
आज की महंगी और दिखावटी शादियों में बर्बाद होता समाज।।
भारत में शादियों में फ़िज़ूल खर्ची धीरे धीरे चरम पर पहुँच रही है…
पहले मंडप में शादी, वरमाला सब हो जाता..फिर अलग से स्टेज का खर्च बढ़ा..अब हल्दी और मेहंदी में भी स्टेज…खर्च बढ़ गया है , पहले जिस चेहरे पर बेटी की विदाई का गम या नई बहू आगमन की उत्सुकता रहती थी आज उस बेचारे पिता का चेहरा अपने बच्चों के सामने हताश नजर आने लगा है।
यह एक दूसरे से ज्यादा आधुनिक और अमीर दिखाने के चक्कर में लोग हद से ज्यादा दिखावा कर रहे हैं।
पहले जो शादियां मंडप में बिना तामझाम के होती थी, वह भी शादियां ही होती थी और तब दाम्पत्य जीवन इससे कहीं ज्यादा सुखी थी।
अमीर लोगों की नकल कर के मिडिल क्लास के लोग अपना स्टेटस
ऊंचा करने के चक्कर मे फिजूल खर्च कर कर्जदार हो रहे है।
कोई समय था जब अपने संस्कार और अपनी संस्कृति ही सब कुछ हुआ करती थी लेकिन आज चैनलों पर आधुनिक फुहड़ता से ओतप्रोत शादियां देखकर बच्चों में भी उनकी बराबरी करने की धुन सवार है आज अमीरों की बस्ती में हर कोई अपनी हस्ती को चकाचौंध करने में लगा है
इसमें हम सिर्फ लड़की के पिता पर ही फोकस नहीं कर रहे है।हालत यह है कि लड़के वालों का भी लगभग उतना ही खर्चा हो रहा है और अब* *सहानुभूति की आवश्यकता जितनी लड़की वाले को है,उतनी ही लड़के वाले को भी ।
दोनों ही अपनी सामाजिक परंपराओं को निभाने और नाक ऊंची रखने के लिए कर्जा लेकर भी घी पी रहे हैं।
भाई हल्दी का प्रोग्राम नही किया तो लोग क्या कहेंगे,,?
भाई मेहंदी पर 200 लोगों को बेवजह इनवाइट नहीं किया तो शायद मेहंदी ही नहीं रचेगी और फिर संगीत के नाम पर घर की महिलाएं आज के फूहड़ गानों पर अपना शरीर ना मटकाए तो शादी ही किस नाम की,,?
प्री वेडिंग फोटोशूट , डेस्टिनेशन वेडिंग के नाम पर लाखों खर्च करने वाले हम भारतीयों का भी एक भव्य स्टेज तैयार होने लगा है।
एक सर्वे के मुताबिक भारत में सालभर में शादियों पर जितना खर्च हो रहा है। उतनी कई देशों की GDP भी नहीं।
आज कल बेटियां भी कुछ कम नहीं है टीवी सीरियल देख देख कर उन्हे भी सब शौक चढ़े है , पहले हल्दी में पुराने कपड़े पहन कर बैठ जाते थे अब तो हल्दी के कपड़े 5 से 7 हजार के आते है ऊपर से फ्रेश फ्लावर के जेवेलरी 4 हजार की और शादी का लहंगा तो लाख से कम का पसंद नही आता।
मै ना अपनी दाम्पत्य संस्कृति को दोष दे रहा हूं ना ही आज के बच्चे और बच्चियों को दोष सिर्फ आज के टेलीविजन फूहड़पन और पाश्चात्य संस्कृति कितनी तेजी से हमारे दिमाग में घर कर रही है उसका है
पाश्चात्य संस्कृति को अपनाने और रेस में खुद को आगे रखने के चक्कर में ना जाने कितने पिता कर्जदार हो रहे है,,?
पहले कहते थे की लड़की पिता के सर का बोझ होती है जो की बहुत गलत अवधारणा थी लेकिन आज जैसा कि हम देख रहे है आज के बच्चे इस कहावत को चरितार्थ करते नजर आ रहे है।।।।
ना जाने कहां जा रहे है हम,,?