
*राय उसी से लेनी चाहिए जो अपना लक्ष्य प्राप्त कर चुका हो-राजन जी*
*भाग्य के फलीभूत होने के लिए कर्म करना पड़ता है*
*नौ दिवसीय राम कथा के सातवें दिन राम श्रृंगवेरपुर से तीर्थ राज प्रयाग पहुचने के आगे की कथा संपन्न*
अमेठी(शीतला मिश्रा)। । राय उसी व्यक्ति की लेनी चाहिए जो जो जीवन में अपने लक्ष्य को प्राप्त कर चुका हो। यह बात मंगलवार को अमेठी जिला मुख्यालय के गौरीगंज में विधायक राकेश सिंह के व्यवस्थापन में उनके निवास मंगलम परिसर में आयोजित नौ दिवसीय श्री राम कथा के सप्तम दिन श्रोताओं को राम कथा मर्मज्ञ पूज्य राजन जी महाराज ने राम वन गमन में श्रृंगवेरपुर के आगे तीर्थ राज प्रयाग स्थित भरद्वाज मुनि के आश्रम से आगे बढ़ने के प्रसंग में बताई। उन्होंने कहा कि राम के साथ निषादराज गुह मार्ग बताने व जंगल में प्रवास के लिए कुटिया बनाने के लिए मौजूद थे लेकिन आश्रम से निकलने के पूर्व आगे के मार्ग की जानकारी उन्होंने भरद्वाज से ही पूछा। क्योंकि गुह अपने राज काज में व्यस्त अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में लगे थे और मुनि भरद्वाज लक्ष्य प्राप्त कर भगवान में लीन थे। मुनि भरद्वाज ने अपने चार शिष्यों को साथ भेजा और अपने लिए एक वरदान “अब करि कृपा देव वर येहू, निज पद सिर सहज सनेहू” अर्थात अपने चरण में स्थान देने का मांगा । आगे राजन जी ने प्रयाग के महत्व का वर्णन करते हुए बताया कि प्रयाग सभी तीर्थों के राजा हैं। तीर्थ राज प्रयाग के वर्णन में प्रयाग राज के सचिव-सत्य, पत्नी-श्रद्धा, मित्र माधव जी, कोष-धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष, प्रयाग का राज्य- पुण्य क्षेत्र प्रयाग कुम्भ क्षेत्र, सिंहासन-संगम, छत्र- अक्षय वट, चंवर- गंगा व यमुना की लहरों के सजीव चित्रण के साथ बताया कि कुम्भ का जो स्वरूप प्रयाग में दिखता है वह पूरे देश में अन्य तीन स्थानों पर नहीं। उन्होंने मित्र की परिभाषा बताते हुए कहा कि जिसके चित्त की स्थिति सांप के चाल जैसी हो ऐसे कुमित्र से दूर रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि भाग्य के फलीभूत होने के लिए कर्म करने की आवश्यकता होती है। “क्या भरोसा है इस जिंदगी का, साथ देती नहीं है किसी का” भजन के साथ ही भक्ति कर्म में लीन होने का मार्ग बताया। राम जी के प्रयाग से आगे बढ़ चित्रकूट में यमुना जी के तट पर “तेहि अवसर एक तापस आवा के मर्म को बताते हुए कहा कि ये और कोई नहीं गोस्वामी तुलसीदास जी थे। चित्रकूट में बाल्मीकि जी से भेंट और उनके द्वारा भगवान के असली स्वरूप को पहचानने के प्रकरण के चित्रण में बाल्मीकि जी ने कहा कि संसार में ऐसा कोई साधन नहीं है जिससे हम भगवान को जान सकें। “सोई जानै जेहिं देहु जनाई, जानत तुमहिं तुमई होई जाई” । भगवान ने कहा जो मेरे अनुशासन को मानता है वही हमें प्रिय होता है। उन्होंने जीवन के सूत्र को बताते हुए कहा कि आदमी जब ठगा जाता है तो कहता है कि प्रभु देख रहे हैं और जब खुद किसी को ठगता है तो यह भूल जाता है कि ईश्वर उसे भी देख रहा है। इस संबंध में “नजरिया घूमेला हो नज़रिया घूमेला, हरदम भक्तन उपरा प्रभु जी के नजरिया घूमेला” भजन से लोगों में भक्ति भाव भरने का कार्य किया। आज की कथा में राम जी के बन में पहुंचने, दशरथ महराज के निर्वाण, भरत जी के ननिहाल से आगमन, पित्र क्रिया के उपरांत राम जी को मनाने वन जाने के लिए भरत जी के प्रस्थान करने की तैयारियों पर विस्तृत वर्णन के साथ विश्राम दिया। उन्होंने बताया कि अष्टम दिवस शुक्रवार को भरत चरित्र और उसके आगे की कथा होगी। राजन जी के साथ उनके वाद्य एवं गायक कलाकार विनय तिवारी, नरेश, उत्तम, श्रीनिवास, विकास, विनायक अचारी व दाग निदाग ने गीत, भजनों से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। आज की कथा में सगरा आश्रम पीठाधीश्वर स्वामी अभय चैतन्य ब्रह्मचारी मौनी जी, टीकर माफी आश्रम के महंथ दिनेशानंद जी और टीकर माफी आश्रम के स्वामी कृष्णा नन्द जी का आशीर्वाद भी श्रोताओं को मिला। कथा में अमेठी-सुल्तानपुर के एम एल सी शैलेन्द्र प्रताप सिंह, विधायक तिलोई मयंकेश्वर सिंह, पूर्व विधायक अभय सिंह, पूर्व विधायक तेजभान सिंह, कुँवर मृगांकेश्वर सिंह, ब्लॉक प्रमुख मुन्ना सिंह, ननके सिंह, गौरव सिंह, संजय सिंह, जगदंबा प्रसाद त्रिपाठी मनीषी जी सहित हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।