🌼 लक्ष्मी जी का निवास 🌼
लक्ष्मी जी का निवास चंचल होता है ये तो हम सभी को पता है। पर क्या उन्हें सदैव अपने निकट रखने का कोई उपाय है? आइये जानते है एक कहानी के माध्यम से की कैसे हम लक्ष्मी जी को सदैव अपने निकट रख सकते है।
एक गांव में सेठ रहता था। वह सेठ धन और ऐश्वर्य में प्रचुर था उसके यहां कोई कमी नहीं थी। इसके साथ साथ वह सेठ बहुत धार्मिक भी था, उसके यहां हमेशा पूजा पाठ होती रहती थी। एक दिन सेठ जब सो रहा था तो उसके स्वप्न में एक स्त्री उसके घर से बहार की ओर जा रही थी। जब सेठ ने उसे बहार जाते देखा तो उसने उससे पूछा की “हे स्त्री आप कौन हो ? यहां क्या कर रही हो ? स्त्री ने बताया कि वो उनके घर कि वैभव लक्ष्मी है। सेठ ने हाथ जोड़ कर उनको नमन किया और पूछा ” की आप मेरा घर छोड़ कर क्यों जा रही हो? तब लक्ष्मी जी ने जवाब दिया कि ” मेरा समय तुम्हारे घर में ख़त्म हो गया है इसलिए अब मुझे जाना पड़ेगा। परन्तु में तुमसे अत्ति प्रसन्न हूँ। तुमने हमेशा अपने निवास में संतो को आमंत्रित किया, गरीबो की सहायता एवं उन्हें भोजन कराया, धर्मार्थ कुए और तालाब बनवाये, गऊशाला बनवाई। तुम्हारे द्वारा लोक कल्याण के बहुत से कार्य हुए है जिनके कारण में तुम्हे एक वरदान देना चाहती हूँ। तुम मुझसे कुछ भी मांग सकते हो।
सेठ ऐसा सुन कर बहुत खुश हुआ। सेठ ने कहा कि मेरी दो बहुएँ हैं मै उनसे सलाह करके आपको कल बताऊँगा। आप कृपया कल फिर से पधारें।
सेठ अपनी बहुओं के पास सलाह लेने पहुंचा। बड़ी बहु ने सलाह दी कि पिताजी क्यों ना हम अपने घर के लिए बहुत सारा अन्न, सोना और चांदी मांग लेते है जिससे हमारे आने वाली पीढ़ी का भी जीवन सुरक्षित होगा। छोटी बहु एक धार्मिक कुटुंब से थी इसलिए उसने सलाह दी कि पैसो और रुपयों से हमारी आने वाली पीढ़ी का भविष्य ख़राब होगा उनमे आलस्य और अहंकार रहेगा। आपको कुछ मांगना है तो उनसे यह मांगो कि आप जाना चाहती हैं तो अवश्य जायें किन्तु हमें यह वरदान दें कि हमारे घर में सदैव सज्जनों कि सेवा-पूजा हो, हरि-कथा सदा हो और हमारे परिवार के सदस्यों में आपसी प्रेम बना रहे क्योंकि परिवार में प्रेम होगा तो मुश्किल के दिन भी बड़ी आसानी से कट जायेंगे।
अगले दिन जब रात में सेठ के स्वप्न में फिर से माता पधारीं तो उन्होंने पूछ कि ” क्या तुमने अपनी बहुओं से सलाह कर ली ?
सेठ ने अपनी छोटी बहु कि बात मान कर माता से सदैव होने वाली सज्जनों कि सेवा-पूजा, हरी कि कथा और परिवार के सदस्यों का आपसी प्रेम मांग लिया।
ऐसा सुनकर लक्ष्मीजी अचम्भित रह गयीं और बोलीं कि ‘‘यह तुमने क्या माँग लिया। जिस घर में हरि-कथा और संतो की सेवा होती हो तथा परिवार के सदस्यों में परस्पर प्रेम रहे वहाँ तो साक्षात् नारायण जी का निवास होता है। जहाँ नारायण रहते हैं वहाँ मैं तो उनके चरण दबाती हूँ और मैं चाहकर भी उस घर को छोडकर नहीं जा सकती। यह वरदान माँगकर तो तुमने मुझे यहाँ रहने के लिए विवश कर दिया है।