
“असली सुंदरता….
सुनिए मोहनजी ….
वो में क्या सोच रही हूं क्यों ना हम भी राजूभाई के जैसे अपने घर के आगे एक चबूतरा बनवाएं सच कितना सुन्दर लगता है और उसपर गली की कुछ जगह भी अपने मकान की सुंदरता बढ़ाने में काम आएगी सुधा मुस्करा कर अपने पति मोहन से बोली जोकि अखबार पढ़ रहा था……………….
बिल्कुल भी नहीं ……………..
सुधा जो राजूभाई ने किया वो भी ग़लत है और जो तुम करने की सोच रही हो वो भी ग़लत है
गलत …………..
गलत कैसे कितना सुंदर लग रहा है उनके मकान की सुंदरता कितनी बढ़ गई है देखिए जरा जाकर सभी तारीफें कर रहे हैं
और आप … ……………
मुझे नहीं पता हमें भी ऐसे ही चबूतरा बनवाना है बस …………………..
सुधा सुंदरता का मतलब क्या होता है खैर छोड़ो तुम्हें सजावट की चीजें सुंदरता लगती है जो कुछ महीनों या कुछ दिनों की मेहमान भर होती है असली सुंदरता वो है जो किसी का जीवन को सुंदर बना दें…………….
में आपका मतलब नहीं समझी ………………
अभी दोनों इसी नौकझौक में उलझे हुए थे कि उनके यहां काम करने वाली रमा आ गई ……………
दीदी भैया उठिए … ………………….
झाड़ू लगाने दीजिए……………
अरे रमा आज इतनी जल्दी … ……………….
मोहन ने हैरानी से पूछा……………
भैया एक और काम पकड़े हैं तो वहां भी जाना है
एक और काम ……………………..
कितना काम करेगी तू … …………………..
पहले ही तेरी हालत खराब रहती है डाक्टर ने तुझे मना किया हुआ है ना तो फिर ………………………
भैया क्या करुं…………………..
काम नहीं करुंगी तो बच्चे कैसे पालूंगी ऊपर से इनकी दारु ………………….
तू मना कयुं नहीं करती उसे … …………………
कोई काम धंधा कयुं नहीं करता वो…………..
भैया कितना मना करो …………………
कहता है जब काम नहीं मिलता तो क्या करुं बस …
जिंदगी बर्बाद है हम जैसी औरतों की…………….
तू कल उसे यहां लेकर आ फिर बात करते हैं……….
अगले दिन रमा अपने पति मनोज को लेकर मोहन के घर आ गई ………………….
कयुं भाई तुम कुछ काम कयुं नहीं करते…………..
क्या करुं साहब नौकरी ढूंढने जाओ तो मिल नहीं रही आप ही बताइए……………………..
तो कुछ अपना काम कर लो …………………….
पैसे कहां से आएंगे…………………
कितने पैसे लगेंगे क्या काम कर सकते हो तुम
बहुत काम है साहब …
रिक्शा चला लेंगे सब्जी बेच लेगे…………..
सब्जी ……………
हां मंडी जाकर पहले भी लेकर आते थे पैसा बचाने के लिए मगर फिर नौकरी की थकावट के चलते बंद कर दिया………………..
हूह …………………..
सुधा इसे पांच हजार रुपए दे दो इतने में हो जाएगा
अरे साहब इतना नहीं बस दो हजार ही काफी है कर्ज उतारना भी होता है…………………
ठीक है दो हजार ही ले लो और मोहन ने सुधा के जरिए उसे दो हजार दिलवा दिए हालांकि सुधा ने बेमन से उसे पैसे दिए रमा और उसके पति के चलें जाने के बाद वह मोहन से लड भी पड़ी तो मोहन ने उसे शांत करवाया और मुस्कुरा कर कहा ……………………..
अरे यार इतने तो कभी रेस्टोरेंट में एकबार खानें पर खर्च कर देती हो किसी का काम बनता है तो क्या बुराई है
इस बात के पंद्रह दिन बाद रमा अपने पति मनोज के साथ सुबह सुबह मिठाई का डिब्बा लिए पहुंची और उसने सुधा की हथेली पर दो हजार वापस रखकर कहा ……………..
दीदी भैया सचमुच कमाल हो गया इन्होंने दिल लगाकर मेहनत की और देखिए आज आपके पैसे चुकाने के बाद भी अपनी रेहड़ी पर भरपूर सब्जी लगाने की हैसियत बना ली दीदी मेरी जिंदगी के साथ साथ मेरे बच्चों की जिंदगी भी सुधर गयी और ये सब आपकी मेहरबानी से हुआ कहते हुए दोनों सुधा और मोहन के आगे झुकने लगे ही थे कि मोहन ने उन्हें रोक दिया और कहा … …………………..
मेहरबानी नहीं तुम्हारी मेहनत और लगन तुमने अच्छे से मेहनत की और देखो आज तुम्हारी पत्नी और बच्चे सब खुश हैं भगवान तुम्हें हमेशा ऐसा ही खुश रखें ……………………
जाओ आज तुम्हारी छुट्टी रमा और मनोज दोनों चले गए उनके जाने के बाद मोहन ने सुधा से कहा ………..
देखा सुधा ये है असली सुंदरता जो किसी का जीवन सुंदर बना दे … ………………..
मोहन की बात सुनकर सुधा भी मुस्कुराते हुए उसके सीने से लगते हुए बोली ………………..
सचमुच ये ही है असली सुंदरता .. ………………
मोहन और सुधा दोनों मुस्करा रहे थे…………….
एक सुंदर रचना……………
#दीप…🙏🏻🙏🏻🙏🏻