
सम्पादकीय
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वृद्धावस्था में पहुंचे बहुत सारे लोगों को समाज में अपनों के हाथोंउपेक्षा का शिकार
आमतौर पर लगभग सभी समाजों में बुजुर्गों के जीवन को आसान बनाने और उनका खयाल रखने के लिए सरकारों को विशेष योजनाएं बनानी पड़ती हैं,
परिवारों में अलग से उपाय किए जाते हैं।
लेकिन यह भी सच है कि वृद्धावस्था में पहुंचे बहुत सारे लोगों को कई बार अपनों के हाथों भी उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है।
ऐसे में उस स्थिति का अंदाजा ही लगाया जा सकता है,
जिसमें बहुस्तरीय मुश्किलों से जूझते बुजुर्ग स्मृतिलोप या मतिभ्रम का भी शिकार हो जाएं।
सामान्य वृद्धावस्था को भी बोझ की तरह देखने वाले परिवार इस समस्या से घिर जाने वाले अपने ही बुजुर्ग सदस्य के प्रति अक्सर पर्याप्त संवेदनशीलता नहीं बरत पाते।
जबकि परिवार या व्यक्ति का सकारात्मक और संवेदनशील रवैया स्मृतिलोप की मुश्किल से घिरे किसी वृद्ध व्यक्ति के भीतर जीवन का संचार कर दे सकता है।
मगर व्यवहार के स्तर पर संवेदनशीलता या फिर प्रशिक्षण के अभाव की व्यापक सामाजिक समस्या की वजह से बुजुर्गों का जीवन अपने आखिरी दौर में और ज्यादा मुश्किल हो जाता है।
स्मृतिलोप जैसी समस्या के शिकार हो जाएं,
तो व्यापक पैमाने पर उनका सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन किस तरह की त्रासदी का शिकार होगा,
इसका सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है।
हालांकि भारत में पहली बार हुए इस तरह के अध्ययन के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता का का इस्तेमाल किया गया।
यों आधुनिक तकनीकी की क्षमता में लगातार बढ़ोतरी के दौर में कृत्रिम मेधा या बुद्धिमत्ता के आकलन को विश्वसनीय माना जाता है,
मगर यह स्पष्ट होना अभी बाकी है कि क्या इसके जरिए मनुष्य के विवेक और बौद्धिकता के मुकाबले ज्यादा विश्लेषणपरक नतीजे हासिल किए जा सकते हैं!दरअसल, स्मृतिलोप से ग्रस्त बुजुर्गों के भीतर किसी चीज या बात के बारे में भूलने की समस्या पैदा हो जाती है।
इससे गंभीर रूप से परेशान वृद्ध के लिए सामने खड़े व्यक्ति को पहचान पाना भी मुश्किल हो जाता है।
लेकिन जिन परिवारों में बुजुर्गों के प्रति पर्याप्त सम्मान, प्यार और संवेदनशीलता बरत पाने वाले लोग होते हैं,
उनमें ज्यादा उम्र की अशक्तता के बावजूद किसी वृद्ध व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक सेहत बेहतर रहती है।
कई बार देखभाल और संवेदना के अभाव से उपजी निराशा और पीड़ा बुजुर्गों को असमय ही कई मनोवैज्ञानिक समस्याओं के दुश्चक्र में डाल देती है।फिर यह पारंपरिक धारणा भी समस्या बनती है कि बढ़ती उम्र के साथ व्यक्ति को ज्यादा आराम करना चाहिए।
निश्चित रूप से शरीर की सीमा और क्षमता का ध्यान रखना एक अनिवार्य पहलू है।
लेकिन सच यह है कि समस्या के स्रोतों की पहचान,
बेहतर खानपान के साथ-साथ शरीर और मन-मस्तिष्क की सक्रियता या व्यायाम आदि के सहारे स्वस्थ रहना संभव है और यह बढ़ती उम्र के लोगों के भी उतना ही जरूरी है।
अगर ऐसी स्थितियां निर्मित की जाएं,
जिसमें बुजुर्गों की रोजमर्रा की जिंदगी को खुश और सेहतमंद बनाए रखने के इंतजाम हों,
तो उन्हें न केवल स्मृतिलोप जैसी कठिनाइयों से बचाया जा सकेगा,
बल्कि उनके लंबे जीवन-अनुभवों का लाभ भी समाज और देश को मिल सकेगा।