
प्रणाम🙏
बालक राम ने कौशल्या की कोख से जन्म अवश्य लिया
किन्तु भगवान् राम की ‘जननी’ तो कैकयी ही थी!
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जब भी मैं राम वनवास प्रसंग पर विचार करता हूं,तो सिहर जाता हूं। अधिकान्श भक्त कैकई को खलनायिका के रूप में स्मरण करते है किन्तु भूल जाते है की यदि कैकई न होती तो राम को कोई भगवान् के रूप में याद न करता और राम भी अन्य राजाओ की तरह इतिहास के पन्नों में खो जाते। कैकई के त्याग के फलस्वरूप ही दशरथ नंदन राम, अपना दैवीय स्वरुप निभाने में सफल हो सके थे। यही कारण था की की मानस में भी भगवान् राम ने माता कैकई को ‘जननी जननी जननी’ तीन बार जननी कह कर समबोधित किया है।
कैकई की पीड़ा को बहुत कम लोग ही समझ पाते है क्योकि की वो ही एक ऐसी माँ है जिन्होंने मानवता के हितार्थ अपने ह्रदय को अपने शरीर से अलग कर जीने का निर्णय किया था जो एक साधरण स्त्री के लिए तो असंभव है।
बचपन से ही कैकयी जी का भगवान श्री राम पर सबसे ज्यादा स्नेह था, इतना तो वो अपने पुत्र भरत को भी नहीं चाहती थी जितना राम को प्रेम और दुलार करती थी।
कैकयी जिन्होंने बचपन से ही राम को सबसे ज्यादा प्रेम किया, क्या वे केवल एक दासी मंथरा के बहकाने पर इतने वर्षों के प्रेम को त्यागकर इतनी कठोर हो गई कि अपने प्रिय राम को १४ वर्ष का वनवास के लिए कहेगी? एक दिन में ही उनके प्रेम और स्नेह का गला घोट देंगी?
कैकेयी के पात्र को हमने जैसा समझा है वे वैसी नहीं है,बात उस समय की है जब एक दिन कैकई प्रभु श्री राम को गोद में बैठाकर,सोने के पात्र में दूध भात खिला रही थी,और भगवान भी कौशल्या से ज्यादा प्रेम कैकयी जी से करते थे, दूध भात खाते-खाते,प्रभु बोले माँ ! आप मुझसे बहुत प्रेम करती हो ?
कैकयी जी बोली – हाँ ! सबसे ज्यादा ,भरत से भी ज्यादा,मै तो सदा ये सोचती हूँ तूने कौशल्या की कोख से जन्म क्यों लिया, मेरी कोख से क्यों नहीं लिया . प्रभु बोले – फिर माँ मै जो चाहू मेरी इच्छा पूरी करोगी ?
कैकयी जी – हाँ ! तू कहे तो मै अपने प्राण भी अपने लाल पर न्योछावर कर दू .तुझे कोई शंका है. प्रभु बोले – माँ ! प्राण नही चाहिये,बस तू सोच ले,जो मांगूगा देना पड़ेगा. कैकयी जी – हाँ तू बोल तो सही !
प्रभु बोले – माँ ! मैंने इस धरा पर जिस कार्य के लिए अवतार लिया है,उसका अब समय आ गया है.और मुझे आपकी सहायता की जरुरत है,यदि पिता जी मेरा राज्य अभिषेक कर देगे तो मै अयोध्या में बधकर रह जाऊँगा,और अवतार कार्य भी पूरा नहीं हो पायेगा.
कैकयी बोली – ठीक है तुम जैसा कहोगे मै वैसा ही करूँगी. प्रभु बोले – माँ ! त्याग सबसे बड़ा आपका ही रहेगा,परन्तु आपका त्याग इतिहास में कही नहीं लिखा जायेगा, लोग बुरे भाव में ही आपकी चर्चा करेगे. यहाँ तक कि कोई माँ अपनी पुत्री का नाम कैकयी नहीं रखेगी.आप का सुहाग भी उजड जायेगा,भरत कभी आपको माँ नहीं कहेगा.
कैकयी जी ने कहा – राम ! रावण रोज हजारों स्त्रियो का सुहाग उजाड रहा है. इस पर यदि मेरे सुहाग के उजड जाने पर उन हजारों स्त्रियों का सुहाग बचता है तो मै ये भी करने को तैयार हूँ.जिससे तुम प्रसन्न हो वही कार्य मै करुँगी.मुझे क्या करना होगा?
प्रभु बोले – पिता जी के पास आपके दो वचन है,आप पहला वर भरत को राज्याभिषेक और दूसरा मुझे १४ वर्ष का वनवास मांगना, प्रभु बोले – माँ ! आप धन्य है. आप वास्तव में मुझसे सच्चा प्रेम करती हो,इसीलिए ये बात मैंने माता कौसल्या से भी नहीं की क्योकि मै जानता था,आप ही ये महान कार्य कर सकती है. माता कैकयी यथार्थ जानती थी,जो नारी युद्ध भूमि में दशरथ के प्राण बचाने के लिये अपना हाथ रथ के धुरे में लगा सकती है रथ संचालन की कला में दक्ष है, वह राजा दशरथ के मरने का कारण नहीं हो सकती.
वे चाहती थी मेरे राम का पावन यश चौदहों भुवनों में फैल जाये,और यह विना तप के, विना रावण वध के सम्भव न था अत: मेरे राम केवल अयोध्या के ही सम्राट् न रह जाये विश्व के समस्त प्राणियों हृहयों के सम्राट बनें. इस तरह कैकयी त्याग ही सबसे बड़ा है,जिसे प्रभु श्री राम के अलावा कोई नहीं जानता,जब दशरथ जी प्राण त्यागने लगे तो कैकयी को बुरा भला कहा और कैकयी को त्याग दिया,फिर भी कैकयी ने भगवान राम को दिया वचन निभाया।
राज्य तिलक से एक दिवस पूर्व तक आनन्द से आपूरित कैकेयी अचानक राष्ट्रहित के चिन्तन में डूबती हैं और मंथरा से एक लम्बी मंत्रणा, ह्रदय एवं मस्तिश्क के परस्पर द्वन्द के पश्चात कैकेयी इस निर्णय को लेने में दृड़ प्रतिज्ञ हो जाती हैं कि राष्ट्र के लिए व्यक्तिगत जीवन में कलंक लेना कहीं अधिक श्रेयस्कर है।
एक माँ ने व्यक्तिगत कलंक लेते हुए अपने बेटों को युगों युगान्तर तक के लिए भगवान की श्रेणी में ला दिया , हालांकि आज भी माता कैकई को गलत समझा जाता है। इस चौपाई से ही अनुमान लगाया जा सकता है की भगवान् राम के मन में कैकई के प्रति क्या भाव रहा होगा :
सुनु जननी सोइ सुत बडभागी।
जो पितु मातु बचन अनुरागी।।
तनय मातु पितु तोषनि हारा।
दुर्लभ जननि सकल संसारा।।
साभार…
जय श्री हरि जय श्री राम🙏
हर हर महादेव🚩