
🙏🌺करवाचौथ🌺🙏
इस बार पांच साल बाद बन रहा शुभ योग,
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कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी 24 अक्टूबर 2021 दिन रविवार को पड़ रही है. खास बात ये है कि पांच साल बाद फिर इस करवा चौथ पर शुभ योग बन रहा है. करवा चौथ पर इस बार रोहिणी नक्षत्र में पूजन होगा, तो वहीं रविवार का दिन होने की वजह से सूर्य देव का भी व्रती महिलाओं को आशीर्वाद प्राप्त होगा.
करवा चौथ के दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. रात में चांद देखने के बाद व्रत खोला जाता है. कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को ये व्रत रखा जाता है.
. करवा चौथ पर इस बार रोहिणी नक्षत्र में पूजन होगा, तो वहीं रविवार का दिन होने की वजह से सूर्य देव का भी व्रती महिलाओं को आशीर्वाद प्राप्त होगा.
. कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि इस साल 24 अक्टूबर 2021, रविवार सुबह 3 बजकर 1 मिनट पर शुरू होगी, जो अगले दिन 25 अक्टूबर को सुबह 5 बजकर 43 मिनट तक रहेगी. इस दिन चांद निकलने का समय 8 बजकर 11 मिनट पर है. पूजन के लिए शुभ मुहूर्त 24 अक्टूबर 2021 को शाम 06:55 से लेकर 08:51 तक रहेगा.
करवा चौथ व्रत की पूजा विधि
सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें और गणेश जी की पूजा करके निर्जला व्रत का संकल्प लें. इसके बाद शाम तक न तो कुछ खाना और नाहीं पीना है. पूजा के लिए शाम के समय एक मिट्टी की वेदी पर सभी देवताओं की स्थापना कर इसमें करवा रखें. एक थाली में धूप, दीप, चन्दन, रोली, सिन्दूर रखें और घी का दीपक जलाएं. पूजा चांद निकलने के एक घंटे पहले शुरु कर दें. इसके बाद चांद के दर्शन कर व्रत खोलें.
जानिए करवा चौथ इतिहास
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करवा चौथ व्रत का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व होता है. करवाचौथ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है. ‘करवा’ यानी ‘मिट्टी का बरतन’ और ‘चौथ’ यानि ‘चतुर्थी’. इस त्योहार पर मिट्टी के बरतन यानी करवे का विशेष महत्व माना गया है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए व्रत रखती हैं. यह व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए सबसे अहम व्रत माना जाता है. करवा चौथ के दिन महिलाएं बड़े ही श्रद्धा भाव से शिव-पार्वती की पूजा करती हैं. इस दिन व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणेश के साथ चांद की भी पूजा की जाती है. करवा चौथ का त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है।
करवा चौथ का इतिहास 🙏👍💯🙏👍💯
बहुत-सी प्राचीन कथाओं के अनुसार करवा चौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है. माना जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी. ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की. ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए. ब्रह्मदेव ने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी.
ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया. ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानी देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की. उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई. इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया. उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था. माना जाता है कि इसी दिन से करवा चौथ के व्रत की परंपरा शुरू हुई.
करवा चौथ व्रत के नियम
यह व्रत सूर्योदय होने से पहले शुरू होता है और चांद निकलने तक रखा जाता है. चांद के दर्शन के बाद ही व्रत को खोलने का नियम है. शाम के समय चंद्रोदय से लगभग एक घंटा पहले सम्पूर्ण शिव-परिवार (शिव जी, पार्वती जी, नंदी जी, गणेश जी और कार्तिकेय जी) की पूजा की जाती है. पूजन के समय व्रती को पूर्व की ओर मुख करके बैठना चाहिए. इस दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद पति को छलनी में दीपक रख कर देखा जाता है. इसके बाद पति जल पिलाकर पत्नी का व्रत तोड़ते हैं.
करवा चौथ पूजा का मंत्र
‘ॐ शिवायै नमः’ से पार्वती का, ‘ॐ नमः शिवाय’ से शिव का, ‘ॐ षण्मुखाय नमः’ से स्वामी कार्तिकेय का, ‘ॐ गणेशाय नमः’ से गणेश का तथा ‘ॐ सोमाय नमः’ से चंद्रमा का पूजन करें।. करवों में लड्डू का नैवेद्य रखकर उसे भगवान को अर्पित करें. एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित कर पूजन समापन करें. करवा चौथ व्रत की कथा पढ़ें और सुनें