
गला बैठ जाना, सर्दी खाँसी जुखाम के लिए अंग्रेज़ी दवाइयाँ नहीं लें।
कण्ठ सुधारक वटि लें।
दो गोलियाँ दिन में ३ से ४ बार मुँह में रख कर चूसते रहें। मुझे अवश्य बताएँ कि परिणाम क्या रहा। मूल्य १० ग्राम के ७० रुपये ।
गैस के कारण पेट दर्द हो तो २-२ गोली वैद्यनाथ की *गन्धक राजबटी* दिन में २ बार लें।
लोग आजकल विषाणुजनित ज्वर की चपेट में हैं। आप सभी से आग्रह करती हूँ, ज्वर (बुखार) हो तो *महासुदर्शन घनवटी* बच्चे १-१ गोली बड़े २-२ गोली सुबह शाम गर्म पानी से लें, यह प्राकृतिक रूप से शरीर का तापमान कम करती है और पसीना आकर ज्वर चला जाता है।
बिच्छू का काटना –
(क) बिच्छूने जहाँ काटा हो, वहाँ दूधी घास रगड़ देने से फौरन आराम हो जाता है।
(ख) मूलीको पीसकर बिच्छूके काटे स्थानपर लगाने से विष दूर हो जाता है।
(ग) सिन्धुवार के कोंपल को पीसकर बिच्छू के डंक मारने वाले स्थानपर लगाने से आराम हो जाता है।
(२०) गठिया-दर्द – सिन्धुवार (सैंधा कचरी) के पत्ते एक किलो पानी में खूब गरम कर दे। उस गरम जल से धोने से गठिया, कनकनी गाँठका दर्द तथा सूजन अच्छा हो जाता है।
(२१) बुखार – सिन्धुवार की जड़ हाथ में बाँधने से बुखार उतर जाता है।
(२२) त्रिफला के उपयोग – ५० ग्राम त्रिफला (आँवला, हरें, बहेड़ा) का चूर्ण, शुद्ध शहद और तिलके तेलमें मिलाकर चाटने से खाँसी, दमा, बुखार, धातुक्षीणता, पेट के समस्त रोग जड़ से समाप्त हो जाते हैं। ऋषियों ने यहाँ तक कहा है कि इसे सुबह शाम सेवन करने से शरीर का कायापलट हो जाता है। सूजाक, बवासीर में पूरा आराम मिलता है। स्त्रियों का प्रदररोग, प्रसूत तथा मासिककी गड़बड़ी जड़ से चली जाती है।
(२३) खाँसी-सर्दी – बाक्स (अड़ूसा) का रस एक तोला, शहद एक तोला के साथ सेवन करे तो यह खाँसी, सर्दी, पुराने बुखार आदि को जड़ से समाप्त कर देता है।
(२४) आँख की फूली, धुंधलापन – गदहपूरना का रस आँख में डालने से आँख की फूली, माणी, धुंधलापन आदि रोग दूर हो जाते हैं।
(२५) गर्भ न गिरना – अशोक के बीज का एक दाना लेकर सिलपर घिसकर बछड़े वाली गाय के दूध में मिलाकर स्त्री को देने से गर्भपात रुक जाता है, स्त्री पुत्रवती हो जाती है।
(२६) स्त्री का गर्भ न टिकता हो – आम के वृक्षका अतरछाल, गाय के घी में पुराना गुड़ तथा एक फूल लवंग गर्भवती स्त्री को खिला देने से गर्भधारण हो जायगा।
(२७) दर्द – सहिजन के जड़ की छाल को बिना पानी के पीसकर दर्द में लगाने से शीघ्र आराम हो जाता है।
(२८) फाइलेरिया – फाइलेरिया के रोगी को जब दर्द हो, ज्यादे सूजन हो जाय तो सहिजन और सिन्धुवार (सैंधाकचरी) – के पत्तों को किसी कच्चे मिट्टी के बर्तन में गरम करे, जब गरम हो जायँ तो जहाँ पर फाइलेरिया हो वहाँ बाँधने से तुरंत आराम हो जाता है।
(29) टूटी हुई हड्डी को जोड़ना, गुप्त चोट में आराम –
(क) नागफनी का एक पूरा टुकड़ा आग में डाल दे, भुन जाने पर काँटे छील डाले और बीच में फाड़कर आँबाहलदी, खारी, सेंधा नमक का चूर्ण कपड़छान कर उसे दे और चोटपर बाँध दे। २४ घंटे के बाद खोले, उसी तरह फिर तैयार कर बाँधे। सात दिन में टूटी हड्डी जुड़ जायगी।
(ख) हड़जोड़ जो पेड़ों पर पलता है बिना जड़के, कहीं कहीं इसे चौराहाजी कहते हैं। अगर महुआ के वृक्षपर का मिल जाय तो उत्तम, न मिले तो कहीं किसी वृक्षपर हो, उसे पीसकर शुद्ध घीमें भून ले और आँबाहलदी, खारी, सेंधा नमकका चूर्ण मिलाकर बाँधने तथा हड़जोड़ की पकौड़ी (भजिये) सेवन करने से टूटी हड्डी तथा गुप्त चोट ठीक होती है।
(३०) दन्त-रोग तथा दर्द –
(क) मदार (आक) या थूहर के दूध को रुई में भिगोकर दाँतों के घावपर रखने से दाँतों का दर्द दूर हो जाता है और घाव भी भर जाता है।
(ख) गुलाइची वृक्ष का या छीतवन का दूध रुई में रखकर दाँतों पर रखने से दाँत का दर्द चला जाता है।
(३१) दन्तमंजन – बादाम के छिलके तथा नीम की डाल का कोयला बना ले । डम्बर का बीज, बबूल की छाल, काली मिर्च, सफेद इलायची, चूल्हेकी मिट्टी तथा लाहोरी नमक-इन्हें समान भाग लेकर कूट-छानकर नित्य मंजन करे। यह पायरिया तथा हिलते दाँतों को मजबूत तथा सांफ रखता है।
(३२) पायरिया एवं दाँत हिलना – तूतिया और फिटकरी एक किलो पानी में पकाये। जब एक भाग जल जाय और तीन भाग बच जाय तो शीशी में रख ले, रोज थोड़ा गरम करके कुल्ला करे तो रोग ठीक हो जायगा।
(३३) कान का दर्द तथा बहना – नीम की मुलायम पत्ती का रस तथा रस के बराबर शुद्ध शहद मिलाकर कान में डालने से बहता कान, कान का दर्द तथा बहरापन दूर हो जाता है। नीम की पत्ती का रस हथेली द्वारा निकालना चाहिये ।
(३४) खाज, गजकर्ण, अपरस, खुजली का मरहम – अकवन का दूध, नीला थूथा का दूध, गन्धक, फिटकरी, सोहागा, नौसादर- प्रत्येक वस्तुको ११ ग्राम ६६४ मिलीग्राम लेकर लोहे के बर्तनमें खरल कर खूब बारीक मरहम-जैसा बना ले। घाव को नीम के पत्ते युक्त गरम जल से अच्छी तरह साफ कर ले। जब घाव का पानी सूख जाय तो मरहम को नारियल के तेल में मिलाकर लगाये।
(३५) श्वेत कुष्ठ (सफेद कोढ़) – तिल के तेल में नौसादर मिलाकर लगाने से सफेद कोढ़ के दाग मिट जाते हैं।
(३६) तेज ज्वर –
(क) काली मिट्टी की पट्टी पेट पर लगाने से आधे घंटे में तेज ज्वर शांत हो जाता है।
(ख) तेज ज्वर में ठंडे पानी से सिर धोने या ठंडे जलका कपड़ा भिगोकर सिरपर रखने से ज्वर कम हो जाता है।