
“हम…..
मुझे अब तुम्हारे मां बाबूजी के साथ नहीं रहना मुझे अलग घर में अपने परिवार के साथ रहना है
सुधा ने बिरजू को मुंह बनाकर कहा
क्या….
ये तुम क्या कह रही हो सुधा …
जानती भी हो क्या अनाप शनाप बक रही हो मेरे मां बाबूजी जो तुम्हें बेटियों जैसे प्यार करते हैं तुम उन्हें छोड़कर …
तुम्हारी तबियत तो ठीक है ना
मेरी तबियत ठीक है मगर मैंने जो कहा वो भी ठीक ही कहा है मुझे अलग होना है बस
सुधा …
तुम ….
आराध्या की सोचों वो मां बाबूजी से कितना लाड प्यार करती है और मां उसे उसकी मनपसंद चीजें बनाकर खिलाती है और बाबूजी उसे कहानियां सुनाते हैं मुझे भी मां के हाथों के खाने में ही स्वाद आता है में कहीं नहीं जाऊंगा बस ये मेरे मां बाबूजी का घर है और जैसे उन्होंने बचपन में मेरी ख्वाहिशें पूरी की वैसे ही में भी उनके बचपन वाली बुजुर्ग उम्र में उनकी इच्छाओं को पूरा करुंगा में यही रहूंगा
उनके साथ बस …
कहते हुए बिरजू बाहर निकल आया
सुधा बिस्तर पर लेट गई और रोने लगी…
उसकी
सास सचमुच उसे प्यार तो अपनी बेटियों से भी अधिक करती थी और मान सम्मान करती थी पर ना जाने कयुं उसे सब दिखावा लगता था क्योंकि जब भी उसकी तीनों ननद आती तो वह अपनी बेटियों के आगे उसे भूल जाती और वहीं तीनों ननद की फरमाइशें पूरी करते करते उसे सारा दिन रसोईघर में खपना पड़ता हालांकि उसकी सास बीच बीच में आकर रसोईघर में उसकी मदद करती मगर उसे गुस्सा इस बात का आता की उसकी ननदें उसके साथ रसोईघर में हाथ कयुं नहीं बंटाती इसपर जब भी वो नाराज़ हो कर सांस से कहती तो वह मुस्कुरा कर कहती …
बहू ….
तुम्हारी ननदें चार दिन के लिए आती है ये पराये घर की बेटियां हैं
इसलिए उनका आदर भाव करना पड़ता है
लेकिन तुम तो मेरी वो बेटी हो
जिसे मेरे साथ ही रहना है बेटा मेहमानों का आदर सत्कार करना हमारे बुजुर्गों ने हमें सिखाया है
कहते हैं ना
अतिथि देवो भव तो बस उसकी सेवा करने से कैसी हिचकिचाहट
अच्छा ये बहुत खूब कही आपने …
वो सभी आकर मस्ती करती रहे और मैं काम में लगी रहूं नौकरानी की तरह माफ कीजिए ये मुझसे नहीं होगा
अच्छा यदि ऐसा है तो बेटा तुम भी दो चार दिन के लिए अपने मायके मस्ती कर आया करो मैंने कब मना किया कहो…
ये क्या बात हुई कि वह सब यहां आएं और मैं मायके चली जाऊं आप उन्हें भी तो कह सकती हो कि अब इसको आराम दो और कुछ वक्त तुम रसोईघर में लगो लेकिन आप उनको काम नहीं बता सकती हो क्योंकि वह आपकी बेटियां हैं
और में बहु
बहू…
मैने कब तुम्हारे और उनके प्यार में फर्क किया कहो …
खैर बेटा ये घर हमारा है तो यहां का काम भी हमारी जिम्मेदारी है आज भी हमें करना है और कर भी हमें ही करना है चार दिन उन्होंने कर भी लिया तो उससे क्या होगा फिर भी तो हमें ही करना है
पर मांजी थोड़ा बहुत तो वह करवा ही सकती है ना मगर आप उन्हें नहीं बोलती है
बेटा….
मैं तो तुम्हें भी नहीं बोलती तुम भी मत किया करो मगर तुमने ही मना किया तुम्हारे आने से पहले भी मैं ही करती थी एक दूसरे को तर्क वितर्क करते हुए बात इतनी बढ़ी की अलग चूल्हे करने पर आ गई
सुधा ने गुस्से में कहा…
मुझे तो अलग कर दीजिए बहुत दिन साथ रहकर पिस ली बस अब और नहीं पिसना चाहती
अलग …
किससे अलग होना चाहती हो बेटा तुम और तुम दोनों के साथ साथ तुम्हारी बेटी आराध्या को हम जान से ज्यादा प्यार करते है बेटा बड़े बुजुर्गो का होना उनकी छाया का होना बेहद जरूरी होता है में भी अपनी सास ससुर से कभी अलग नहीं हुई आखिर समय तक उनके साथ रही
मुझे नहीं पता ….
या तो मुझे अलग कीजिए वरना मैं खाना पीना सब छोड़ रही हूं अब अलग होकर ही कुछ खाऊंगी पियूंगी वरना यहां भूखे रहकर दम तोड दूंगी
आखिरकार मां बाबूजी ने सुधा की जिद पर चूल्हे अलग करने का फैसला ले लिया क्योंकि वह अपनी बहु भूखी-प्यासी नहीं देख सकते थे
इसलिए सुधा की जिद के आगे वह झुक गये मगर बिरजू ने सुधा से कहा…
तुम्हारी जिद़ अलग होने की है तो अलग रहो…
मगर मैं और मेरी बेटी तो मां के हाथ का ही खाना खाएंगे
सात -आठ
दिन तक घरों में दो दो चूल्हे जले बाकी सबका खाना तो मां ने ही बनाया लेकिन सुधा अपना बनाकर अलग खाती रही चूल्हे अलग होने की बात लोगों से छिपाने का प्रयास करती रही क्योंकि उन्हें लगता था कि देर सबेर सुधा मान जाएगी लेकिन वह टस से मस नही हुई अचानक एक रात सास को बुखार चढ़ गया और जो वो बिस्तर पर गयी तो उठ नहीं सकी और सबसे सदा के लिए अलग होकर चली गई
आँगन में सुधा की सांस का मृत शरीर पड़ा था सुधा बिरजू के गले से लगकर विलाप करने लगी तो बिरजू ने चीखकर उसे अपने से अलग करते हुए कहा…
अब किसलिए नाटक कर रही हो तुम ही तो चाहती थी अलग रहना…
कह रही थी मां बाबूजी के साथ नहीं रहूंगी देखो …
वो तो बिल्कुल ही अलग करके चली गई है रहो अब सदा अलग …
खुश होकर यहां महलों की रानी बन कर रह रही थी अब धक्के खाना घर घर
मैंने ऐसे अलग होने का तो कभी सोचा ही नहीं था
प्लीज़ कोई मेरी मां को ठीक करवा दो हम उनके बिना नहीं रह सकते है वो मुझे बेटी की तरह प्यार करती है वो मेरी मां है मां मैं उनका साथ रहना चाहती हूं उनके सच्चे प्यार का आभार प्रकट करना चाहतीं हूं अपनी गलती के लिए माफी मांगना चाहती हूं सुधा दौड़कर अपनी ननदों के गले लगकर रोने लगी थी उन्होंने ने भी उसे खुद से अलग कर दिया वो तड़पकर सांस की ओर बढ़ी ही थी की उसकी आँखें खुल गई उठकर देखा तो
वह पसीने पसीने थी …
बिस्तर पर लेटी हुई ….
मतलब …
मतलब में सपना देख रही थी उसने आंखें पर हाथ लगाया तो वह भीगी हुई थी
दीवार पर घड़ी देखी तो रात के दो बजे हुए थे वह उसी वक्त सांस के कमरे की ओर दौड़ी और उनके पैरों को पकड़कर रोने लगी मां ने चौंककर बिस्तर छोड़ा और देखा तो सुधा लगातार पैरों को पकड़े हुए अपनी ग़लती की क्षमा मांग रही थी मां उठी और सुधा को गले से लगाकर बोली …
पगली …
क्या हुआ …
सुधा ने उन्हें अपने सपने के बारे में सबकुछ बता दिया ये सुनकर वहां शोर सुनकर एकत्रित हुए घरवाले हंस पड़े
मां बाबूजी बोले …
बेटा …
सोचो सपने में भी अलग होने पर कितना दुख होता है
तो हकीकत में ….
बेटा ये परिवार इसलिए होते हैं क्योंकि साथ है तो हम हैं वरना मैं …
और मैं तो कभी किसी की भी नहीं रहती …
यहां तक कि लंकापति रावण की जिसमें में थी की मेरे पास सोने की नगरी है मगर बेटा वो अंहकार में अकेला रह गया था परिवार की अहमियत साथ होने से होती है
जी बाबूजी ….
आगे से ध्यान रखूंगी बस आप मुझे अपने से अलग कभी मत कीजिएगा अपनी छाया अपनी बेटी के सिर पर हमेशा बनाएं रखना मां बाबूजी ने सुधा को उठाकर सीने से लगा लिया वहीं बिरजू और आराध्या दोनों मुस्करा रहे थे…
एक सुंदर रचना…
#दीप..🙏🏻🙏🏻🙏🏻