
रविवार को हम सूर्यदेव की पूजा करते हैं, पर क्या आप सूर्यदेव के परिवार को जानते हैं। चलिए मिलते हैं सूर्यदेव की पत्नियों और संतानों से।
सूर्य के विशाल परिवार में है महत्वपूर्ण रहस्य।
सूर्यदेव का परिवार काफी बड़ा है। उनकी संज्ञा और छाया नाम की दो पत्नियां और दस संतानें हैं। जिसमें से यमराज और
शनिदेव जैसे पुत्र और यमुना जैसी बेटियां शामिल हैं। मनु स्मृति के रचयिता वैवस्वत मनु भी सूर्यपुत्र ही हैं।
सूर्यदेव की पत्नियां
सूर्यदेव की दो पत्नियां संज्ञा और छाया हैं। संज्ञा सूर्य का तेज ना सह पाने के कारण अपनी छाया को उनकी पत्नी के रूप में स्थापित करके तप करने चली गई थीं। लंबे समय तक छाया को ही अपनी प्रथम पत्नी समझ कर सूर्यदेव उनके साथ रहते
रहे। ये राज बहुत बाद में खुला कि वे संज्ञा नहीं छाया है। संज्ञा से सूर्य को जुड़वा अश्विनी कुमारों के रूप में दो बेटों सहित छह संतानें हुईं जबकि छाया से उनकी चार संतानें थीं।
सूर्यदेव के श्वसुर विश्वकर्मा
देव शिल्पी विश्वकर्मा सूर्य पत्नी संज्ञा के पिता थे और इस नाते उनके श्वसुर हुए। उन्होंने ही संज्ञा के तप करने जाने की जानकारी सूर्यदेव को दी थी।
सूर्य पुत्र यम
धर्मराज या यमराज सूर्यदेव के सबसे बड़े पुत्र और संज्ञा की प्रथम संतान हैं।
यमी
यमी यानि यमुना नदी सूर्य की दूसरी संतान और ज्येष्ठ पुत्री हैं
जो अपनी माता संज्ञा को सूर्यदेव से मिले आशीर्वाद चलते पृथ्वी पर नदी के रूप में प्रसिद्ध हुईं।
वैवस्वत मनु
सूर्य और संध्या के तीसरी संतान है वैवस्वत मनु वर्तमान
( सातवें ) मन्वन्तर के अधिपति हैं। यानि जो प्रलय के बाद
संसार के पुनर्निर्माण करने वाले प्रथम पुरुष बने और जिन्होंने
मनु स्मृति की रचना की।
शनि देव
सूर्यदेव और छाया की प्रथम संतान है शनिदेव जिन्हें कर्मफल दाता और न्यायधिकारी भी कहा जाता है। अपने जन्म से शनि
अपने पिता से शत्रु भाव रखते थे। भगवान शंकर के वरदान से वे नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ स्थान पर नियुक्त हुए और मानव तो क्या देवता भी उनके नाम से भयभीत रहते हैं।
तप्ति
छाया और सूर्य की कन्या तप्ति का विवाह अत्यंत धर्मात्मा सोमवंशी राजा संवरण के साथ हुआ। कुरुवंश के स्थापक
राजर्षि कुरु इन दोनों की ही संतान थे, जिनसे कौरवों की उत्पत्ति हुई।
विष्टि या भद्रा
सूर्य और छाया की पुत्री विष्टि भद्रा नाम से नक्षत्र लोक में
प्रविष्ट हुई। भद्रा काले वर्ण, लंबे केश, बड़े – बड़े दांत तथा भयंकर रूप वाली कन्या है। भद्रा गधे के मुख और लंबे पूछ
और तीन पैरयुक्त उत्पन्न हुई। शनि की तरह ही इनका स्वभाव
भी कड़क बताया गया है। इनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें काल गणना या पंचांग के प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया है।
सावर्णि मनु
सूर्य और छाया की चौथी संतान हैं सावर्णि मनु। वैवस्वत मनु की तरह वे मन्वन्तर के पश्चात अगले यानि आठवें मन्वन्तर के
अधिपति होंगे।
अश्विनी कुमार
संज्ञा के बारे में जानकारी मिलने के बाद अपना तेज कम करके
सूर्य घोड़ा बनकर उनके पास गए। संज्ञा उस समय अश्विनी यानि घोड़ी के रूप में थी। दोनों के संयोग से जुड़वा अश्विनी कुमारों की उत्पत्ति हुई जो देवताओं के वैद्य हैं। कहते हैं कि दधीचि से मधुविद्या सीखने के लिये उनके धड़ पर घोड़े का सिर रख दिया गया था, और तब उनसे मधुविद्या सीखी थी। अत्यंत रूपवान माने जाने अश्विनी कुमार नासत्य और दस्त्र के नाम से
भी प्रसिद्ध हुए।
रेवंत
सूर्यदेव की सबसे छोटी और संज्ञा की छठी संतान हैं रेवंत जो उनके पुनर्मिनल के बाद जन्मी थी। रेवंत निरंतर भगवान सूर्य
की सेवा में रहते हैं।