीं हुए। उनका कहना था कि ‘यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो साथी है, पेड़ नहीं कट सकता।’
फिर बाबा एकदम से बोलो ‘रुक जाओ, प्रधानमंत्री का कार्यक्रम ही टलेगा।’ इसी उहापोह के बीच दो घंटे लग गए और तभी प्रधानमंत्री कार्यालय से रेडियोग्राम आता है कि प्रधानमंत्री जी का प्रोग्राम अपरिहार्य कारणों की वजह से स्थगित हो गया है।
ईभउ कहते हैं कि प्रसाद देने के लिए बाबा अपना हाथ ऐसे ही मचान के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मेवे या कुछ अन्य खाद्य पदार्थ आ जाते थे जबकि मचान पर ऐसी कोई भी वस्तु नहीं रहती थी।
श्रद्धालुओं को कौतुहल होता था कि आखिर यह प्रसाद बाबा के हाथ में कहाँ से और कैसे आता है। जनश्रुति के मुताबिक, वह खेचरी मुद्रा की वजह से आवागमन से कहीं से कभी भी चले जाते थे। उनके आस-पास उगने वाले बबूल के पेड़ों में काँटे नहीं होते थे। चारों तरफ सुंगध ही सुंगध होती थी।