तुम यहां मार्केट में क्या कर रहे हो अपने रात्रि चौकीदार दीनू को साइकिल पर अपनी बेटी को बिठाकर लेकर जाते हुए देखकर मोहनबाबू ने पूछा
साहब आप…
नमस्ते …
बिटिया नमस्ते करो
नमस्ते अंकलजी …
नमस्ते
यहां कैसे इस वक्त मेरा मतलब दिन में सोओगे नहीं तो रात में ड्युटी कैसे करोगे
साहब बिटिया कूलर कूलर करती हैं सोचा कोई कूलर लेकर दे दूंगा मगर यहां तो आग लगी है इतने मंहगे आधी सैलरी तो …
इसलिए इस बार नहीं अगली बार लेंगे
पापा ये तो आपने पिछली बार भी कहा था
अरे बिटिया तुमने सुना नहीं वह लोग कितना मंहगा बता रहे थे
कूलर …
तुम्हारे घर कूलर नहीं है क्या
नहीं साहब …
हम तो रात को ड्युटी करते हैं और इसकी मां भी पंखे में खुश रहती है हालांकि गर्मी तो उसे भी लगती है मगर वो समझती है ये अभी नासमझ है
इसलिए दो साल से जिद पर अड़ी हुई है लेकिन…
अच्छा साहब
रुको …
तुम अभी दुकान पर चलो और वहां से कूलर लेकर घर जाना
लेकिन साहब वो बहुत मंहगे दामों में बता रहे हैं
दाम की फ़िक्र तुम मत करो चलो … बिटिया जो पसंद हो वो लेना चलो मोहनबाबू दीनू और उसकी बेटी को लेकर दुकान पर पहुंचे और उन्हें एक बढ़िया कूलर लेकर दे दिया
साहब मगर ये बहुत मंहगा है
पैसे देने की जरूरत नहीं है तुम्हें
मतलब
देखो दीनू हम लोगों को तुम रातभर जागकर सुरक्षा देते हो तो क्या हम इतना भी तुम्हारे लिए नहीं कर सकते कूलर लेकर घर जाओ
दीनू कूलर लेकर चला गया
वहीं मोहनबाबू सोच रहे थे लोग यहां वहां हजारों रुपए चंदा देकर खुश होते हैं मगर असली खुशी तो इसमें है अपने यहां काम करने वालों को यदि हम खुश रखेंगे तो यकीनन वो हमारी खुशियों के लिए हमेशा तत्पर रहेंगे
सोचकर मुस्कुराते हुए मोहनबाबू अपने घर की और बढ़ गये
एक सुंदर रचना….
#दीप…🙏🙏🙏