
मनोकामनाए होती है पूर्ण ब्रहमपुर बरमेश्वर नाथ मंदिर मे: चिंता हरण पांडेय
July 23, 2022
उत्तर प्रदेश जनपद बलिया
ब्रह्मपुर, बिहार:—बिहार राज्य के जनपद बक्सर में स्थित बाबा बरमेश्वर नाथ धाम बरहमपुर में स्थित है जो विश्व का एकलौता मंदिर है जहां पर आप रूपी मंदिर का पश्चिम मुखी दरवाजा होना एक असंभव ही नहीं काल्पनिक बल्कि वास्तविक रूप में सत्य है जो आप रूपी बाबा ब्रह्मेश्वर नाथ का पूर्व मुख्य दरवाजा होते हुए भी रात में पश्चिम मुखी होना इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।
बाबा बरमेश्वर नाथ की मंदिर प्रांगण में गौरी शंकर शिव बरमेश्वर अर्थात त्रिदेव का दर्शन पूजा करने हेतु दूसरे राज्यों से भी लोग आते रहते हैं। खासकर मंदिर के पूरब दिशा में स्थित सरोवर मंदिर की सुंदरता बढ़ाने में अपनी छवि नहीं छोड़ पाता है।
प्रसिद्ध मिष्ठान के रूप में शिव लड्डू जो कि गुड़ और बूंदी से बनाया जाता है दूरों दूरों तक प्रसिद्ध है जो विशेषकर अन्य धामों पर या मिठाइयां मिलना ही नहीं बल्कि नामुमकिन सी दिखती है और यहां की यह नहीं बल्कि बक्सर जनपद की प्रसिद्ध मिठाइयों में से एक है।
पीठाधीश्वर महोदय श्री चिंता हरण पांडे जी से बात किया तो उन्होंने बताया कि यह मंदिर बहुत ही पुराना है यहां पर मुसलमानों के शासनकाल में मोहम्मद गजनवी ने इस मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद बनाने का निर्णय किया था लेकिन यहां से उसे भी नंगे पैर वापस लौट जाना पड़ा बाबा बरमेश्वर नाथ का जो मुख्य द्वार है उस पर मोहम्मद गजनवी कि आज भी मूर्ति स्थापित है जो एक संदेश भी देता है कि यह जो भी आया है उसकी सारी मनोकामनाएं बाबा ब्रह्मेश्वर नाथ पूर्ण करते हैं और भी मुख्य चर्चाएं हुई जो बाबा के मंदिर में सुबह की आरती शाम की आरती की जाती है और बाबा बरमेश्वर नाथ की नाना प्रकार की व्यंजनों से भोग अर्पित किया जाता है आरती के समय आसपास की जनता और दूसरा से आए लोग भी सम्मिलित होते हैं आरती में सम्मिलित होने के पश्चात लोगों की मांगी गई हर मनोकामनाएं बाबा पूर्ण करते हैं।
विस्तार से हम बताते हैं बाबा बरमेश्वर नाथ का इतिहास क्या रहा है?
बक्सर जिले के ब्रह्मपुर धाम का प्राचीन बाबा बरमेश्वर नाथ मंदिर सालों भर भक्तों प्यारा सा केंद्र बना रहता है | अभी फाल्गुन माह में भक्तों की गहमागहमी कुछ अधिक ही देखने को मिल रही है। ऐसी मान्यता है कि।
बक्सर जिले के ब्रह्मपुर धाम का प्राचीन बाबा बरमेश्वर नाथ मंदिर सालों भर भक्तों प्यारा का केंद्र बना रहता है | अभी फाल्गुन माह में भक्तों की गहमागहमी कुछ अधिक ही देखने को मिल रही है। ऐसी मान्यता है कि इस शिवलिंग की स्थापना भगवान ब्रह्मा ने अपने हाथों से की थी | इसका जिक्र स्कंद पुराण कथा शिवपुराण में भी मिलता है। कहां जाता है कि मध्यकाल के स्थापत्य कला का एक नमूना भी या मंदिर है | इस मंदिर की पहचान मनोकामना लिंग के रूप में भी है।
ऐसा माना जाता है कि यहां पहुंचकर बाबा के दरबार में हाजिरी लगाने वाले हर भक्तों की मनोकामना अवश्य ही पूरी होती है | वैसे तो मंदिर में सालों भर गहमागहमी बनी रहती है। लेकिन फाल्गुन तथा सावन माह में यहां भक्तों की भारी भीड़ रोजाना पहुंचती है | इसके अलावा जीने में आने वाले राजनेता तथा अन्य प्रशासनिक अधिकारी भी यहां पहुंच कर बाबा के दरबार में हाजिरी लगाने से नहीं चूकते हैं | बक्सर के अलावा भोजपुर, रोहतास, कैमूर, पटना शहीद झारखंड तथा यूपी के बलिया एवं गाजीपुर जिले से काफी संख्या में श्रद्धालु भक्त यहां पूजा अर्चना के लिए आते हैं | सावन माह में बक्सर से गंगाजल भरकर बाबा बरमेश्वर नाथ को जल अर्पित करने वाले कांवरियों की संख्या भी हर एक साल बढ़ती ही जा रही है | इस इस मंदिर की पहचान ऑफ मिनी देवघर के रूप में भी होने लगी है।
फाल्गुन मां की महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां विशाल पशुओं का मेला भी लगता है | इससे सरकार को प्रत्येक साल लाखों रुपए राजस्व के रुप में प्राप्त होता है | इस साल यह मेला अभी से ही प्रारंभ हो गया है। मेले में दूर द्वारा से व्यापारी पहुंचने लगे हैं | बाबा बरमेश्वर नाथ के दर्शन पूजन तथा जलाभिषेक के लिए प्रतियोगिता लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। लेकिन उन्हें शौचालय तथा धर्मशाला की कमी बराबर खटकती रहती है | मंदिर के पास विशाल पोखरा भी है। लेकिन जल निकासी नहीं होने के कारण उसका पानी प्रदूषित होते जा रहा है | मंदिर मैं पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा तथा पोखरी के जिम्मेदार के लिए अभी तक किसी भी स्तर से प्रयास नहीं होने से स्थानीय लोगों में आक्रोश के साथ निराशा का भाव कभी भी देखा जा सकता है।
रातों-रात बदल गया था मंदिर का दरवाजा : देश के प्राय सभी प्रसिद्ध शिव मंदिरों का दरवाजा पूरब दिशा की ओर है | लेकिन इस मंदिर का दरवाजा पश्चिम दिशा की ओर है | इस बारे में यह कहा जाता है कि एक बार मुगल सेनापति कासिम अली खान पश्चिम की ओर से मंदिरों को ध्वस्त करते हुए ब्रहमपुर पहुंचा था | लेकिन मंदिर के पुजारियों ने उसे ऐसा करने से रोक दिया | तब मुगल सेनापति ने कहा था कि अगर भगवान में कोई शक्ति है तो कोई वह कोई चमत्कार करके वह दिखाएं | कहां जाता है कि जब रात में सारे सैनिक सो रहे थे उसी समय एकाएक मंदिर का दरवाजा पूरब से पश्चिम भाग में हो गया | सुबह जगने पवार मुगल सेनापति ने भगवान भोले के इस चमत्कार को देख मंदिर को बिना तोड़े ही वापस लौट गया | तभी से इस मंदिर का दरवाजा पश्चिम की ओर ही खुलता चला आ रहा है |