
एक अलौकिक दृष्टान्त :—–
. एक समय राजा जनक वेष बदलकर अपने नगर में भ्रमण कर रहे थे ।
उसीक्रम में वे नगर के एक गली से जा रहे थे ठीक उसी समय उनके आगे आगे एक महिला बर्तन लेकर साफ करने के लिए नदी की ओर जा रही थी, वहीं रास्ते में एक मकान में खिड़की के ऊपर एक स्त्री और पुरुष का जोडा बैठा था जो आपस में कल्लोल कर रहे थे,
उनको देखकर बर्तन धोने जो स्त्री जा रही थी वह हंसी| और आगे बढ़ गई ।
|||| इस क्रम को जनकजी भी देखकर उसी स्त्री के पीछे पीछे नदी तक उस स्त्री के पास पहुंचकर हंसने का कारण पूंछा ।
स्त्री ने पहचान कर कहा महाराज मै यह रहस्य बता नहीं सकती क्योंकि मेरे पास समय नहीं है ।मै अभी थोडे समय मे मरने वाली हूं।
वही खिड़की अभी मेरे ऊपर गिरेगी और मैं मर जाऊँगी ।आप केप्रश्न का उत्तर छै महीने बाद आपके बगीचे में एक सारिका पक्षी मिलेगी वही उत्तर देगी उसी से पूंछ लेना ।
इतना कहकर वह स्त्री उसी रास्ते से पुनः वापस आयी।जब उस खिड़की के पास पहुंची तभी वह खिडकी ऊपर से उस स्त्री के ऊपर गिरीऔर मर गई।
|||| इस घटना से राजा जनक को बडी आत्मग्लानि हुई कि उस स्त्री को सब ज्ञान होते हुये भी घटना नहीं टलसकी, क्योंकि होनी होके ही रहती है ।
. राजा के अंदर उदासीनता हो गई वे उदासी जीवन जी रहे थे ।छै महीने बाद राजा अपने बगीचे गये जहाँ बहुत से पक्षी चह चहा रहे थे ।उन्होंने सारिका सारिका कहकर बुलाया ।
सारिका पक्षी राजा के पास पहुंची और कहा राजन् ! मै आपके प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकती क्योंकि मेरी मृत्यु समीप है अभी शिकारी का बाण मुझे लगने वाला है और मै मर जाऊँगी।
सो राजन मेदिनीपुर मे एक ब्राम्हण परिवार है उसके यहां एक लडकी पैदा होगी और वही सब कुछ ऐसा बता ही रही थी कि शिकारी का बाण कहीं से आया और सारिका के लग गया ।वह मर गई ।
इस घटना से राजा जनक का मन उद्विग्न हो गया ।।उदासीन भाव से रहने लगे ।
. एक वर्ष बाद राजा जनक उस नगर गये वहांपता लगाया उस ब्राह्मण परिवार में कन्या उसी दिन पैदा हुई थी ।पक्षी की भी बात सत्य हुई, लेकिन लडकी से मिलेंतो कैसे ममिलें ।
बारह दिन बाद बरही के कार्य क्रम में महराज जनक उस ब्राह्मण परिवार के घर जाकर उस उत्सव में शामिल हुए जब कार्य क्रम चल रहा था सभी व्यस्त थे नौकरानी कन्या की देख रेख कर कर रही थी तभी राजा जनक उसके पास गये|
और पानी मांगा ।नौकरानी पानी लेने चली गई तभी उस कन्या से पूंछा ।तब कन्या ने हंसकर कहा अभी नहीं बता सकती क्योंकि मेरी अवस्था बहुत कम है लोग क्या कहेंगे अत एव बारह वर्ष बाद आना मेरा विवाह होगा उसी समय बताऊंगी ।
तब तक नौकरानी आगई ।राजा जनक उदास भाव से वापस आये और समय व्यतीत करने लगे उनका मन किसी काम में नहीं लग रहा था उन्हीं घटनाओं को सोचते रहते थे ।
||||| समयबार। वर्ष बीत जाने पर राजा वहां गये तो उस लडकी का विवाह हो रहा था ।राजा भी उसमें शामिल होक लडकी से मिलने का प्रयास करने लगे ।
समय लगाकर लडकी ने स्वयं राजा से बताया कि मैं बता नहीं सकती क्योंकि मै अभी विधवा होने वाली हूँ अतः आप रुपनगर चले जाओवहां नगरसेठ है उसकी औरत सब बता देगी ।
ऐसा बता ही रही थी कि पता चला कि उस लड़की का पति मर गया ।जो लडकी की भी बात सत्य हुई ।
||||||| तब राजा रूपनगर जाकर सेठ का मकान ढूंढ रहे थे| उसी समय ऊपर मकान की छत से राजा जनक को देखकर सेठानी नौकरानी से बुलवाया ।
राजा जनक को प्रणाम करके स्वागत सत्कार किया और कहा कि राजन् मै आपका प्रश्न नहीं बता सकती क्योंकि मेरे पास समय
नही है ।
अतः आप आत्मापुर नामक नगर चले जाओ वहां के राजा के यहां कल एक लडका पैदा होगा जो शाम को मर जायेगा ।सभी लोग श्मशान में भूमि दाह कर के जब वापस आ जांय तब आप रात्रि में जाकर उसको निकाल कर स्नान कराकर चंदन आदि लगाकर सुंदर वस्त्र पहनाकर उसी से कहना कि मेरे प्रश्न का उत्तर बताओ।तब वह सब बता देगा।
. राजा उसी क्रम से वहा पहुंचा ।वहां जाकर देखा कि उस नगर के राजा के यहां लडका पैदा हुआ है बहुत उत्सव हो रहा था ।
थोडे ही समय के बाद लडका मर गया और उत्सव समाप्त हो गया ।शाम के समय श्मशान में उसका दाह संस्कार कर दिया गया ।
जब सब लौट आये तब राजा वहां जाकर लडके को निकालकर स्नान कराकर चंदन आदि लगाकर सुंदर वस्त्र पहनाकर उससे कहा मेरे प्रश्न का उत्तर बताओ ।
तभी मरा हुआ लड़का जीवित होकर बडी जोर से हंंसते हुए राजा को प्रणाम करते हुए बताया कि महाराज वह औरत इसलिए हंसी थी कि जो मकान की खिड़की में जो स्त्री पुरुष का जोडा बैठा कल्लोल कर रहा था वह पूर्व जन्म में मां और पुत्र थे और इस जन्म में पति पत्नी हैं ।
इसी बात को लेकर वह स्त्री हंसी थी ।
|||| तब राजा ने कहा मैंं पहले कौन था और यह भी बताओ कि इन सब को ज्ञान कैसे है जो सब कुछ जानते हैं ।
तब बालक ने कहा महाराज आप पूर्वजन्म में भी एक दानी राजा थे ।आपके राज्य में सूखा पड गया था सब कुछ नष्ट होगया था आपने सारी सम्पत्ति बांट दीथी।आप अपनी पत्नी बेटे बहू के साथ नगर छोड़कर दूसरे राज्य की ओर जा रहे थे तभी रास्ते में एक मंदिर मिला जो नदी के किनारे था ।
सभी लोगों ने स्नान किया आप भगवान शिव की पूजा किया पूजा केबाद आपको वहां चार थालियों मे भगवान की कृपा से चार थालियों मे भोजनमिला ।
आपने चारों थालिओं कावितरण कर दिया सभी को एक एक थाली दे दिया ।भगवान काभोग लगाकर खाने के लिए तत्पर हुए तभी दूर से एक भिखारी पुकार रहा था महाराज मै कई दिनों से भूंखा हूंभोजन मुझे दो नहीं तो मर जाऊंगा ।
||||| तब आपने बडे स्वागत के साथ अपनी थाली दे दीवह भिखारी तुरंत खा गया| और मांगने लगा तब आपने अपनी पत्नी से थाली देने को कहा ।
आपकी पत्नी अंदर ही क्रोधित होती हुई विना कुछ बोले थाली देदी।वह उसे भी खा गया उसने फिर मांगा तब आप बहू से कहा बहूने भी अंदर ही अंदर अनमने भाव से दे दिया ।
वह उसे भी खा गया तब आपके बेटने अर्थात् मैने अपनी थाली में खाने लगाऔर मैने कहा कि यदि हमदेदें तो मर जायेंगे लेकिन वह भिखारी मेरे साथ जबरदस्ती खाने लगा।साथ मे खाने से जल्दी जल्दी में एक दूसरे का जूंठा खा गये ।
| अंत में वह भिखारी नहीं साक्षसाक्षात् भगवान शिव ही थे जो दर्शनदिये और आपको पुनः राजा होने का वरदान दिया ।इसीकारण से आप पुनः राजा हुए होऔर हमारीमाता सेठानी के रूप में जन्म लिया है ।
जो औरतबर्तन धोने गई थीं वह आपकी बहू है वह बार बार विधवा हो रही है वहीं सारिका बनी वही लडकी के रूप में जन्म लिया| और विधवा हो गई।मैंभी जन्म लेताहहूं और मर जाता हूं ।
यही कर्म का भोग है।अपने किये हुये कर्मों का फल सभी प्राणी पाते हैं ।आपने शुद्ध भाव से भगवान को अर्पित कर दिया था उसी काप्रभाव है कि आप राजा हैंऔर हम सब कर्म भोग भोग रहे हैं।जो हम सबने विना भाव के ही जो दिया उसी का फल हैं कि हम सभी को ज्ञान रहता है ।अतः अब मै जाता हूं ।बालक की आत्मा चली गई ।
राजा ने उसका दाह संस्कार कर अपने नगर वापस आ गये ।
तभी से राजा जनक को इन सारी घटनाओं के कारण तथा पूर्व जन्म के संस्कारों से आत्मज्ञआत्मज्ञान होगया । उसी समय से त्याग एवं उदासीन भाव से जीवन व्यतीत कर रहे थे उन्हें किसी भी प्रकार की सांसारिकता में मोह नहीं था ।मुक्ति भाव से रहते थे ।