” अभी ना जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं, अभी-अभी तो आए हो , बहार बनकर के छाए हो , हवा ज़रा महक तो ले, नज़र ज़रा बहक तो ले..ये शाम ढ़ल तो ले ज़रा , ये दिल संभल तो ले ज़रा…”अपने इस पसंदीदा पुराने गाने को याशी ने अपने मोबाइल की रिंगटोन सेट किया हुआ था। उसे सुनकर उसकी तंद्रा टूटी। खाना बनाकर उसने करीने से मेज पर सजा दिया था। टीवी के सामने बैठे-बैठे कब उसकी आँख लग गई थी, उसे पता ही नहीं चला था।”मैं अभी बहुत व्यस्त हूँ, घर पहुँचते देर होजाएगी। तुम खाना खाकर सोजाना”, गौरव की बात सुन याशी ने गहरी उच्छ्वांस ले फोन रख दिया। पिछले एक माह से यह रोज का नियम सा होगया है। वह रोज ही गौरव की प्रतीक्षा करती रह जाती है। उसे अब यूँ महसूस होने लगा है कि गौरव उसे जानबूझकर टाल रहा है। अपने प्रति गौरव की उपेक्षा को नित नये रूप में उभरता पा रही है। अपनी झूलन आराम कुर्सी पर सिर टिका कर वह सामने दीवार पर लगे उन दोनों के फोटो को निहारने लगी। उस फोटो में दोनों एक पहाड़ी झरने के पास अपने दोस्तों के साथ पानी में अठखेलियाँ करते , एक-दूसरे को प्रेम से निहारते दृष्टिगोचर थे। याशी का मन उन सुमधुर यादों में गोते लगाने लगा। ” वह लक्ज़री वातानुकूलित बस अपनी रफ्तार पर थी। उस पहाड़ी रास्ते के घुमावदार चढावों से गुज़रते हुए बस कभी दाँये तो कभी बाएँ हिचकोले खा रही थी। रास्ता कच्चा तो नहीं था पर वह पक्की सड़क भी कोई बहुत अच्छी हालत में नहीं थी। हालिया थमा बरसात का मौसम उस सड़क पर अपने निशान छोड़ गया था। बस में बजते मधुर फिल्मी गाने, हरी-भरी वादियाँ और बस के हिचकोलों से आपस में टकराते नवयुवा कँधे दोनों के ह्रदयों में सिहरन और उमंग पैदा कर रहे थे। एक ही सीट पर बैठे याशी और गौरव हर झटके पर टकरा जाते तो एक दूसरे को देख मुस्कुरा पड़ते। याशी के मासूम – कोमल मन में मीठी हौलें सी उठ रही थीं । गौरव का व्यक्तित्व सहसा ही उसे अपनी ओर आकृष्ट करने लगा । वैसे तो उसके सहशिक्षा वाले हाईस्कूल में अनेक सहपाठी मित्र रहे थे और वे सब भी बस विद्यार्थी भावना से एक दूसरे से मेल-मिलाप और सहज दोस्ती का भाव आपस में रखते थे। रोज की कक्षाओं और ढेर सारी किताबों के बोझ के बीच उसका ध्यान कभी किसी नवयुवक सहपाठी की ओर आकृष्ट हुआ ही नहीं । एक पारंपरिक उच्च मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार की लड़की होने के नाते वह जब भी घर से बाहर निकलती तो मानो सारी भारतीय परंपराओं को , पारिवारिक संस्कारों को अपने साथ मन-मस्तिष्क- व्यव्हार में पिरोए चलती है। ऐसे ही याशी की बोर्ड की परीक्षा का साल कब दिन-रात की पढ़ाई में बीत गया उसे पता ही नहीं चला था। आज उनकी फेयरवेल के पहले सभी कक्षाओं की एक सम्मिलित पिकनिक आयोजित की गई थी तभी गौरव से उसका प्रथम परिचय हुआ। और हुआ ह्रदयों के मधुर प्रेमिल स्पंदन का प्रथम अनुभव। गौरव ने वाणिज्य विषय से बारहवीं की परीक्षा दी थी जबकि याशी ने गणित विषय लिया हुआ था। गौरव का सपना एम.बी.ए. की पढाई पूरी कर करके कैम्पस के द्वारा किसी अच्छी बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी करने का था। अपनी सहपाठियों से बातचीत में ही उसे पता चला कि दिखने में सुदर्शन, मनमोहक परंतु गंभीर व्यक्तित्व का गौरव एक सभ्रांत घराने का इकलौता लड़का है। बातचीत में भी गौरव का व्यवहार और शिष्टाचार उसके सुसभ्य होने का परिचय दे रहे थे।बस के पहाड़ी पर स्थित मंदिर तक पहुँचते – पहुँचते याशी गौरव से बहुत खुल गई थी। मंदिर में घूमकर सब पास के झरने को देखने चल दिये। अपनी सहेलियों के झुंड में झरने के पुल पर खड़ी याशी ने अपने को एकटक निहारती दो आँखों की चमक और प्रेमिल ऊष्मा बरबस महसूस की। कनखियों से उसने देखा कि सामने अपने दोस्तों के साथ खड़ा गौरव नजर बचाकर बीच-बीच में उसे अपनेपन से निहार रहा था। इसका अहसास पाते ही उसके दिल की धड़कने तेज हो गईं। कितना तो आकर्षण था उन गहरी काली आँखों में । उनकी लौ में याशी अपने तन-मन की सुधबुध खोती जा रही थी। यूँ लग रहा था कि वह अंदर ही अंदर पिघलती जा रही है। पिकनिक से लौटते में दोनों को दूर-दूर सीट मिली पर तब तक दोनों के मन एक-दूजे की ओर खिंचने लगे थे, किसी अदृश्य बंधन में बँधे हुए। शीघ्र ही फेयरवेल का दिन आ पहुँचा। बस अब उनका रोज-रोज विद्यालय आना बंद हो जाएगा और सब साथी अपनी-अपनी राह लगेंगे । जो घनिष्ठ मित्र हैं वो तो मिलते रहेंगे बाकी दोस्त बस किस्मत ने चाहा तो आगे भी मिलेंगे वरना सदा के लिये अलविदा। सभी नवयुवा ह्रदय एक तरफ जहाँ विद्यालय के प्रिय शिक्षकों और दोस्तों से बिछड़ने का सोचकर दुखी थे वहीं काॅलेज के आगामी नव जीवन का उत्साह भी सबके मन में हिलोरें ले रहा था। गौरव का पता और फोन नंबर उसने नोट कर लिया। फेयरवेल पार्टी में संग-संग थिरकते दोनों एक-दूसरे का साथ निभाने का वादा कर बैठे । बस्ते के बोझ, बोर्ड की परीक्षा …